मेवाड़ी तलवारों के आगे तो
ख़िलजी भी घबराया था
राजपुताना देख कर तेवर
दिल्ली भी थर्राया था।
जो भी कदम बढ़ाता सीधा
काल में मुँह में जाता था
चारों ओर छाया हुआ बस
मौत का ही सन्नाटा था।
देख कर दुर्गों की ऊँचाई
सेना भी बौखलाई थी
ऐसी वैसी ठाट नही थी
मेवाड़ी ठकुराई थी।
रतन सिंह के तेज़ के आगे
ख़िलजी की सेना आधी थी
जोश भरा था बच्चे-बच्चे
ने तलवारें थामी थी।
अपनों ने जो साथ दिया होता
तो खोहराम मचा देते
चंगेजों की औलादों को
उनकी औकात दिखा देते।
रोना तो इस बात का था
कि अपनों से ही हारे थे
राघव चेतन जैसों ने असुरों
के तलवे चाटे थे।
इतने सब होने पर भी दे
पाये एकपल मात नही
शेरों से आकर युद्ध करें
ये कुत्तों की औकात नही।
क्षत्रियों की हुँकार मात्र से
मुगलों का शासन डोला था
तलवारों की चमक मात्र से
दिल्ली का आसन डोला था।
युद्ध क्षेत्र में नीच अधर्मी
परास्त ही होने वाला था
पापी, नीच, निशाचर एकदम
आस्त ही होने वाला था।
पीछे से हमला करके अपनी
औकात दिखाई थी
सूअरों की औलादों ने तब
अपनी जाति दिखाई थी।।
*कवि आनंद कौशल*
*बाराबंकवी*