काशी-विश्वनाथ कॉरीडोर की भव्यता करती है आश्चर्यचकित
आचार्य श्री विष्णुगुप्त
संस्कृतियों का फर्क देखिए। मनुष्यता और हैवानियत में फर्क देखिए। हिंसक और आयातित संस्कृति कभी भी वंदनीय नहीं हो सकती है, कभी भी मनुष्यता के प्रतीक नहीं हो सकती है, कभी भी प्ररेणादायी नहीं हो सकती है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ताजमहल है। ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के पहले हाथ काटे गए और उसके बाद भी उनकी हत्या कर दी गई। हत्या करने के पीछे मकसद यह था कि कटे हाथ से भी ये हूनर की हस्तियां कहीं अपने हूनर किसी अन्य को न सिखा दें।
इसके विपरीत सनातन संस्कृति जो प्रेम, सदभाव, विनम्रता और प्रेरणा का प्रतीक है उसका उदाहरण देख लीजिए। काशी-विश्वनाथ कॉरीडोर की भव्यता और गुणवता को देखकर हर कोई आश्चर्य चकित हो रहा है। इतना सुंदर बनाने वाले मजदूरों के हाथ नहीं काटे गए, उनकी हत्या नहीं हुई, उनकी कला को प्रतिबंधित नहीं दिया गया। उनकी कला और मेहनत की चारों तरफ प्रशंसा हो रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी-कॉरीडोर बनाने वाले मजदूरों को न केवल सम्मानित किया बल्कि मजदूरों के साथ खाना भी खाया। मजदूरों का इतना बड़ा सम्मान देना एक बेमिसाल काम है। नरेन्द्र मोदी ने मजदूरों का सम्मान कर, मजदूरों के साथ खाना खाकर प्रेरक काम किए हैं। नरेन्द्र मोदी को यह प्रेरणा कहां से मिली होगी? निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी को यह प्रेरणा अपनी सनातन संस्कृति से मिली है।
जब कोई संस्कृति सबसे कमजोर वर्ग को भी सम्मान प्रकट करती है, कमजोर वर्ग की मेहनत और कला का सम्मान करती है तब वह संस्कृति महान बनती है। भविष्य में भी मजदूरों का सम्मान करना लोग सीखेंगे। कमजोर वर्ग के लोगों के श्रम और योगदान का उचित सम्मान और उचित मूल्य देना मनुष्यता को प्रमाणित करता है। निश्चित तौर पर नरेन्द्र मोदी अपने जीवन को मनुष्यता की महान रेखा बनाते जा रहे हैं।
राक्षस संस्कृतियां कभी भी मनुष्यता के प्रतीक नहीं हो सकती हैं। नकारात्मकता उत्पन्न करना और विध्न डालना राक्षस संस्कृतियों का काम है। अच्छे कार्यो और प्रेरणादायी उदाहरणों में भी प्रतिकूल और नकरात्मकता को प्रत्यारोपित किया जा रहा है। अगर नरेन्द्र मोदी कोई संस्कृति निष्ठ कार्य कर रहे हैं, संस्कृति उन्नयन के कार्य कर रहे हैं, कमजोर और निम्न वर्ग के लिए कार्य कर रहे हैं फिर भी राक्षस और उपभोगवादी संस्कृतियां उनके पीछे पड़ जाती हैं और आलोचना की हदें पार कर जाती हैं, अभद्रता की हदें पार कर जाती हैं, विभत्सता की हदें पार कर जाती हैं, अश्लीलता की हदें पार कर जाती हैं।
काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के उदघाटन और मजदूरों के सम्मान पर नकरात्मक और हिंसक संस्कृतियों के सहचरों ने क्या-क्या न कहा है, यह भी जानने की आवश्यकता है। हिंसक और आयातित संस्कृति के एक सहचर ने कहा कि नरेन्द्र मोदी का अंतिम समय है और अब नरेन्द्र मोदी को काशी में ही रहना चाहिए। यानी की उसने नरेन्द्र मोदी की मृत्यु की कामना की है।
एक प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति के लिए इस तरह की कामना करना क्या उचित है, क्या विनम्रता और सदभाव का प्रतीक है। अन्य किसी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष संविधान को समाप्त कर रहे हैं, हिन्दुत्व को स्थापित कर रहे हैं। आयातित और हिंसक संस्कृतियों का कार्य ही हमारी मूल और प्रेरणादायी संस्कृति का विनाश करना है। जबकि हर संविधान और लोकतंत्र में मूल संस्कृति की महानता स्थापित रखने की परंपरा है।
हर व्यक्ति के उपर अपनी संस्कृति के उन्नयन और संरक्षण की जिम्मेदारी होती है, अपनी संस्कृति को महान और गतिशील बनाने की भी जिम्मेदारी होती है। पर यह काम सभी करते नहीं हैं। देश के उपर राज करने वाले कितने प्रधानमंत्रियों ने अपनी मूल संस्कृति की महानता स्थापित करने के लिए कार्य किए थे? देश के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जो देश की मूल संस्कृति सनातन के संरक्षण और उन्नयन में लगातार सक्रिय है। संस्कृति उन्नयन के महान प्रतीकों को गढ़ रहें हैं।
इन्ही महान प्रतीकों में पहले अयोध्या के राममंदिर का निर्माण शामिल है और अब काशी-विश्वनाथ भी शामिल हो गया है। हमारी संस्कृति अब सांप-सपैरे वाली नहीं रही। हमारी सनातक संस्कृति अब बेमिसाल और प्रेरणादायी बन गई है। हमारी संस्कृति अब अर्थव्यवस्था की कसौटी पर भी मजबूत बन गई है। सनातन संस्कृति की जय। सनातन संस्कृति को महान बनाने वाले नरेन्द्र मोदी की जय।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण