दिल्ली। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने संकल्प को पूरा करते हुए नागिरकता संशोधन बिल को संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा से पास करा लिया है। दोनों सदनों से यह पास होने के बाद कांग्रेस समेत विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन बिल दोनों सदनों में पास करा कर कहा कि यह हमारे चुनावी एजेंडे में था। लेकिन इसके बाद कांग्रेस और टीएमसी समेत कई विपक्षी दलों ने कहा कि मोदी सरकार ने देश को बांटने का काम किया है।
केंद्र सरकार के इस बिल के विरोध में आसाम समेत कई राज्यों में आगजनी की घटनाएं हो रही हैं। नागरिकता संशोधन बिल दोनों सदनों में पास होने के बाद विपक्ष खासकर कांग्रेस ने मोदी सरकार को आड़े हाथ लिया है। नॉर्थ ईस्ट में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच का उसने केंद्र सरकार को इसके लिए जिम्मेदार कहा है। कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि भाजपा सरकार ने देश में आग लगाने का काम किया है। विपक्ष के नेता नागरिकता संशोधन बिल पर देशभर में लोगों को भड़काने पर गृहमंत्री अमित शाह ने काफी तल्ख तेवर में कहा कि कांग्रेस समेत विपक्ष समाज को बांटने की राजनीति न करें।
मोदी सरकार ने संविधान की उड़ा दी धज्जियां : कांग्रेस
नागरिकता संशोधन बिल पर कांग्रेस ने आज राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाया है। राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की भारत बचाओ रैली में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला।
सोनिया गांधी ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून से भारत की आत्मा तार तार हुई है। सोनिया गांधी ने कहा कि आज नौजवान नौकरी पाने के लिए दर दर भटक रहे हैं। दशकों से ऐसी बेरोजगारी नहीं थी, लेकिन अब हर ओर बेरोजगारी है। सोनिया ने आगे कहा कि आज पूरा देश पूछ रहा है कि सबका साथ-सबका विकास कहां है। मोदी की गलत नीतियों की वजह से देश बर्बाद हो रहा है।
नागरिकता बिल के विरोध में देश के कई हिस्सों में हाे रहे हैं प्रदर्शन
पिछले 4 दिनों से पूर्वोत्तर राज्यों समेत देश के कई भागों में नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में हिंसा आगजनी और प्रदर्शन जारी है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने देश के लोगों से शांति बनाने की अपील की है लेकिन इसमें कांग्रेस समेत भी विपक्ष इन लोगों को और भड़का रहा है। नागरिकता बिल के खिलाफ पूर्वोत्तर में बवाल और हंगामे के साथ देश के अलग अलग हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन जारी है। असम, त्रिपुरा में सेना तैनात है और कर्फ्यू भी लागू है। हालांकि असम में फिलहाल शांति की खबर है।
गुवाहाटी में शनिवार को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक के लिए कर्फ्यू में ढील दी गई है। जबकि मोबाइल इंटरनेट और मैसेजिंग सेवा अभी भी बंद है। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद गुरुवार शाम से ही इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी। वहीं देश भर में अशांति का आरोप लगाते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नागरिकता संशोधन अधिनियम का असम, त्रिपुरा और दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया और पड़ोसी बांग्लादेश के साथ देश के संबंधों पर कानून को लेकर पड़ने वाले असर पर चिंता जताई है।
नागरिकता संशोधन बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी, बन गया कानून
नागरिकता संशोधन बिल संसद से पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है। गुरुवार देर रात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल अब कानून बन चुका है। इस बिल में तय प्रावधानों के मुताबिक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का नियम है। इस कानून के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं उन्हें पांच साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दी जाएगी। अभी तक यह समयसीमा 11 साल की थी।
सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ 12 याचिकाएं दाखिल
नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं लगातार सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो रही हैं। इन सभी याचिकाओं में नए कानून को समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया गया है। कहा गया है कि बाहर से आने वाले लोगों को नागरिकता देने में धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला यह कानून संविधान के खिलाफ है। इन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कब सुनवाई होगी, यह अभी तय नहीं है। मामले में सबसे पहले याचिका केरल की राजनीतिक पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने दाखिल की। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, पीस पार्टी, कांग्रेस नेता जयराम रमेश समेत कुल 12 लोग अब तक याचिका दाखिल कर चुके हैं।
इन सभी याचिकाओं में संसद से पास नए कानून को संविधान के खिलाफ बताया गया है। इनमें कहा गया है कि अनुच्छेद 14 के तहत हर व्यक्ति को कानून की नजर में समानता का मौलिक अधिकार हासिल है। सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट इसका हनन करता है। यह कानून भारत के पड़ोसी देशों से हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी, सिख, जैन जैसे समुदाय के सताए हुए लोगों को नागरिकता देने की बात करता है। लेकिन इसमें जानबूझकर मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। भारत का संविधान इस तरह के भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता है। इन याचिकाओं में यह मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट तुरंत इस कानून के अमल पर रोक लगा दे।
इस मामले में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय समेत कुछ लोगों ने कैविएट दाखिल कर दी है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट उन्हें भी सुने। कानून पर रोक लगाने वाली याचिकाओं पर कोई एकतरफा आदेश पारित न करे। वैसे भी ऐसा नहीं लगता कि कानून के अमल पर रोक लगाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट सरकार की बात सुने बिना देगा। ऐसे में, अगले हफ्ते सिर्फ 3 दिन की कार्रवाई में कानून के अमल पर रोक लगाने जैसा आदेश आ जाएगा, इसकी उम्मीद कम ही नजर आती है। इस बात की गुंजाइश ज़्यादा लगती है कि मामला विस्तृत सुनवाई के लिए जनवरी के महीने में लगाया जाएगा।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार