नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पीएम केयर्स की राशि को राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) में हस्तांतरित करने के निर्देश देने संबंधी याचिका मंगलवार को खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में हस्तांतरित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने साथ ही कोरोना महामारी के लिए नई राष्ट्रीय आपदा योजना बनाए जाने की मांग भी ठुकरा दी। न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 के लिए नई आपदा राहत योजना की जरूरत नहीं है।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि कोविड-19 से पहले आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत जारी राहत के न्यूनतम मानक आपदा प्रबंधन के लिए काफी हैं। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार को यदि लगता है कि पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में हस्तांतरित किया जा सकता है तो उसके लिए वह स्वतंत्र है। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि दान करने वाले व्यक्ति एनडीआरएफ में भी दान करने के लिए आजाद हैं।
न्यायालय ने इस याचिका से उत्पन्न पांच सवालों पर विचार किया था। पहला- क्या केंद्र सरकार कोविड 19 के लिए राष्ट्रीय योजना तैयार करने के लिए बाध्य है? दूसरा- क्या केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के तहत राहत के लिए न्यूनतम मानक तय करने के लिए बाध्य है?
तीसरा- क्या पीएम केयर्स में सहयोग करने पर कोई पाबंदी हो सकती है? न्यायालय के समक्ष चौथा और पांचवा सवाल था कि क्या सभी चंदे केवल एनडीआरएफ में ही जमा कराये जाने चाहिए और क्या पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में हस्तांतरित किया जाना चाहिए?
न्यायालय ने इन प्रश्नों के उत्तर में कहा कि कोविड-19 के लिए राष्ट्रीय आपदा योजना पर्याप्त है, कोविड-10 से पहले से राहत के न्यूनतम मानक इस महामारी के लिए भी पर्याप्त हैं, केंद्र सरकार एनडीआरएफ का इस्तेमाल कर सकती है, किसी को भी पीएम केयर्स फंड में दान देने से रोका नहीं जा सकता तथा पीएम केयर्स के तहत संग्रहित रकम चैरिटेबल ट्रस्ट की रकम है और इसे एनडीआरएफ में हस्तांतरित करने की जरूरत नहीं है।
न्यायालय ने गैर-सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की याचिका पर सभी संबद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 27 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई करने वाली खंडपीठ में न्यायमूर्ति भूषण के अलावा न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी शामिल थे।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि पीएम केयर्स स्वैच्छिक फंड है, जबकि एनडीआरएफ और एसडीआरएफ फंड बजट आवंटन के दायरे में हैं। पीआईएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा था कि हम किसी पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, लेकिन पीएम केयर्स फंड का गठन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के प्रावधान के विपरीत है।
उन्होंने कहा था कि एनडीआरएफ का अंकेक्षण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा होता है, लेकिन सरकार कह रही है कि पीएम केयर्स फंड का अंकेक्षण निजी ऑडिटर द्वारा कराया जाएगा।
जाने माने वकील प्रशांत भूषण द्वारा सीपीआईएल के लिए दायर याचिका में कहा गया था कि पीएम केयर्स फंड में कोई पारदर्शिता नहीं है। वह एक निजी संस्था की तरह काम कर रही है, जिसका सीएजी से ऑडिट नहीं कराया जा सकता और उस पर जानकारी सार्वजनिक भी नहीं हो सकती। सरकार के पास आपदा से निपटने के लिए पहले से ही एक संस्था एनडीआरएफ मौजूद है। इसलिए पीएम केयर्स फंड का पैसा उसमें हस्तांतरित कर देना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल मार्च में ट्विटर पर अपील की थी कि कोविड-19 जैसी आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर्स फंड) की स्थापना की जा रही है और लोग उसमें दान करें।