नई दिल्ली। यदि आप एक रहस्य रखना चाहते हैं, तो आपको इसे अपने आपसे ही छिपाना होगा। शीर्ष अदालत ने कथित पेगासस जासूसी मामले में जांच का आदेश देने का फैसला लिखने की शुरुआत बिहार के मोतिहारी में जन्मे ब्रिटिश लेखक जॉर्ज ऑरवेल के इसी उद्धरण के साथ की, जिस फैसले में कहा गया है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन से बचाने के लिए यह अदालत कभी भी नहीं हिचकी है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार के रवैया पर नाराजगी व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया कि वह अपनी सीमा समझती है तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में दखल नहीं देगी, लेकिन सुरक्षा के नाम पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों में अतिक्रमण के मामले में मूकदर्शक बनकर भी नहीं रहेगी और इस मुद्दे पर हमेशा फ्री पास नहीं मिलेगा।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन और न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि पत्रकारों, वकीलों, राज नेताओं को ही नहीं, हर नागरिक को निजता के उल्लंघन से सुरक्षा मिलनी चाहिए। पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए निजता पर पर अतिक्रमण के जो आरोप लगे हैं, उसकी प्रकृति व्यापक प्रभाव वाला है। इसलिए इसकी सच्चाई का पता लगाया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे का मुद्दा उठाकर सरकार को हर बार मुफ्त पास नहीं मिल सकता। पीठ ने कहा कि यह अदालत हमेशा ही राजनीतिक परिधि में प्रवेश नहीं करने के प्रति सचेत रही है।
इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए भारत के करीब 300 प्रमुख लोगों की जासूसी फोन के माध्यम से करने की आरोप संबंधी खबरें आने के बाद अदालत में वकील एम एल शर्मा के अलावा कई पत्रकारों और राजनेताओं की ओर से जनहित याचिकाएं दाखिल की गई थीं।
इन याचिकाओं में मीडिया की खबरों के हवाले से कहा गया है कि 45 देशों के 50,000 नंबरों को स्पाइवेयर पेगासस के माध्यम से निशाना बनाया गया, जिसमें भारत के करीब 300 मोबाइल नंबर शामिल हैं। यह नंबर कई वरिष्ठ पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ताओं, मौजूदा एवं पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों, राजनेताओं, वकीलों, डॉक्टरों के हैं।
मामला सामने आने के बाद सॉफ्टवेयर बनाने वाली विदेशी कंपनी ने साफ किया था कि उसने दुनिया के किसी भी देश में किसी निजी कंपनी को यह सॉफ्टवेयर नहीं भेजी थी। इसके बाद सरकारी तंत्र पर और संदेह उत्पन्न हो गया।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह एक जांच कमेटी गठित करना चाहती है, जिसके सामने वह पेगासस जासूसी संबंधित सरकार से जुड़ी तथ्यों का खुलासा करेगी।
उच्चतम न्यायालय ने सरकार ने इस मामले में उसके पक्ष का विस्तृत ब्योरा हलफनामे के जरिए दाखिल करने के कई मौके दिए, लेकिन सरकार ने यह कहते हुए दाखिल करने से इन्कार कर दिया कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और इसके इस्तेमाल करने और नहीं करने को लेकर इस तरीके की बहस नहीं की जानी चाहिए। इसका लाभ आतंकी उठा सकते हैं।
केंद्र सरकार की हलफनामा दायर नहीं करने के रवैया से नाराज अदालत ने उसे फटकार लगाई और इस मामले में आज उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर वी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी गठित कर दी, जिसे आठ हफ्ते में अंतरिम रिपोर्ट देने को कहा गया है। अदालत ने अपने 46 पृष्ठों में अपना आदेश दिया।
पेगासस जासूसी : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को लगाई फटकार, साइबर और फॉरेंसिक विशेषज्ञों से जांच के आदेश