नयी दिल्ली । लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद के मानसून सत्र के पहले सदन के सभी सदस्यों से अनुरोध किया है कि 16वीं लोकसभा के आखिरी वर्ष में अधिक से अधिक विधायी कार्य संपन्न कराने में योगदान दें तथा राजनीतिक एवं चुनावी लड़ाई को सदन के बाहर अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लड़ें।
महाजन ने सभी लोकसभा सदस्यों को पत्र लिख कर यह अनुरोध किया है। उन्होंने कहा कि अब 16वीं लोक सभा के कार्यकाल का अंतिम वर्ष प्रारंभ हो चुका है और मात्र तीन सत्र बचे हैं। समय कम है और काम ज्यादा और मुख्यतः मानसून सत्र और शीत सत्र में ही लोकसभा में विधायी कार्यों पर चर्चा एवं कार्य के लिए समय उपलब्ध रहेगा।
उन्होंने कहा की भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, सिद्धान्तों एवं आदर्शों का न केवल पूरे विश्व में उदाहरण दिया जाता है बल्कि ये संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। दुनियाभर में लोग उत्सुकता से हमारी संसदीय कार्यवाही पर नज़र रखते हैं। सभा की कार्यवाही को लगातार बाधित करने से हमारे लोकतंत्र की इच्छित छवि प्रस्तुत नहीं होती है।
उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अनेक अवसरों पर देखा गया है कि सोशल मीडिया में संसद, संसदीय परम्पराओं और लोकतंत्र के प्रति अपेक्षित उत्साह एवं सकारात्मकता क्षीण हो रही है। यह प्रवृति हमारे लोकतंत्र के लिए एक चुनौती बन सकती है। इसलिए अब अवसर आ गया है कि हम स्वयं आत्मनिरीक्षण करें कि हमारी संसद एवं लोकतंत्र के लिए कौन-सी दिशा अथवा छवि उचित है।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि जनता ने हमें इस महान सभा का सदस्य बनने का ‘आशीर्वाद’ दिया इसलिए हम सबका सामूहिक कर्तव्य है कि लोकतंत्र के इस मंदिर की प्रतिष्ठा और शुचिता को सदैव अक्षुण्ण बनाए रखें।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के इस पवित्र मंच पर जनता ने विश्वास दिखाकर जिन आशाओं और अपेक्षाओं के साथ आपको इस महान सभा की सदस्यता का सौभाग्य प्रदान किया है तो आप भी चाहते होंगे कि न केवल अपने क्षेत्र की जनता एवं देश की अपेक्षाओं पर खरे उतरें बल्कि देश की उन्नति और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने में भी अपना योगदान दें।
उन्होंने कहा की मुझे आशा है कि जहां चुनावी एवं राजनीतिक लड़ाई संसदीय क्षेत्रों में लड़ी जाएगी वहीं सदस्यगण सदन में अपने लोकतांत्रिक कर्तव्य एवं मर्यादा भी बखूबी निभाएंगे। मुझे विश्वास है कि भविष्य में भी आप सभी का पूर्ण सहयोग हमें प्राप्त होगा एवं आप सभी संसदीय प्रतिष्ठा, अनुशासन एवं मर्यादा के अपेक्षित प्रतिमान स्थापित करेंगे।
महाजन ने पत्र में लिखा कि सदन की कार्यवाही के सुचारू संचालन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर उन्हाेंने पूर्व में भी पत्रों के माध्यम से अपने विचार साझा किए थे जिनके प्रत्युत्तर में अनेक सदस्यों से उन्हें सकारात्मक एवं बहुमूल्य सुझाव भी प्राप्त हुए थे। उन्होंने विभिन्न दलों के नेताओं से सर्वदलीय बैठक के दौरान एवं व्यक्तिगत रूप से भी सभा के सुचारू संचालन हेतु समय-समय पर चर्चा की थी एवं सभी से सहयोग का निवेदन किया था।
उन्होंने कहा की अब 16वीं लोक सभा के कार्यकाल का अंतिम वर्ष प्रारंभ हो चुका है और मात्र तीन सत्र बचे हैं। समय कम है और काम ज्यादा और मुख्यतः मानसून सत्र और शीत सत्र में ही लोक सभा में विधायी कार्यों पर चर्चा एवं कार्य के लिए समय उपलब्ध रहेगा। इसके साथ ही सभी सदस्यों को अपने-अपने क्षेत्र के विकास कार्यों से संबंधित विषयों की चर्चा सभा में करनी है ताकि सभा की कार्यवाही में अपनी सहभागिता का विवरण अपने-अपने क्षेत्र में जाकर आम जनता को दे सके।
उन्होंने कहा की अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकती हूं कि जनप्रतिनिधियों के कार्यों पर जनता की सीधी नज़र होती है और मीडिया भी संसद और संसदीय क्षेत्र में उनके कार्यों का विस्तृत विवरण जनता के समक्ष प्रस्तुत करता है। सदन की अध्यक्ष होने के नाते मैं चाहूंगी कि देश की सबसे बड़ी पंचायत-लोक सभा में आप चुनकर आए हैं तो अपने दायित्वों का निर्वहन सक्षमता से करें।
उन्होंने कहा कि 16वीं लोक सभा के कई सत्रों में उल्लेखनीय काम हुआ है, वहीं कुछ सत्रों में व्यवधान भी हुआ है। ऐसा कई बार हुआ है जब कुछ सदस्यों ने सभा के बीचों-बीच आकर नारे लगाए, तख्तियां और बैनर दिखाए और सभा की कार्यवाही में बाधा पहुंचाई। इसके परिणामस्वरूप सभा की कार्यवाही बार-बार स्थगित हुई।
महाजन ने कहा कि विचार-विमर्श, मत-मतान्तर और सहमति-असहमति किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अभिन्न अंग होते हैं। इस प्रकार के विमर्श और सकारात्मक विरोध लोकतंत्र को प्राणवायु प्रदान करते हैं। लेकिन यह विमर्श, मतान्तर एवं असहमति स्वीकृत मर्यादाओं के अनुरूप और शालीनता की सीमाओं के भीतर ही होना चाहिए ताकि लोकतंत्र के प्रति जनता की आस्था अडिग रहे।
उन्होंने कहा की हमने ही सभा के कार्य संचालन संबंधी नियम बनाए हैं जो पिछले कई वर्षों के दौरान निरंतर विकसित किए गए हैं, इसलिए क्या हम सबका और अधिक नैतिक उत्तरदायित्व नहीं बनता है कि हम इन नियमों का पालन सुनिश्चित करें?
उन्होंने यह भी कहा कि दूसरे पक्ष द्वारा पूर्व में सभा में व्यवधान पहुंचाने और अमर्यादित व्यवहार करने का तर्क देकर क्या हम अपने व्यवहार को न्यायसंगत ठहरा सकते हैं। यदि यह तर्क स्वीकार कर लिया गया तो व्यवधान का यह क्रम तो निरंतर चलता रहेगा और इस प्रकार की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लग पाएगी।
उन्होंने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक मूल्य, सिद्धान्त एवं आदर्श संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी हाल की विदेश यात्रा के दौरान जब उनकी प्रवासी भारतीयों एवं अन्य विदेशी गणमान्य व्यक्तियों से मुलाकात हुई तो उन्होंने सभा की कार्यवाही में निरंतर हो रहे व्यवधानों पर निराशा एवं चिन्ता व्यक्त की।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संसद में होने वाले विचार-विमर्श और चर्चा से सामाजिक संस्थाओं में होने वाले विचार-विमर्श और चर्चा का स्तर, मानदंड एवं मर्यादा भी तय होती है और आने वाली पीढ़ी की लोकतांत्रिक सोच पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता के एक श्लोक को उद्धृत करते हुए कहा की श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करते हैं, अन्य पुरुष भी वैसा ही आचरण करते हैं। वे जो आदर्श प्रस्तुत करते हैं, समस्त मनुष्य उसी का अनुगमन करने लगते हैं।
महाजन ने कहा की मुझे विश्वास है कि भविष्य में भी आप सभी का पूर्ण सहयोग हमें प्राप्त होगा एवं आप सभी संसदीय प्रतिष्ठा, अनुशासन एवं मर्यादा के अपेक्षित प्रतिमान स्थापित करेंगे।