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निकाय चुनाव : NOTA क्या होता है और यह कितना कारगर होता है?

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निकाय चुनाव : NOTA क्या होता है और यह कितना कारगर होता है?

सबगुरु न्यूज। हर चुनाव में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि किसी भी उम्मीदवार के लिए वोट नहीं डालना चाहते हैं ऐसे मतदाताओं के लिए चुनाव आयोग ने ‘नोटा’ का प्रावधान किया है।

भारत में ईवीएम का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के नार्थ पारावुर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न होती है।

एक पायलट परियोजना के तौर पर 2014 के लोकसभा चुनाव में 543 में से 8 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता-सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) प्रणाली वाले ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था।

भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में NOTA जिसका फुल फॉर्म है; None of the above का कांसेप्ट शुरू किया था।

नोटा क्या होता है?

कई बार ऐसा देखा गया है कि लोग किसी लोकल समस्या जैसे बिजली, पानी, सड़क या उम्मीदवारों के अपराधिक रिकॉर्ड के कारण किसी को भी अपना वोट देना नहीं चाहते हैं तो वे अपना विरोध किस प्रकार प्रकट करेंगे? इसलिए निर्वाचन आयोग ने वोटिंग प्रणाली में एक ऐसा तंत्र विकसित किया ताकि लोग सभी प्रत्याशियों को रिजेक्ट करने के अधिकार को प्राप्त कर सकें।

नोटा; किसी चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव में खड़े सभी उम्मीदवारों में से किसी को भी अपना वोट नहीं देना चाहते हैं। अर्थात नोटा लोगों को सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का एक विकल्प देता है।

यानी अगर आपको अपने विधान सभा या लोकसभा क्षेत्र में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप ईवीम मशीन में NOTA का बटन दबा सकते हैं।

ध्यान रहे कि नोटा को दिए गए मतों की गिनती होती है लेकिन उनको अवैध मत माना जाता है अर्थात नोटा के वोट किसी भी उम्मीदवार को नहीं मिलते हैं और किसी की हार जीत में इनका कोई महत्व नहीं होता है।

नोटा कितना असरदार होता है?

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाईकुरैशी ने कहा था कि अगर 100 में से 99 वोट भी नोटा को पड़े हैं और किसी कैंडिडेट को एक वोट मिला तो उस कैंडिडेट को विजयी माना जाएगा। बाकी वोटों को अवैध करार दे दिया जाएगा।

एक और उदाहरण जानते हैं; यदि किसी विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है तो ऐसे में भी जिस कैंडिडेट को सबसे ज्यादा मत मिलते हैं उसे विजयी घोषित किया जाता है।

कई बार तो ऐसा देखा गया है कि सभी उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा को मिलते हैं। गुजरात विधानसभा चुनावों में नोटा मतों की संख्या कांग्रेस एवं भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी के मतों की संख्या से अधिक थी।

गुजरात विधानसभा चुनावों में 5.5 लाख से अधिक या 1.8% मतदाताओं ने नोटा बटन दबाया था, वहां कई विधानसभा क्षेत्रों में जीत का अंतर नोटा मतों की संख्या से कम था।

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने उन निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव कराने की सिफारिस की है जहां जीत का अंतर नोटा मत संख्या की तुलना में कम रही और विजयी उम्मीदवार एक तिहाई मत जुटाने में भी नाकाम रहे हों।

नोटा अब उम्मीदवार माना जाएगा

ज्ञातव्य है कि 2018 से पहले नोटा को अवैध मत माना जाता था और हर जीत में कोई योगदान नहीं दे पाता था, लेकिन 2018 में नोटा को भारत में पहली बार उम्मीदवारों के समकक्ष दर्जा मिला।

हरियाणा में दिसंबर 2018 में पांच जिलों में होने वाले नगर निगम चुनावों के लिए हरियाणा चुनाव आयोग ने निर्णय लिया था कि नोटा के विजयी रहने की स्थिति में सभी प्रत्याशी अयोग्य घोषित हो जाएंगे तथा चुनाव पुनः कराया जाएगा और जो प्रत्याशी नोटा से कम से कम वोट पाएगा वह दुबारा इस चुनाव में खड़ा नहीं होगा।

यदि दुबारा चुनाव होने पर भी नोटा को सबसे अधिक मत मिलते हैं तो फिर द्वितीय स्थान पर रहे प्रत्याशी को विजयी माना जाएगा। लेकिन यदि नोटा और उम्मीदवार को बराबर मत मिलते हैं तो ऐसी स्थिति में उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाएगा।

अतः चुनाव आयोग के द्वारा शुरू किया गया नोटा का अधिकार और उसे एक उम्मीदवार के समान महत्व देना सच्चे लोकतंत्र की दिशा में एक बहुत ही सराहनीय कदम है। इस कदम से राजनीतिक दलों को सीख मिलेगी कि लोगों के हितों की अनदेखी करना उन्हें कितना भारी पड़ सकता है।

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