*स्वतन्त्रता दिवस पर कविता
मेरा देश*
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एक अरब और तीस करोड़
गुलों से खिलता हिन्दुस्तान ।
मिलीजुली संस्कृति -खाद से
फलता-फूलता यह उद्यान ।।
मेरे देश की अन्तरात्मा
बसती इन्हीं गुलों में है ।
भँवरा कोई पराग न लूटे
बैठा माली फूलों में है।।
हर प्राणी ने ये जाना है
रक्त का रंग लाल है ।
फिर क्यों किसी को मारें
सब भारत के लाल हैं।।
माना कभी बीमार हो जाते
मेरे देश के ही कुछ बन्दे।
लेकिन हमें उपचार है आता
नहीं जरूरत गैर के कन्धे।।
स्वतंत्रता का अर्थ यही है
मुक्त विहग सी हो उड़ान।
सबके हितों की रक्षा हित
भारत का एक विधान।।
आज राष्ट्र के आराधन में
तन मन धन से वन्दन हो।
मंगलमयी कामना मेरी
कभी कहीं न क्रंदन हो।।
स्वरचित: डॉ. रेखा सक्सेना
मौलिक अप्रसारित