नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि कृषि सुधारों को लेकर बने कानूनों का विरोध करने वाले विपक्षी राजनीतिक दलों का शर्मनाक दोहरा चरित्र सामने आ गया है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कृषि सुधारों को लेकर नरेन्द्र मोदी की सरकर ने जो प्रावधान किए हैं, वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार दस सालों से करने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों का राजनीतिक वजूद खत्म हो रहा है लिहाजा वे स्वयं को बचाने के लिए किसी भी आंदोलन के समर्थन में खड़े हो जाते हैं।
प्रसाद ने कहा कि सिर्फ किसान आंदोलन की बात नहीं है बल्कि नागरिकता संशोधन विधेयक, शाहीन बाग या कोई भी सुधार का विषय हो, कांग्रेस समेत विपक्षी दल बस विरोध के लिए उनके साथ खड़े हो जातें हैं।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र के पृष्ठ 17 और बिंदू 11 में स्पष्ट लिखा था कि कांग्रेस कृषि उत्पाद बाज़ार समिति (एपीएमसी) अधिनियम में संशोधन करेगी ताकि किसानों को फसलों के व्यापार के लिए सभी बंधनों से मुक्ति मिले।
प्रसाद ने कहा कि 2013 में कांग्रेस शासित सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करके कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा था कि वे एपीएमसी में बदलाव लाएं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता एवं पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने भी इस संबंध में सभी मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने कहा कि 11 अगस्त 2010 को पवार ने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और नवंबर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को चिट्ठी लिखकर कहा कि किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र का आना ज़रूरी है और इसके लिए मंडी कानून में बदलाव जरूरी है।
वर्ष 2005 में पत्रकार शेखर गुप्ता को दिए साक्षात्कार में भी पवार ने कहा था कि छह महीने में मंडी अधिनियम खत्म होगा और अगर राज्य मंडी एक्ट में सुधार नहीं करेंगे तो केन्द्रीय वित्तीय मदद राज्यों को नहीं मिलगी।
प्रसाद ने सवालिया लहजे में कहा कि विपक्षी दलों का कृषि कानूनों का अब ये विरोध शुद्ध स्वार्थ की राजनीति नहीं तो क्या है। इस कानून के प्रावधानों को लेकर स्थायी समिति की रिपोर्ट भी आई थी जिसमें समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह भी सदस्य हैं। यादव ने भी किसानों को मंडियों के चंगुल से मुक्त करने की बात की थी। सपा और शिवसेना ने भी विधेयक पर चर्चा के दौरान इसका समर्थन किया था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 नवंबर 2020 में इस कानून को गजट में अधिसूचित करके लागू भी कर दिया था।
प्रसाद ने कहा कि योजना आयोग ने भी कांग्रेस सरकार के समय समझौता खेती की सिफारिश की थी। समझौता खेती के मॉडल राज्यों के तौर पर 2007 से 2012 के बीच आंध्रपदेश, असम, छत्तीसगढ, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, नागालैंड, ओडिशा और सिक्किम के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए ये कदम उठाए गए थे।
उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार 10 सालों में किसान कल्याण के नाम पर ऐसे कदम उठाएं तो उचित है और मोदी सरकार व्यापक चर्चा के बाद छोटे और मंझोले किसानों को उनके उत्पादों के लिए नए अवसर पैदा करे तो अनुचित, ये विपक्षी दलों का दोहरा चरित्र दर्शाता है।
प्रसाद ने कहा कि मोदी सरकार ई-नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (ई-नाम) लेकर आई जिसमें कोई भी किसान खुद को पंजीकृत करके अपने उत्पादों को बेच सकता है। अभी तक 21 प्रदेशों के एक हज़ार मंडियों ने इसमें पंजीकरण किया है जिससे करीब एक करोड़ 68 लाख किसान जुड़े हैं और करीब एक लाख 15 हज़ार करोड़ रुपए का व्यापार हुआ है। इससे किसानों के लिए अवसर बढ़े हैं।
उन्होंने कहा कि खरीफ और रबी की छह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी की गई है। सरकार का इरादा एमएसपी को खत्म करने का होता तो इतनी बड़ी सरकारी खरीद नहीं होती। जाहिर है विपक्ष किसानों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा है।