जयपुर। अफगानिस्तान में कराए गए सत्ता परिवर्तन के पीछे पाकिस्तान का प्रमुख हाथ है। वहां लडने वाले 50-60 हजार तालिबानी आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के 30-40 हजार सैनिक और सेनाधिकारी हैं। वे तालिबान का नेतृत्व कर रहे हैं।
बलवान अमरीका साथ ही 3 लाख अफगानिस्तानी सेना तालिबान के सामने से पीछे हटने के कारण उनकी हिम्मत बढ गई है। इसलिए भविष्य में पाकिस्तान तालिबानियों का उपयोग कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों के लिए कर सकता है। इससे पहले ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ और अन्य युद्धों के समय पाकिस्तान ने पठान, पख्तून के 15-20 हजार कट्टर आतंकवादियों की टोलियों की सहायता से भारत पर आक्रमण किया था।
तब भारतीय सैनिकों ने हजारों आतंकवादियों को मारकर उन्हें भागने पर विवश कर दिया था। भारत के सैनिक, हवाई लडाई करने वाले अमरीकी सैनिक और शस्त्र नीचे रखने वाले अफगानिस्तानी सैनिकों के समान नहीं हैं। भारत के सैनिक मैदान में उतरकर सटीक प्रत्युतर देते हैं, इसलिए यदि कश्मीर में तालिबानियों ने आक्रमण किया तो उसे सटीक प्रत्युत्तर दिया जाएगा।
यह बात सेना के 18 शौर्य पुरस्कार प्राप्त (सेवानिवृत्त) ब्रिगेडियर हेमंत महाजन ने हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित तालिबान : भारत के सामने नई चुनौतियां ‘ऑनलाइन’ विशेष संवाद में कही। यह कार्यक्रम 13 हजार लोगों ने देखा।
संवाद को संबोधित करते हुए हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क, मुनव्वर राणा और स्वरा भास्कर ने अप्रत्यक्ष रूप से तालिबान का समर्थन कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बदनामी की है। वास्तव में यह लोकतंत्र और सेक्युलरिजम की हार है।
अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों के अमानवीय अत्याचार देखकर भी ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ चुप है। कश्मीर से साढे चार लाख हिन्दुओं को खदेडने पर भी वह चुप ही था। आज भारत में अनेक स्थानों पर मिनी पाकिस्तान निर्माण हुए हैं। प्रतिदिन हिन्दुओं का पलायन हो रहा है। ऐसे समय में तालिबान के कारण भारत के समक्ष निर्माण हुए संकटों का सभी हिन्दुओं को एकत्रित होकर सामना करना चाहिए। हमें छत्रपति शिवाजी महाराजजी की युद्धनीति का उपयोग कर हिन्दू राष्ट्र स्थापना हेतु संघर्ष करना होगा।
भारत रक्षा मंच के राष्ट्रीय महासचिव अनिल धीर ने कहा कि फ्रान्स और इजराइल द्वारा मुसलमानों पर अत्याचार करने का आरोप लगाते हुए पूर्ण विश्व के मुसलमान हिंसक निषेध मोर्चे निकालते हैं परंतु अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों द्वारा मुसलमानों को निर्दयता से मारे जाने पर भी ये लोग चुप क्यों है? यह इस्लामी देश और संगठनों की दोहरी भूमिका है, ढोंग है। आज तालिबान की स्थिति पर पाक और चीन प्रसन्न हैं परंतु कल उन्हें समस्या अवश्य होगी।