सबगुरु न्यूज परीक्षित मिश्रा-सिरोही। सिरोही के इष्टदेव सारणेश्वर महादेव यूं तो समस्त सृष्टि के संचालनकर्ता हैं, लेकिन रियासतकाल और अंग्रेजों के समय में भी बहुत बडे जमींदार हुआ करते थे। आजादी के बाद टीनेंसी एक्ट ने सारणेश्वर महादेव की जमीन भी सिकोड दी।
फिलहाल सिरोही के लैण्ड रिवेन्यू रेकर्ड के अनुसार सारणेश्वर महादेव के पास 1107 बीघा जमीन है। इस जमीन और इसके आसपास की जमीनों पर हाईकोर्ट के स्टे लगने से यहां के ग्रामीणों को जो समस्या आ रही है, उसका निराकरण इस स्टे को वेकेट करवाकर सरकार ही कर सकती है।
यहां स्टे के कारण आ रही समस्याओं को लेकर सोमवार को सारणेश्वर गांव के कुछ युवक जिला कलक्टर संदेश नायक से मिले और उन्होंने ज्ञापन देकर इस समस्या के निराकरण का अनुरोध किया।
-यूं सरकार के पास गई सारणेश्वर महादेव की जमीनें?
आजादी के पहले सारणेश्वर महादेव भी एक जमींदार थे। राजस्व विभाग के सूत्रों के अनुसार इनके अधीन सिरोही के सारणेश्वर के अलावा करीब आधा दर्जन गांवों की जागीरें थीं। आजादी के बाद और सिरोही के राजस्थान राज्य में विलय के बाद यहां भी राजस्थान टीनेंसी एक्ट 1955 की धारा 13(सी) लागू हो गई।
इसके तहत सारणेश्वर महादेव करीब 1107 भूमि की काश्त करते थे। सिरोही कलक्टरी में उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार शेष भूमि पर दूसरों से काश्त करवाई जाती थी और इसका लगान सारणेश्वर महादेव के यहां जमा होता था। इसके लिए रियासतकाल से ही अलग से तहसीलदार का पद था।
टीनेंसी एक्ट लागू होते ही जो भूमि स्वयं सारणेश्वर महादेव द्वारा काश्त या उपयोग की जानी बताई गई वो तो अब भी सारणेश्वर महादेव के नाम पर ही दर्ज है, लेकिन जो भूमि पूर्व जागीरदार सारणेश्वर महादेव द्वारा दूसरों को को काश्त के लिए दी गई थी, उसके मालिक जोत करने वाले व्यक्ति ही बन गए। इनसे मिलने वाला लगान सारणेश्वर महादेव की बजाय अब राज्य सरकार के पास जमा होने लगा।
-वर्तमान समस्या क्या?
सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही देवस्थान बोर्ड के तहत आता है। जो 1107 बीघा भूमि सारणेश्वर महादेव के नाम से थी, उसे खुदकाश्त भूमि कहा जाने लगा। राजस्थान टीनेंसी एक्ट के तहत खुदकाश्त भूमि को किसी को आवंटित नहीं किया जा सकता। यह भूमि और इससे होने वाली आया का मंदिर और इसके विकास के लिए उपयोग का अधिकार सिरोही देवस्थान ट्रस्ट के पास आ गया।
सारणेश्वर महादेव की 1107 बीघा भूमि पर ही स्थानीय लोगों ने पट्टे की मांग की, लेकिन टीनेंसी एक्ट के तहत खुदकाश्त भूमि के पट्टे किसी को जारी नहीं किए जा सकते है इसलिए इन लोगों को पट्टे जारी नहीं हुए। लेकिन, खुदकाश्त भूमि के उपयोगकर्ताओं के परिवार उत्तरोत्तर बढते रहे तो आवश्यकता भी बढने लगी।
मकान बनाने और भूमि पर विकास के लिए सरकारी अनुमति जरूरी हो गई। इसके बाद सन 2000 में सिरोही देवस्थान बोर्ड स्थानीय पुजारियों के बीच में अनबन बढ़ी तो ट्रस्ट ने सारणेश्वर महादेव की खुदकाश्त भूमि समेत इसके चारों ओर की करीब आठ हजार बीघा भूमि पर राजस्थान हाईकोर्ट से स्टे ला दिया। इससे यहां पर कोई कार्य नहीं हो सकता है। राजस्व विभाग के दस्तावेजों के अनुसार सारणेश्वर महादेव की खुदकाश्त भूमि की 1107 बीघा भूमि के करीब आधा दर्जन खसरों को छोडकर शेष साढे सात बीघा भूमि वन विभाग और निजी खातेदारों के पास है।
राजस्व विभाग के कार्मिकों के अनुसार मातरमाता पहाडी के एक बिंदु से दूधिया तालाब होते हुए हाईवे, हाइवे से केवीके, केवीके से कोलार होते हुए आम्बेश्वर महादेव के पीछे स्थित नाले तक और इस नाले से पहाडी पर होते हुए फिर मातरमाता आने की चतुर्दिश में स्थित करीब आठ हजार बीघा भूमि पर हाईकोर्ट का स्टे लगा हुआ है।
ग्रामीणों के अनुसार इस स्टे को वेकेट करवाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भी प्रयास नहीं हुए। ऐसे में गांव में आधारभूमि सुविधाओं और विकास की गतिविधियां ठप हैं। इन्होंने कलक्टर को बताया कि कानूनी बाध्यता के कारण ये लोग इस केस में पार्टी भी नहीं बन सकते ऐसे में गांव में विकास और आधारभूमि सुविधाओं के विकास के लिए प्रयास करने का अनुरोध किया है।
-सिरोही का ही हिस्सा सारणेश्वर
सारणेश्वर को आमतौर पर लोग अलग गांव मानते हैं, लेकिन आजादी के बाद भी लम्बे अर्से से यह सिरोही शहर का ही एक हिस्सा रहा है। राजस्व विभाग के अनुसार यह 1983 में राजस्व गांव बना। तब भी सिरोही का ही हिस्सा था। 1998 में ग्राम पंचायतों के पुनरगठन के दौरान इसे गोयली ग्राम पंचायत में मिलाया गया।
-इनका कहना है…
ग्रामीण मिलने आए थे। ज्ञापन दिया है। स्टे के विधिक पहलूओं को देखा जा रहा है।
संदेश नायक
जिला कलक्टर, सिरोही।