सिरोही। जिले में छात्रसंघ चुनावों में 4 मोर्चों पर एबीवीपी ने जीत हासिल की लेकिन, जिले के सबसे बड़े महाविद्यालय में उनका किला 12 साल बाद एनएसयूआई ने ढहा दिया। आबूरोड व रेवदर के राजकीय महाविद्यालयों तथा सिरोही के राजकीय महिला महाविद्यालय व लॉ कॉलेज में एबीवीपी के कब्जा रहा। वहीं शिवंगज और पिंडवाड़ा के राजकीय महाविद्यालय में एनएसयूआई के को जीत मिली।
<span;>लेकिन, इन सब महाविद्यालयो के मोर्चों के अलावा सिरोही जिले के सबसे बड़े राजकीय महाविद्यालय सिरोही में एनएसयूआई ने एबीवीपी के किले को ढहा दिया। यहाँ 2010 में राजेंद्र सिंह राणावत के बाद अब राहुल पुरोहित अध्यक्ष बने।
उन्होंने एबीवीपी की प्रत्याशी आशासिंह देवड़ा को 137 मतों से हराया। यहां उपाध्यक्ष पद पर एनएसयूआई की आरती कुमारी और महासचिव पद पर एनएसयूआई के हिमांशु सोलंकी, वहीं संयुक्त सचिव के लिए एबीवीपी की आरती वैष्णव जीती।
राजकीय महाविद्यालय सिरोही का चुनाव लंबे अर्से से इकतरफा ही रहा है। यहाँ एक दशक से एबीवीपी के वर्चस्व को एनएसयूआई तोड़ नहीं पाई थी। लेकिन, इस बार एनएसयूआई जीत के सूखे को मिटाने के मूड में शुरू से ही नजर आई।
सबसे पहला कदम उसने आक्रामक प्रचार को बनाया।
सेशन शुरू होते ही जुलाई में कॉलेज की रेलिंग्स से लेकर कॉलेज के बाहर की सड़क पर लगे खम्बो तक पर एनएसयूआई के बड़े बड़े होर्डिंग्स नजर आने लगे। एबीवीपी यहां भी पिछड़ गई। उन्हें इतनी जगह भी नहीं मिल पाई कि वो होर्डिंग्स टांग पाएं।
दूसरा काम उसका ही हिंदुत्व का मुद्दा उड़ा लिया और राष्ट्रवाद के मुद्दे को भारतीयता से रिप्लेस करने का किया। एनएसयूआई ने धार्मिक और भारतीयता के भाव को समेटे गानों से वीडियो प्रचार-प्रसार को। यही नहीं सावन के अंतिम सोमवार को महाविद्यालय से सारणेश्वर मंदिर तक की पैदल यात्रा भी निकाली।
तीसरा काम जातीय समीकरणों को सेट करने का किया। एबीवीपी एक दशक से लगातार जीत का स्वाद चखा चुके विद्यार्थी समूह के वोटों को लेकर इतनी अति आत्मविश्वासी हो चुकी थी कि उसने दूसरे विद्यार्थी समूहों की आवश्यकता महसूस ही नहीं की।
इस वैक्यूम का फायदा एनएसयूआई ने उठाया, सबसे पहले पोस्टर वार में ही एबीवीपी के कोर वोटर वर्ग के समूह को अपना प्रत्याशी प्रमोट कर दिया। इसके साथ हर बार बिखर जाने वाले अपने स्थाई वोट समूह में विश्वास बना लिया। यहाँ एबीवीपी की एक रणनीति सराहनीय रही कि उसने एनएसयूआई के कोर वोट समूह को अपना प्रत्याशी बनाया।
लेकिन, उसने एक आत्मघाती कदम उठा लिया और वो था वो वीडियो वायरल करना जिसे जेएनयू के वामपंथी और राष्ट्रद्रोहियों को कॉलेज में घुसने का मिथ्या प्रचार करने के लिए वायरल किया। यही उन्हें भारी पड़ गया।
इस वीडियो ने उनके स्थाई वोटर्स समूह में इस बात का गुस्सा प्रकट हो गया कि अफवाह फैलाकर हमे देशद्रोही बताकर बदनाम करने की कोशिश की गई और वो एकजुट हो गए। इसके अलावा एनएसयूआई ने जवाबी हमले में जब ये कहा कि ये नारे जातिवाद और एबीवीपी से आजादी के थे तो भीमसेना के बैनर तले खड़े होने वाले विद्यार्थी समूह में एबीवीपी के खिलाफ गुस्सा व्याप्त हो गया।
दोनो के नामांकन जुलूस ने तो जैसे छात्रों में एक सन्देश भेज दिया था। एनएसयूआई के जुलूस में केसरिया, नीला, सफेद और हरे रंग के साथ सबसे ऊपर तिरंगा भी लहरा रहा था और समरसता के साथ राष्ट्रभाव दिखा रहा था।
वहीं तो हाल में हर घर तिरंगा अभियान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने और तिरंगा रैलियां निकालने के बावजूद एबीवीपी के नामांकन जुलूस में उनके सांगठनिक भगवा झंडे के अलावा तिरंगा नजर तक नहीं आया। इन छोटी-छोटी चूकों ने भी एबीवीपी के किले में छेद किया और भारतीयता के भाव के आगे राष्ट्रवाद हार गया।
सिरोही में एक हास्यास्पद स्थिति हमेशा देखने को मिली है। भाजपा नेताओं ने हमेशा महाविद्यालय के चुनावों को छात्रों की बजाय खुद भाजपा पदाधिकारियो की जीत माना। ऐसे में राजकीय महाविद्यालय सिरोही के छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी की जीत पर हर बार विजय जुलूस में गाड़ियों पर छात्रसंघ पैनल से ज्यादा स्थानीय भाजपा के जनप्रतिनिधि और सन्गठन के पदाधिकारी चढ़े नजर आते थे।
हाल में ही एनएसयूआई पदाधिकारी ने वर्तमान जिलाध्यक्ष, जिला प्रमुख, प्रधान, पूर्व मंत्री, पूर्व प्रमुख के भी छात्रसंघ चुनाव में प्रचार में उतरने का आरोप लगाया था। यही नहीं पार्टी सूत्रों के अनुसार इस बार भी छात्रसंघ चुनाव के प्रभारी और कार्यालय प्रभारी की बागडोर भी एबीवीपी के पदाधिकारियों और कॉलेज छात्रो की बजाय भाजपा सन्गठन के नेताओं को ही बनाया गया था।
शनिवार को मतगणना के दौरान भी एबीवीपी समर्थक अपने अति आत्मविश्वास को छोड़ने को तैयार नहीं थे। सोशल मीडिया पर पहले ही जिले के सबसे बड़े राजकीय महाविद्यालय में एबीवीपी के जीत जाने के सन्देश वायरल होने लगे। ये देखकर एबीवीपी समर्थक पैलेस रोड पर पहुंचने लगे। ढोल भी ले आये।
व्हाट्सएप जनित जीत से सन्देश के उत्साह में सर केएम स्कूल की तरफ की बैरिकेडिंग हटाकर कॉलेज की तरफ बढ़ भी गए और स्थानीय विधायक के खिलाफ नारेबाजी करते हुए ढोल भी बजा दिए। लेकिन, जब परिणाम आया तो निराशा फैल गई।
शुक्रवार को मतदान के बाद सभी एबीवीपी समर्थक पनिहारी गार्डन पर एकत्रित हुए। सन्गठन सूत्रों के अनुसार यहां शनिवार को होने वाली निश्चित जीत का जश्न और भाषण होना था। यहाँ भी परिणाम के बाद सन्नाटा पसरा रहा। बस एबीवीपी के झंडे जरूर नजर आए। ये नजारा देखकर यही प्रतीत हुए कि इस हार के बाद महिला महाविद्यालय और लॉ कॉलेज की जीत भी एबीवीपी को खुशी नहीं दे पाई। वैसे एबीवीपी समर्थकों ने इस हार का ठीकरा मतगणना में हुई धांधली पर फोड़ते हुए खारिज कर दिया है।
अंतिम परिणाम आने पर 12 साल बाद एनएसयूआई को विजय जुलूस निकालने का मौका मिला। सभी विजयी प्रत्याशियों के साथ एनएसयूआई के राष्ट्रीय संयोजक दशरथ नरुका जुलूस में शामिल थे।
नामांकन जूलूस की तरह ही विजय जुलूस में भी एनएसयूआई के चौरंगे झंडे के अलावा केसरिया व नीला झंडा और इन सबको अपनी आगोश में लेने वाला तिरंगा शामिल था, जो समरसता का सन्देश दे रहा था। आम्बेडकर सर्किल पर सभी विजेताओं ने आम्बेडकर की प्रतिमा पर माला पहनाई। नरुका ने जीत को एबीवीपी के द्वारा फैलाये कथित अफवाह के खिलाफ सिरोही के छात्रों की जीत बताया। इसका श्रेय स्थानीय विधायक संयम लोढ़ा के उत्साहवर्धन को बताया।