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जय श्रीराम बोलना बुरी बात नहीं : मोहन भागवत - Sabguru News
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जय श्रीराम बोलना बुरी बात नहीं : मोहन भागवत

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जय श्रीराम बोलना बुरी बात नहीं : मोहन भागवत

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि जय श्रीराम बोलना बुरी बात नहीं लेकिन भगवान श्रीराम जैसा बनना और उनके आदर्शों को आत्मसात करना ज़रूरी है।

भागवत ने रविवार को सन्त ईश्वर फाउंडेशन की ओर से आयोजित संत ईश्वर पुरस्कार सम्मान समारोह के दौरान अपने संबोधन में कहा कि सभी धर्म भारत भूमि से ही निकले हैं। मनुष्य के पास धर्म का तत्व होने से ही वह मनुष्य है। धर्म का अर्थ पूजा-पाठ मात्र नहीं है। पूजा-पाठ तो धर्म का एक हिस्सा मात्र है।

उन्होंने कहा कि श्रीमदभागवत में धर्म के जो तत्व बताए गए हैं उनमें सत्य को धर्म बताया गया है। सत्य सभी का एक ही होता है अलग-अलग नहीं। उस सत्य तक सभी धर्मों के लोग अपने-अपने तरीकों से पहुंचना चाहते हैं। उनको ऐसा करने देना चाहिए। उनके साथ ज़बरदस्ती करके झगड़ना नहीं चाहिए। पर, आदर्शों के मार्ग पर मिलकर चलने से ही परिणाम मिल पाते हैं।

भागवत ने कहा की युवा पीढ़ी को लेकर चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। युवा पीढ़ी सक्षम है, बस उसे सही मार्गदर्शन की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि आज लोग इस बात की चिंता करते दिखाई देते हैं कि भारत की नई पीढ़ी का क्या होगा, वह क्या करेगी। पर, उन्हें इसकी चिंता करने की जगह खुद एक अच्छा और आदर्श आचरण उनके सामने रखकर उन्हें प्रेरित करना चाहिए। उस आचरण को देखकर वे खुद-ब-खुद वैसे ही बनते जाएंगे। अलग से उन्हें कुछ सिखाने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। वे स्वयं काफी सक्षम हैं।

संघ प्रमुख ने कहा कि सेवाभाव के कारण ही मनुष्य, मनुष्य माना जाता है। सेवा का भाव मनुष्य के अंतर्मन में निहित होता है। संवेदनशील व्यक्ति ही सेवा कर सकता है।मनुष्य ने अगर संवेदनशीलता को चुना तो देवता बन जाता है।

इस पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख भागवत ने विभिन्न संस्थाओं और व्यक्तियों को समाज के पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए बेहतर काम के लिए वर्ष 2021 के संत ईश्वर संम्मान पुरस्कार से सम्मानित किया।

कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, जितेंद्र सिंह, मीनाक्षी लेखी समेत संघ और समाज सेवा और राजनीति इसे जुड़े कई हस्तियां मौजूद थीं। कार्यक्रम का आयोजन सन्त ईश्वर फाउंडेशन ने राष्ट्रीय सेवा भारती संस्था के साथ मिलकर किया।

इस पुरस्कार की शुरुआत 2015 में कई गई थी। पुरस्कार जनजातीय कल्याण, ग्रामीण विकास, महिला व बाल-कल्याण तथा कला, साहित्य, पर्यावरण तथा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में दिए जाते हैं। संस्थाओं को पांच लाख और निजी व्यक्तियों को एक लाख रुपए की धनराशि, शॉल, सर्टिफिकेट और ट्रॉफी दी जाती है।