इलाहाबाद। देश की प्रतिष्ठित फूलपुर लोकसभा सीट पर 11 मार्च को हो रहे उप चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को बहुजन समाज पार्टी के समर्थन देने की घोषणा के साथ तेजी से बदले सियासी समीकरण से भारतीय जनता पार्टी खेमे में बेचैनी बढ़ गई है।
फूलपुर लोकसभा के पांचो विधानसभा क्षेत्रों फूलपुर, फाफामऊ, सोरांव, प्रतापपुर, इलाहाबाद पश्चिम और इलाहाबाद उत्तर में 19 लाख 20 हजार से अधिक मतदाता हैं। जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां पटेल मतदाता हमेशा से ही निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं।
यहां 50 फीसदी ओबीसी वोट में सबसे अधिक पटेल बिरादरी के लोग आते हैं जबकि दलित 15 प्रतिशत में पासी बिरादरी की बहुल्यता है। अपर कास्ट में 15 प्रतिशत में ब्राह्मण मतदाताओं का वर्चस्व है जबकि 15 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। अन्य जातियों की संख्या पांच प्रतिशत ही है।
यहां करीब तीन लाख वोट बसपा के माने जाते हैं। अब तक उपचुनाव में बसपा के तटस्थ रहने पर उसके वोटों में सभी दल सेंध लगाते लेकिन सपा को समर्थन का ऐलान के बाद अब इन्हें बांटना आसान नहीं होगा। भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल, सपा के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल के आपस में भिड़ने से ‘पटेल बनाम पटेल’ फूलपुर लोकसभा उपचुनाव जहां दिलचस्प बन गया है वहीं सपा को बसपा का समर्थन से भाजपा को आघात लगा है।
निर्दलीय बाहुबली अतीक अहमद के चुनाव में उतरने से परिणाम बेहद चौंकाने वाले हो सकते है। बसपा का सपा को समर्थन मिलने से कांग्रेस प्रत्याशी मनीश मिश्र इस महाभारत में अकेले नजर आते दिख रहे हैं।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 1996 से 2004 तक लगातार यहां से चार बार विजयी रही सपा अपने परंपरागत मुस्लिम, यादव और अन्य पिछड़ी जातियों के वोटों के साथ बसपा के वोटों को अपने खाते में जोड़कर पांचवी बार काबिज करने की ऐडी चोटी की जोर लगाएगी। इसके अलावा निर्दलीय अतीक अहमद के मैदान में उतरने से अबतक मोदी लहर पर सरपट दौड़ रही भाजपा की बौखलाहट बढ़ गई।
विशेषज्ञो के अनुसार इसी बौखलाहट का परिणाम है कि प्रदेश सरकार के उड्डयन मंत्री नंद कुमार गुप्त ‘नंदी’ ने रविवार को धूमनगंज के प्रीतमनगर में मुख्यमंत्री के एक चुनावी सभा में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव, अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती के लिए अमर्यादित टिप्पणी का प्रयोग किया था।
उनका मानना है कि उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं उतारने और घोषणा के बाद तक स्थिर रहने के बाद अचानक सपा को समर्थन के ऐलान से जहां सत्तारूढ़ पार्टी में बेचैनी महसूस की जा रही है वहीं कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। फूलपुर का राजनीतिक चरित्र हमेशा से अलग रहा है।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के यहां से चुनाव लड़ने के कारण यह सीट प्रतिष्ठित मानी जाती है। पंडित नेहरू यहां से लगातार तीन बार वर्ष 1952, 1957 एवं 1962 में जीतकर संसद पहुंचे। वर्ष 1984 में रामपूजन पटेल यहां से कांग्रेस के टिकट पर विजयी हुए थे उसके बाद से कांग्रेस ने जीत का स्वाद नहीं चखा है। उसे पिछले 34 साल से अपनी खोई हुई जमीन पर जीत का इंतजार है।
फूलपुर विधानसभा में सत्तारूढ दल के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत बसपा और कांग्रेस नेताओं के चुनावी सभाओं से राजनीतिक पारा गर्माएगा।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा को समर्थन देने की घोषणा के साथ 2019 के लिए भी नए सियासी समीकरण की नींव रख दी है। हालांकि, पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सभी जातीय समीकरण टूट गए थे और भाजपा प्रत्याशी केशव मौर्य ने बड़ी जीत हासिल की थी लेकिन उपचुनाव में सभी दल जातीय समीकरण को साधने की कोशिश में है।
उनका कहना है कि उम्मीदवार उतारने में जातीय फैक्टर पहले ही सपा और भाजपा दोनों ने ही ध्यान में रखा है। मायावती की समर्थन की घोषणा के बाद भाजपा के खिलाफ मुस्लिमों के भी ध्रुवीकरण की बात कही जा रही है।
प्रदेश सरकार में स्वास्थ्यमंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा है कि चाहे बसपा कितना भी सपा के लिए बैसाखी बने या अन्य विपक्षी दल किसी से समर्थन लें लेकिन भारतीय जनता पार्टी को किसी भी दल से ड़र नहीं है। वर्ष 2014 के चुनाव में जिस प्रकार कमल का फूल खिला था उसी प्रकार फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनाव में भी दोबारा कमल का फूल खिलेगा।
उन्होंने कहा कि 25 साल पहले जिन्होंने अपनी आबरू का हवाला देकर गठबन्धन तोड़ दिया था, वह आज उन्हीं लोगों की आबरू बचाने निकली हैं। उन्होंने कहा कि कौन किससे गठबन्धन करता है, किसका समर्थन करता है भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
चुनाव में पहले कांग्रेस अौर सपा एक दूसरे की बैसाखी का सहारा बने थे, परिणाम सबके सामने था। उसी प्रकार बसपा और सपा चाहे कितना भी एक दूसरे के लिए बैसाखी का सहारा लेकर चुनावी वैतरणी पार करना चाहे लेकिन भाजपा पर कोई असर पडने वाला नहीं है।
प्राप्त आंकडों और एकत्रित जानकारी के अनुसार 2014 फूलपुर लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार केशव प्रसाद मौर्य को 5,03,564 वोट मिले थे। वहीं सपा के धर्मराज सिंह पटेल को 1,92,356 तथा बसपा के कपिल मुनि करवरिया को 1, 63,710 मत मिले थे। इस तरह से सपा और बसपा उम्मीदवार को मिलाकर 3,58,966 मत मिले थे तथा कांग्रेस को 58,127 मत एवं छोटे दल और निर्दलीय को करीब 60 हजार मत मिले थे।
वर्ष 2014 के लोकसभा और 2017 में हुए विधानसभा चुनाव को छोड़ दिए जाए तो फूलपुर क्षेत्र में सपा और बसपा का मजबूत जनाधार रहा है। फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में 2014 में पहली बार कमल खिला था। इससे पहले 2009 के चुनाव में बसपा के कपिल मुनि करवरिया इस क्षेत्र से सांसद चुने गए थे। इससे पहले 2004 में सपा के अतीक अहमद तो 1999 में धर्मराज पटेल विजयी हुए थे।
इससे पहले 1996 और 1998 में सपा के ही जंगबहादुर पटेल लगातार दो बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। 1989 के चुनाव में भी जनता दल के टिकट पर रामपूजन पटेल विजयी हुए थे। पिछले चुनाव में भी सपा दूसरे तथा बसपा तीसरे स्थान पर रही। ऐसे में सपा उम्मीदवार को बसपा के समर्थन से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद किरणमय नंदा ने इन्हीं आधार पर बसपा के समर्थन के बाद बड़ी जीत का दावा भी कर दिया है। सपा और बसपा के गठबंधन के दूरगामी परिणाम होंगे। उन्होंने बताया कि मतदाताओं में भाजपा के खिलाफ नाराजगी है।
ऐसे में इस समर्थन का उपचुनाव में बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। यह प्रयोग 2019 में भी संभावित दिख रहा है। ऐसे में दोनों सीट के लिए उपचुनाव में दोनों दलों के कैडर मतों के ध्रुवीकरण के साथ कई अन्य कारक भी चुनाव को प्रभावित करेंगे।