कफन
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तिरंगा बना है कफन साथियों ।
इतनी जल्दी करो न दफन साथियों ।
अभी तो मुझे देश को बचाना है।
अभी तो दुश्मनों के छक्के छुड़ाना है।
अभी तो ताकत का खौफ दिखाना है।
इतनी जल्दी करो न गमन साथियों।
तिरंगा बना है कफन साथियों।
कई काम मेरे अधूरे पड़े।
कई जख्म मेरे हरे के हरे।
कई काँटे मेरी राहों में पड़े।
इतनी जल्दी कहो न नमन साथियों।
तिरंगा बना है कफन साथियों।
सूने आँगन में गूँजेगी किलकारियांँ ।
सूने दिल में उठेंगी हिलकारियाँ।
सूने -सूने घरों में दिखेंगी परछाईयाँ।
इतनी जल्दी करो ना शयन साथियों ।
तिरंगा बना है कफन साथियों।
अति श्रम से देश सेवा का मौका मिला।
अति भ्रम से हीर ने चौंका दिया।
अति क्रम से शत्रु से धोखा मिला।
इतनी जल्दी करो ना चयन साथियों।
तिरंगा बना है कफन साथियो।
अर्चना पाठक ‘निरंतर ‘
अंबिकापुर
सरगुजा
छत्तीसगढ़