जयपुर। चौड़ी चौड़ी सड़कों और वास्तुकला की पहचान रखने वाला आज का जयपुर कभी छह गांवों को मिलाकर बसाया गया था।
यूनेस्को द्वारा विश्व धराेहर की सूची में शामिल किए जयपुर को नाहरगढ़, तालकटोरा, संतोष सागर, मोतीकटला, गलताजी और किशनपोल को मिलाकर बनाया गया था जो वास्तुशिल्प के लिए विश्वविख्यात है। इसकी चौड़ी चौड़ी सड़कें तथा महल और इमारतों का वैभव पुरातन और नवीनता की कहानी कहता है।
शानदार महलों वाले इस शहर को बनाते समय इसमें प्रवेश के लिए सात द्वार बनाए गए थे। यह शहर चारों ओर से दीवारों से घिरा है। शहर के बीचों बीच राजा का महल सिटी पैलेस के नाम से मशहूर है तथा इसे देखने भी पर्यटक जयपुर आते हैं।
इसके पास ही बना जंतर मंतर भी पर्यटकों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। प्राचीन खगोलीय यंत्रों और जटिल गणितीय संरचनाओं के माध्यम से ज्योतिषीय और खगोलीय घटनाओं का विश्लेषण और सटीक भविष्यवाणी करने के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
जयपुर के व्यापारिक केंद्र के हृदयस्थल में मुख्य मार्ग पर चूने, लाल और गुलाबी बलुआ पत्थर से निर्मित हवा महल भी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है। इसकी अद्वितीय पांच-मंजिला इमारत जो ऊपर से तो केवल डेढ़ फुट चौड़ी है, बाहर से देखने पर मधुमक्खी के छत्ते के समान दिखाई देती है, जिसमें 953 बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार खिड़कियां हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं।
इन जटिल संरचना वाले जालीदार झरोखों से सदा ठंडी हवा, महल के भीतर आती रहती है, जिसके कारण तेज़ गर्मी में भी महल सदा वातानुकूलित सा ही रहता है।
सिटी पैलेस के उत्तर में एक झील तालकटोरा हुआ करती थी। इस झील के उत्तर में एक और झील थी जो बाद में राजामल का तालाब कहलाई। सिटी पैलेस के पूर्वोत्तर में और लगभग दो किलोमीटर दूर एक बड़ा भू-भाग दलदल था, जहां से नदी और नालों का पानी आता था।
जयपुर शहर को बसाते समय सड़कों और विभिन्न रास्तों की चौड़ाई पर विशेष ध्यान दिया गया। शहर के मुख्य बाजार त्रिपोलिया बाजार में सड़क की चौड़ाई 107 फीट रखी गई तो वहीं हवामहल के पास ड्योढ़ी बाजार के पास 104 फीट की सड़क बनाई गई। जौहरी बाजार की दुकानों के बरामदे से जौहरी बाजार की चौड़ाई 92 फीट रखी गई। वहीं जब चांदपोल बाजार बना तो दुकानों के बरामदे से चौड़ाई 91 फीट रखी गई।
मुख्य बाजार की सड़कों के दोनों ओर बाजार की तरफ झांकते हुए भवनों का आकार और ऊंचाई एक जैसी करने पर खास ध्यान दिया गया। जौहरी बाजार के भवन सबसे सुन्दर और एकरूपता लिए हुए आज भी दिखते हैं। ऐसे ही सुन्दर भवन सिरह ड्योढ़ी बाजार में देखने को मिलते हैं।
इस बाजार को हवामहल जैसा सुन्दर बनाया गया। चान्दपोल से सूरजपोल गेट पश्चिम से उत्तर की ओर है और यहां मुख्य सड़क दोनों द्वारों को जोड़ती है। बीच-बीच में चौपड़ है।
1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स के आने की खबर मिली तो उनके स्वागत में महाराजा सवाई मानसिंह ने पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवा दिया था। तभी से इस शहर का नाम गुलाबी नगरी (पिंक सिटी) पड़ गया।