नई दिल्ली। देश के चार लाख 81 हज़ार किन्नरों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने वाले विधेयक पर मंगलवार को संसद की मुहर लग गई।
राज्यसभा ने एक घण्टे तक चली बहस के बाद इस विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया जबकि राज्यसभा की संयुक्त प्रवर समिति के पास भेजने के द्रमुक के तिरुचि शिवा के प्रस्ताव को सदन ने 55 के मुकाबले 74 मतों से खारिज कर दिया।
लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुका है इस विधेयक को पहले शिवा ने 2014 में पूर्व निजी विधेयक के रूप में पेश किया था और यह सदन से पारित भी हो गया था। लेकिन लोकसभा भंग होने के कारण यह निचले सदन से पारित नही हो सका था।
समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलौत ने कहा कि इस विधेयक से समाज मे उभयलिंगियों के साथ भेदभाव खत्म हो जाएगा और उनके साथ अन्याय दूर हो जाएगा एवं उन्हें समान अधिकार तथा अवसर मिलेंगे।
उन्होंने बताया कि किन्नरों को अब आई कार्ड मिलेगा। उनके माता पिता उन्हें परिवार से निकाल नही सकेंगे। उन्हें बिना किसी भेदभाव के घर में ही रखना होगा।
गहलौत ने बताया कि अगर कोई व्यक्ति अपना लिंग परिवर्तन कराता है तो उस पर यह विधेयक लागू होगा। उन्होंने बताया कि इन किन्नरों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक राष्ट्रीय परिषद का गठन किया जाएगा जिसमे 30 सदस्य होंगे और हर तीन माह पर इसकी बैठक होगी।
गहलौत ने कहा कि इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भी भेजा गया था तथा लोकसभा भंग होने के कारण इसे पारित नहीं कराया जा सका इसलिए अब इसे संयुक्त प्रवर समिति के पास भेजे जाने की जरूरत नही है। लेकिन शिवा ने मतविभाजन की मांग कर दी। मतविभाजन में शिवा का प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव सदन ने मंजूर नहीं किया।
सदन में कांग्रेस के उपनेता आनन्द शर्मा ने कहा कि इस विधेयक को और ठोस बनाने के लिए इसे प्रवर समिति के पास भेजा जाए। इसे सर्वसम्मत्ति से पारित किया जाए क्योंकि किन्नरों के साथ सदियों से अन्याय हुआ है। लेकिन श्री गहलौत ने इसे स्वीकार नहीं किया। शिवा और कांग्रेस के राजीव गौड़ा ने विधेयक पर कई संसोधन पेश किए पर उन्हें या तो हटा लिए या ध्वनि मत से उन्हें नामंजूर कर दिया गया।