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माहवारी पर लिपटे शर्म का चोला उतार रहा 'पैडमैन' : राधिका आप्टे - Sabguru News
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माहवारी पर लिपटे शर्म का चोला उतार रहा ‘पैडमैन’ : राधिका आप्टे

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माहवारी पर लिपटे शर्म का चोला उतार रहा ‘पैडमैन’ : राधिका आप्टे
PadMan Star Radhika Apte Shares Her Period Story
PadMan Star Radhika Apte Shares Her Period Story
PadMan Star Radhika Apte Shares Her Period Story

नई दिल्ली। ‘माहवारी को शर्म के चोले में किसने लपेटकर रखा है? पुरुषों में तो इसे लेकर जानकारी का अभाव शुरू से रहा है, महिलाएं ही हैं, जो अपनी बहू, बेटियों में माहवारी को लेकर शर्म बढ़ा रही हैं।’ यह कहना है फिल्म की नायिका राधिका आप्टे का।

वह कहती हैं कि ‘पैडमैन’ भारतीय सिनेमा के इतिहास की शायद पहली फिल्म है, जिसने फिल्म के जरिए समाज में जागरूकता लाने के नए कीर्तिमान गढ़े हैं। सैनिटरी पैड से जीएसटी हटाने की मुहिम को लेकर राधिका खुद को अलग रखते हुए कहती हैं कि इससे बेहतर होगा कि इन्हें गांवों और दूरदराज के क्षेत्रों में मुफ्त बांटा जाए।

राधिका ने कहा कि दुख होता है यह जानकर कि देश की 82 फीसदी महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करतीं। सैनिटरी पैड से जीएसटी हटाने से अच्छा है कि इन्हें ग्रामीण और दूरदराज इलाकों की महिलाओं को मुफ्त मुहैया कराया जाए।

पुणे के डॉक्टर परिवार से ताल्लुक रखने वाली राधिका उन कलाकारों में से हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी फिल्में चले न चले, लेकिन उनका किरदार हमेशा छाप छोड़ जाता है।

फिल्म मे राधिका का एक डायलॉग है ‘आदमी दर्द में तो जी सकता है लेकिन शर्म में नहीं जी सकता’। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहती हैं कि हमारा समाज माहवारी को लेकर शर्म के चोले में लिपटा हुआ है और यह शर्म महिलाओं से ही तो शुरू होती है।

वह एक मां ही होती है, जो अपनी बेटी की पहली माहवारी पर उसे परिवार के अन्य सदस्यों से छिपाकर सैनिटरी पैड देती है। उसे मंदिर में जाने नहीं दिया जाता। रसोई में घुसने की मनाही होती है। समाज के कई तबकों में तो माहवारी के समय महिलाओं के बर्तन और बिस्तर तक अलग कर दिए जाते हैं, उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार होता है। पैडमैन इसी शर्म के चोले को उतार फेंकने के लिए बनी है।

राधिका कहती हैं कि ऐसा क्यों होता है कि जब टेलीविजन पर अचानक से सैनिटरी पैड का विज्ञापन आता है, तो हम पानी पीने या बाथरूम के बहाने कमरे से खिसक जाते हैं या बगले झांकने लगते हैं। बदलाव कहां से आएगा, यह जब घर से शुरू होगा, तभी समाज बदलेगा।

हालांकि, वह कहती हैं कि नई पीढ़ी समझदार और कई मायनों में जागरूक है। वह इस तरह की चीजों को समझ रही है, लेकिन हम सभी को इसे लेकर संवेदनशील होना पड़ेगा।

पिछले 14 वर्षो से थिएटर से जुड़ी और कत्थक में पारंगत राधिका फिल्म में अपने किरदार के बारे में बताती हैं कि मैं असल मायने में इस किरदार से बिल्कुल अलग हूं। मैं महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर मुखर होकर बात करने वालों में से हूं। मेरे परिवार में ज्यादातर लोग डॉक्टर हैं तो मैं इन विषयों को लेकर बोल्ड रही हूं। मेरी पहली माहवारी पर तो जश्न मनाया गया था, लेकिन फिल्म में जो किरदार मैं निभा रही हूं, वह इससे उलट है।

फिल्म में अक्षय के साथ स्क्रीन शेयर करने के बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि फिल्म में अक्षय की मासूमियत दर्शकों को थिएटर में खींचकर लाने पर मजबूर कर रही है।

वह कहती हैं कि हम सैनिटरी पैड को लेकर फूहड़ता नहीं फैला रहे हैं। यह समझने की जरूरत है कि माहवारी के दौरान स्वच्छता नहीं बरतने से बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा रहता है। इससे होने वाले कैंसर से महिलाओं की मौत हो रही है। इसे टैबू क्यों समझा जाता है, जबकि हमारे ही देश के कुछ राज्यों में पहली माहवारी होने पर जश्न मनाया जाता है, क्योंकि इसे शरीर में खून साफ करने की प्रक्रिया के तौर पर देखा जाता है।