सबगुरु न्यूज-सिरोही। खुशनुमा मौसम में दक्षिण की ओर से आने वाली हवा में सरसराहट के साथ खुसफुसाहट भी थी। बरसाती हवा में जब ये खुसफुसाहट मिली तो अचानक ठंडी हवा में गर्माहट आ गई।
हवाओं का सन्देश पढ़ा तो पता चला कि ये गर्माहट और खुसफुसाहट दो जिलाध्यक्षो के बीच हुए विवाद के कारण थी। इस विवाद के कारण रूठे रूठे वरिष्ठ जिलाध्यक्ष को मनाने के लिए कनिष्ठ जिलाध्यक्ष को फोन करना पड़ा। दोनों के बीच तनातनी आनुषंगिक सन्गठन के एक पद पर वरिष्ठ के करीबी कार्यकर्ता को बैठाने को लेकर था।
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क्यों हुई गर्माहट?
माउंट आबू की तरफ से अनादरा रोड होकर आने वाली हवा शहर में घुसते ही गर्म सी लगी। आमतौर पर वाहनों के कारण ऐसा यहां होता रहता है, लेकिन गाड़ियों के धुंए से फैली गर्मी और बातों के उबाल से उठने वाली भाप की तपिश में अंतर साफ था। इस तपिश की थर्मल सेंसर से रीडिंग ली तो पता चला कि वरिष्ठ जिलाध्यक्ष आनुषंगिक जिलाध्यक्ष के कार्यक्रम में नहीं पहुंचे हैं।
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अब बिन्दोली निकलने वाली हो और फूफा जी नाराज हो गए हों तो दूल्हे पर क्या बीतती है ये किसी से छिपा नहीं है। क्योंकि रस्मों में फूफा की अहमियत छिपी नहीं है। करीब भानुमति का कुनबा जोड़कर जैसे तैसे बाराती घराती एकत्रित किये हों और शादी में रायता गिरने की आशंका बलवती हो गई तो दूल्हे ने ही फूफा को मनाने की ठानी। सीली हवा ये बातों की गर्माहट उसी मान मनौवल की थी।
विवाद ये कि सहबाला कौन बनेगा?
तो वरिष्ठ जिलाध्यक्ष और अनुषांगिक जिलाध्यक्ष के बीच विवाद ये था कि अपने दो व्यावसायिक सहभागी नेताओं के साथ वरिष्ठ जिलाध्यक्ष की इच्छा के विरुद्ध आनुषंगिक सन्गठन के मुख्य पद का वरण करवा लिया था। इस पद का वरण वरिष्ठ अपने खास व्यक्ति का करवाना चाहते थे। लेकिन, राजनीति भी असम्भावनाओं का खेल है, वही हुआ। वरिष्ठ जिलाध्यक्ष के करीबी का इस पद पर वरण नहीं हो पाया। इससे पहले एक दूसरे पद पर भी चयन से वंचित रहने के कारण करीबी नेता की बातों के नश्तर जब वरिष्ठ को चुभने लगे। कनिष्ठ के कार्यक्रम में आने की शर्त रख दी गई।
वो ये कि उनके खास कार्यकर्ता को अनुषांगिक सन्गठन में सहबाला ( दूल्हे के साथ घोड़ी पर बैठने वाला बच्चा) बनाएं और उसे फ़ोन करके बुलवाएं। दूसरी शर्त पर कनिष्ठ राजी होगए, लेकिन सतयुग तो है नहीं कि कोपभवन तोड़ने के लिए सब शर्त मानी जाए तो पहली शर्त नहीं मानी गई।
पहली शर्त का दबाव डालने पर घोड़ी से ही उतर जाने की बात कह दी। फिलहाल दूसरी शर्त पूरी होने से संतुष्ट वरिष्ठ कुछ देर में बारात में चलने को राजी तो हो गए, लेकिन नाराजगी और मान-मनौवल की चर्चा दिनभर जोरों पर रही। यूँ खासियत ये है कि रायता ढुलने से बचाने की कवायद वाले नेता कुछ दिन पहले चूरमे की मिठास का आनन्द ले चुके थे।