चेन्नई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को चंद्रयान-2 की कक्षा दूसरी बार सफलतापूर्वक बदली।
इसरो ने बताया कि देर रात 1.08 बजे चंद्रयान-2 को पृथ्वी की ऊपरी कक्षा में पहुंचाया गया। इससे पहले 24 जुलाई को दोपहर 2.52 बजे पहली बार यान की कक्षा बदली गई थी।
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-2 का प्रोपल्सन सिस्टम करीब 883 सेकंड के लिए चालू किया गया। इस दौरान यान कक्षा बदलकर पृथ्वी से 54829 किमी. ऊपर स्थित कक्षा में पहुंच गया। अगले 10 दिनों में चंद्रयान-2 की कक्षा तीन बार और बदली जाएगी। इससे यान करीब 1,43,953 किमी दूर स्थित कक्षा तक पहुंचाया जाएगा। हर बार कक्षा बदलने के साथ ही चंद्रयान-2 की ऊर्जा बढ़ती जाएगी, जिससे अंतत: यह पृथ्वी की कक्षा छोड़कर चांद की कक्षा की ओर बढ़ेगा।
चंद्रयान-2 सोमवार (22 जुलाई) को दोपहर 2.43 बजे श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हुआ था। प्रक्षेपण के 17 मिनट बाद ही यान सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया।
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान की गति अभी सामान्य है। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने बताया था कि अगले एक से डेढ़ महीने में चंद्रयान-2 को चंद्रमा के पास पहुंचाने के दौरान 15 अहम टेस्ट किए जाएंगे। चंद्रयान-2 की कक्षा बदलने की अगली प्रक्रिया अब 29 जुलाई को होगी।
इसके बाद 2 अगस्त और 6 अगस्त को एक बार फिर इसे ऊपरी कक्षाओं में पहुंचाया जाएगा। चंद्रयान-2 करीब आठ दिन तक पृथ्वी की आखिरी कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसके बाद 14 अगस्त को बाहर निकलकर चांद की कक्षा की तरफ बढ़ जाएगा।
चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद सतह से 100 किमी की दूरी पर अलग हो जाएगा। इसके बाद विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर 3 सितंबर को मुख्य स्पेसक्राफ्ट से अलग होकर निचली कक्षा में पहुंचेंगे और आखिर में 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतर जाएंगे। इसरो प्रमुख के मुताबिक, आखिर के 15 मिनट में सुरक्षित लैंडिंग कराने के दौरान वैज्ञानिक सबसे ज्यादा भय अनुभव करेंगे।
चंद्रयान-2 को भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III रॉकेट से लॉन्च किया गया। इस रॉकेट में तीन मॉड्यूल ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) हैं। इस मिशन के तहत इसरो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर को उतारने की योजना है। इस बार चंद्रयान-2 का वजन 3,877 किलो है। यह चंद्रयान-1 मिशन (1380 किलो) से करीब तीन गुना ज्यादा है। लैंडर के अंदर मौजूद रोवर की रफ्तार 1 सेमी प्रति सेकंड है।
चंद्रयान-2 वास्तव में चंद्रयान-1 मिशन का ही नया संस्करण है। इसमें ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) शामिल हैं। चंद्रयान-1 में सिर्फ ऑर्बिटर था, जो चंद्रमा की कक्षा में घूमता था। चंद्रयान-2 के जरिए भारत पहली बार चांद की सतह पर लैंडर उतारेगा। यह लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव पर होगी। इसके साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर यान उतारने वाला पहला देश बन जाएगा।
चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर के बीच कम्युनिकेशन करना है। ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा तैयार करेगा, ताकि चांद के अस्तित्व और विकास का पता लगाया जा सके।
वहीं, लैंडर और रोवर चांद पर एक दिन (पृथ्वी के 14 दिन के बराबर) काम करेंगे। लैंडर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते हैं या नहीं। जबकि, रोवर चांद की सतह पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।