अजमेर। राजस्थान पेट्रोलियम डीलर्स एसोसिएशन (आरपीडीए) की ओर से सोमवार को प्रदेश में पेट्रोल-डीजल पर वेट की दरें पंजाब के समान करने की मांग को लेकर क्रमिक आंदोलन की घोषणा के बावजूद राज्य सरकार की चुप्पी बरकरार है। फ्यूल ना मिलने का सर्वाधिक असर किसानों पर होगा, क्योंकि इस समय सीजन चल रहा है। डीजल उपलब्ध ना होने पर उन्हें भारी नुकसान उठाना पडेगा।
आरपीडीए की अजमेर ईकाई के अध्यक्ष दीपक ब्रहम्वर के नेतृत्व में राजेश अंबानी, मनीष वैश्य, बॉबी खान आदि ने कलेक्टर के नाम सौंपे गए ज्ञापन में बताया कि आंदोलन के प्रथम चरण के तहत 13 व 14 सितंबर को प्रदेशभर में सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक पेट्रोल पंप सांकेतिक बंद रहेंगे। इन दोनों दिन कोई डीलर कंपनी के डीपों से फ्यूल की खरीद भी नहीं करेगा। फिर भी राज्य सरकार ने मांगे नहीं मानी तो प्रदेश के सभी पेट्रोल पंप अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इसके बारे में ग्राहकों की जानकारी के लिए पेट्रोल पंपों पर पोस्टरों के जरिए सूचना चस्पा कर दी गई है। हालांकि आपातकालीन सेवाओं, एम्बूलेंस, फायर ब्रिगेड को फ्यूल दिया जाएगा।
पेट्रोल पंप पर लगने लगी वाहनों की लंबी लाइन
आगामी 13 व 14 सितंबर को पेट्रोल पंपों के सीमित समय के लिए खुलने और बाद में अनिश्चिकलीन बंद को देखते हुए आमजन अलर्ट हो गए हैं। बाद में लंबी कतार लगने की आशंका के चलते अपने वाहनों की टंकी फुल भरा रहे हैं ताकि बाद में भटकना ना पडे। सरकारी तेल कम्पनियों के डीलर्स अपने पंप बंद रखेंगे लेकिन कम्पनियों द्वारा संचालित कोको पंप खुले रहेंगे। रिलायंस और नायरा जैसी निजी कंपनियों के पंपों पर भी बिक्री जारी रहेगी। इसका विपरीत असर आंदोलन पर पडने की आशंका से नकारा नहीं जा सकता। इस बीच आरपीडीए इस बार आंदोलन को सफल बनाने के लिए पूरी ताकत के साथ जुटी है। तहसील स्तर तक पेट्रोलपंप संचालकों से संपर्क साधकर सहमति ली जा चुकी है।
राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में वैट बहुत ज्यादा
राजस्थान में अन्य राज्यों की तुलना में वैट बहुत ज्यादा है। इस कारण जनता त्रस्त है। पेट्रोल-डीजल पर वैट घटाए जाने की मांग समय समय पर उठती रही है। क्योंकि पडोसी राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात व अन्य जगह राजस्थान से पेट्रोल व डीजल संस्ता है। इस कारण इसकी तस्करी बढ रही है। राजस्थान में वेट अधिक लगने से वाहन चालक अन्य राज्यों से फ्यूल भराकर आते हैं। इससे प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों के पेट्रोल पंपों का व्यवसाय चौपट हो गया है। इससे राज्य सरकार को भी राजस्व की हानि हो रही है। आरपीडीए ने गत मई माह में भी चरणबद्ध आंदोलन की घोषणा की थी। हालांकि यह घोषणा दिखावा साबित हुई।
कहीं यह शह और मात का चुनावी फंडा तो नहीं
बतादें कि पेट्रोल पंप संचालकों की एसोसिएशन की ओर से आंदोलन तब किया जा रहा है जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत महंगाई राहत शिविर के जरिए आमजन को लुभाने में लगे हैं। उनकी ताबडतोड घोषाणाओं का तोड फिलहाल विपक्ष को भी नहीं सूझ रहा। इस आंदोलन को गहलोत सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है, पर्दे के पीछे से आंदोलन को कौन हवा दे रहा है यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। इस बीच लोगों का भी कहना है कि मुख्यमंत्री गहलोत राहत के रूप में पेट्रोल डीजल पर वेट घटा कर जनता को बडी राहत दे सकते हैं। इसका सकारात्मक असर महंगाई राहत शिविरों से कहीं अधिक होगा। जनता को पेट्रोल डीजल सस्ता मिलेगा तो गहलोत की ही जयजयकार होगी।
राज्य सरकार को घेरने के पीछे केन्द्र सरकार का हाथ!
दूसरी तरफ राजनीति के जानकारों को मानना है कि पेट्रोल पंप आवश्यक सेवाओं के तहत आते हैं। इसके बाकायदा कानून भी बने हुए है। पेट्रोलियम कंपनियां कभी भी हडताल या बंद रखने की अनुमति नहीं देती। कोई ऐसा करता है तो कंपनी उसके खिलाफ कडा कदम उठा सकती है। लेकिन इस बार देखा जा रहा है कि कंपनियों की ओर से अब तक इस बारे में अधिकारिक बयान नहीं आया है। इसके पीछे पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी का यह बयान मायने रखता है कि वेट कम करने का मामला राज्य सरकार का विषय है। केन्द्र का इससे कोई सरोकार नहीं। यानी कांग्रेस शासित राजस्थान में पेट्रोल पंप बंद रहेंगे तो जनता राज्य सरकार से नाराज होगी। केन्द्र की मोदी सरकार भी कब चाहेगी कि गहलोत सरकार रीपीट हो। इसलिए अधिकार क्षेत्र में होते हुए वह पेट्रोल पंपों को बंद ना रखने की चेतावनी पेट्रोलियम कंपनियों को नहीं दे रही।