सिरोही। सिरोही जिले के पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू में आम स्थानीय नागरिक या होटल व्यवसाई माउंट आबू उपखण्ड अधिकारी कार्यालय में अपने पुराने टॉयलेट तुड़वाकर उसे नया बनवाने या टॉयलेट शीट और टाइल्स बदलने की अर्जी लगाएं तो उसे उपखण्ड अधिकारी सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और पर्यावरण सुरक्षा का हवाला देकर लटका दे रहे हैं।
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और पर्यावरण सुरक्षा की दलीलें माउंट आबू वाइल्ड लाइफ सेंच्युरी में दीवार से सटी लिमडी कोठी में कमरों में अटैच्ड लेटबाथ बनवाने के लिए माउंट आबू उपखण्ड अधिकारियों ने दरकिनार कर दी। इसे मुक्त हस्त से टॉयलेट शीट्स, वाशबेसिन, ग्रेनाइट, ईंटे, सीमेंट, बजरी, टाइल्स आदि लुटाई। अपने से पूर्व उपखण्ड अधिकारियों के काम पर शक करने वाले वर्तमान उपखण्ड अधिकारी ने भी आम जनता की फ़ाइल्स की तरह लिमडी कोठी की फ़ाइल का अवलोकन करके उसे जारी की जा रही अतिरिक्त सामग्री की जानकारी नहीं ली।
वेबसाइट से हुआ खुलासा
माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करके किस तरह से लिमडी हाउस को नियम विरुद्ध अनाप शनाप निर्माण सामग्री जारी की है इसका खुलासा मेक माय ट्रिप की ऑनलाइन बुकिंग पोर्टल में लिमडी हाउस के फोटोज से होती है। सबगुरु न्यूज ने कई घण्टे तक ऑनलाइन बुकिंग वेबसाइटों को तलाशा तो https://www.makemytrip.com/hotels/mount_abu-hotels-near-brahma_kumaris_headquarter.html वेब एड्रेस पर एक इंटरफेस खुला।
उसमें नवे नम्बर पर ‘माउंट आबू होटल्स’ नाम के टाइटल पर लिमडी कोठी की प्रस्तावित तस्वीर दिखी। इसे खोला तो करीब 19 फोटोज इसके इंटीरियर के थे। जिसमें कमरे और उसमें अटैच्ड करके बनाये गए टॉयलेट की तस्वीरें भी थीं।
इन्हीं फोटोज में लिमडी हाउस के टॉइलेट के इंटीरियर के फोटोज भी हैं जो बता रहे हैं कि किस तरह से माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने उन्हें मिले अधिकारों का दुरुपयोग करके आम आदमी को अपने घरों और लीगल व्यवसायिक परिसरो में टूटे हुए टॉयलेट बनवाने की भी अनुमति नहीं दी लेकिन लिमबड़ी कोठी को निहाल कर दिया।
सीसीटीवी कैमरे के लिंक SDM और आयुक्त के पास
मेक माय ट्रिप वेबसाइट पर लिमडी कोठी की जो तस्वीरें दी गई हैं उसके लिए मटेरियल जारी करने या स्वीकृति जारी नहीं करने के बावजूद वहां तक इतनी निर्माण सामग्री पहुंच जाने की जवाबदेही से माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों और नगर पालिका आयुक्तों को भागने नहीं दिया जा सकता है। मटेरियल जारी करने का एकाधिकार राजस्थान सरकार ने माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों को दिए हुए थे। ऐसे में इतना मटेरियल उन्हीं ने जारी किया होगा।
यदि जारी नहीं भी किया है तो माउंट आबू में प्रवेश के लिए सिर्फ एक ही मार्ग है। इसके टोल नाके पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इनकी रिकॉर्डिंग को अपने कार्यालय या दुनिया के किसी भी कोने से देखने के लिए इनके लिंक माउंट आबू के कई उपखण्ड अधिकारियों और नगर पालिका आयुक्तों के मोबाइल पर रहते हैं। इसके बावजूद भी इतना मटेरियल उपखण्ड अधिकारियों की अनुमति के बिना घुस गया है तो उपखण्ड अधिकारी और नगर परिषद आयुक्तों की लापरवाही या जानबूझकर अनदेखी स्पष्ट नजर आ रही है।
हर दिन 32 लाख की कमाई की व्यवस्था
माउंट आबू का आम आदमी अपनी कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को नियमानुसार सही करके अपने रोजी रोजगार की व्यवस्था करना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी जोनल मास्टर प्लान सबने उसके इस अधिकार को सुरक्षित रखा है। लेकिन गौरव सैनी से कनिष्क कटारिया तक कई उपखण्ड अधिकारी कार्यवाहक आयुक्त पद पर रहते हुए माउंट आबू के लोगो को ये अधिकार देने में किसी न किसी तरह का अड़ंगा लगाया है।
लिमबड़ी हाउस की ऑनलाइन बुकिंग की वेबसाइट में दी गई तस्वीरें स्पष्ट बता रही हैं कि पिछले तीन चार उपखण्ड अधिकारियों ने किस तरह से लिमडी हाउस के लिए ये व्यवस्था कर दी है कि राज्य के सत्ताधारी दल के दो नेता पुत्रों की वरदहस्ती में इसके मालिक प्रतिदिन 32 लाख रुपये कमा सकें। ऑनलाइन बुकिंग वेबसाइट में नक्शा और जो लोकेशन दिया हुआ है उसमें लिमबडी हाउस, वार्ड संख्या 20, आबू पर्वत सिरोही, के पते और ब्रह्मकुमारी मुख्यालय से 220 मीटर दूरी की लोकेशन वाली होटल में प्रति रात का किराया 48 हजार बताया गया है।
होटल के फ्रंट एलिवेशन की फ़ोटो में दिख रही खिड़कियों के हिसाब से इसमें करीब 40 कमरे होंगे। लेकिन एक गलियारे के फ़ोटो में गलियारे के दोनो तरफ कमरे नजर आ रहे हैं। ऐसे में इसमें करीब 80 कमरे हो सकते हैं। हर कमरे का किराया वेबसाइट के अनुसार प्रति रात 40 हजार भी मानें तो माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा माउंट आबू के स्थानीय लोगों को दिए हुए हक से वंचित करके लिमबड़ी हाउस के मालिकों की प्रति दिन की 32 लाख रुपये की कमाई की व्यवस्था कर दी है।
माउंट आबू में ईको सेंसेटीव जोन सुप्रीम कोर्ट की अनुपालना में लागू किया गया है। अब इसके पीछे इन उपखण्ड अधिकारियों की क्या नीयत रही ये प्रशासनिक जांच की बजाय सुप्रीम कोर्ट या एनजीटी की देखरेख में न्यायिक जांच का विषय है। क्योंकि माउंट आबू के आम आदमी को दिए हुए हक को बाहर से आये लोगों को देने का ये काम कथित रूप से प्रदेश के जिन नेताओं के पुत्रों की देखरेख में होना बताया जा रहा है, उनके प्रभाव से चाहकर भी कोई अधिकारी खुदको निष्प्रभावी नहीं रख सकता है।
वेबसाइट की तस्वीरों में लिमबड़ी कोठी में दिख रहा इतना जबरदस्त परिवर्तन ये बता रहा है कि पिछले करीब तीन साल से माउंट आबू के उपखण्ड अधिकारी और नगर परिषद आयुक्त कथित रूप से सत्ताधारी दल के जोधपुर बेस्ड दो नेताओं के पुत्रों की सहूलियत से ही लगने के जो आरोप लगते रहे वो काफी हद तक सही नजर आ रहे हैं।
लगातार….