जयपुर। आज बिना सेना के भी किसी देश पर नियंत्रण प्राप्त करना संभव है। स्वयं के उत्पादन क्रय करने को विवश कर उस देश पर सहजता से नियंत्रण प्राप्त कर सकते है। इसका एक उदाहरण पेटा द्वारा भारत में आरंभ की गई वेगन मिल्क (शाकाहारी दूध) की चर्चा से सामने आया है।
अमरीका में सोयाबीन में अनुवांशिक परिवर्तन कर उससे ‘वेगन मिल्क’ बनाया जाता है। उसमें अधिक प्रोटीन होते हैं। इस ‘सोयामिल्क’ का प्रचार करते समय फसल पर विशाल मात्रा में विषैले कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है यह बात जानबूझकर छिपाई जाती है।
भारत में गाय के दूध का बडा बाजार है। उस पर विदेशी कंपनियों का वर्चस्व कायम करने के लिए अमरीका की ‘पेटा’ संस्था ने अमूल प्रतिष्ठान को प्राणियों के दूध की तुलना में वेगन मिल्क बनाने का परामर्श दिया है।
यह रहस्योद्घाटन हरियाणा के अध्ययनकर्ता और विवेकानंद कार्य समिति के अध्यक्ष नीरज अत्री ने किया। वे हिन्दू जनजागृति समिति आयोजित क्या है पेटा की सच्चाई?, ऑनलाइन विशेष संवाद को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम समिति के जालस्थल Hindujagruti.org, यू-ट्यूब और ट्विटर पर 4797 लोगों ने देखा।
इस संवाद में पेटा की पोल खोलते हुए सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने कहा कि ‘पेटा’ का जालस्थल देखने पर ध्यान में आता है कि उन्होंने केवल हिन्दुओं की विविध धार्मिक प्रथा, परंपरा में प्राणियों पर होनेवाले आक्रमण रोकने के लिए कार्य करने के उदाहरण दिए हैं, लेकिन बकरी ईद पर प्राणियों की बलि न दी जाएं इसलिए वे प्रचार नहीं करते। इसके विपरीत वे हलाल मांस का समर्थन करते हैं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और प्रमाण संस्था (FSSAI) द्वारा वेगन मिल्क को दूध के रूप में मान्यता न देने पर भी केवल विदेशी कंपनियों का स्वार्थ पूर्ण करने हेतु पेटा भारत में प्रचार कर रहा है। इसलिए पेटा की प्रत्येक कृति का सूक्ष्म निरीक्षण केंद्र सरकार द्वारा करना आवश्यक है।
संवाद को संबोधित करते हुए हिन्दू जनजागृति समिति के दिल्ली प्रवक्ता नरेंद्र सुर्वे ने कहा कि भारत में प्राचीन काल से प्राणी, वनस्पति, निसर्ग की पूजा की जाती है। इसलिए भारत में पेटा जैसी संस्था की आवश्यकता नहीं है। अमरीका में प्रति वर्ष 3.50 करोड गाय-भैंस, 12 करोड सुअर, 70 लाख भेड, 3 करोड बतख मारे जाते हैं। अत: प्राणी हिंसा रोकने के लिए पेटा को प्रथम अपने देश में प्रयास करने की अधिक आवश्यकता है।
भारत में 7 लाख करोड रुपए का दूध का व्यवसाय है। अमूल 10 करोड किसानों से दूध क्रय करता है। उनमें से 7 करोड भूमिहीन है। तब अमूल को गाय का दूध न लेने हेतु बताने वाली पेटा 7 करोड किसानों के लिए क्या करेगी सबसे पहले उसे इस बारे में खुलासा करना चाहिए? गाय का दूध केवल 45 रुपए लीटर है, इसकी तुलना में क्या भारतीय जनता 400 रुपए लीटर की दर से वेगन मिल्क खरीद पाएगी?