सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही विधायक संयम लोढ़ा ने राज्यपाल के माउंट आबू प्रवास पर आने के दौरान भी गुलाबगंज से माउंट आबू के पुराने मार्ग को बनवाने की भी मांग की है।
इससे पहले भी वे इस मांग को विधानसभा समेत विभिन्न मंचों पर उठाते रहे हैं। पर कोई नतीजा नहीं निकला। यूँ गुलाबगंज-माउंट आबू मार्ग संयम लोढ़ा के चुनावी वायदे का हिस्सा तो नहीं था, लेकिन फिर भी नतीजे में देरी के पीछे मांग की फिजियेबलिटी तो एक कारण नहीं है?क्या ये पूरी हो सकती है?
इसको जानने के लिए 1980 से अबतक नियमों में आये उन बदलावों से रूबरू होना होगा जो वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत नेशनल पार्क और अभयारण्यों में संरक्षित क्षेत्रों के लिए हो चुका है।
-कब बना था ये मार्ग?
गुलाबगंज से माउंट आबू के बीच जिस मार्ग को बनाने की मांग सिरोही के निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा कर रहे हैं। उसके पीछे वजह टूरिस्ट सर्किट बनाने की बता रहे हैं। यहाँ पड़ने वाले पावापुरी समेत आबू पर्वत के चारों ओर स्थित अन्य तीर्थो को देलवाड़ा व अन्य दर्शनीय स्थलों से जोड़कर टूरिस्ट सर्किट बनाना इसका मकसद ह। ये कच्चा मार्ग 1980 तक टुकड़ों टुकड़ो में अकाल राहत कार्य के दौरान बना था। पीडब्ल्यूडी इसकी कार्यकारी एजेंसी थी।
विभागीय सूत्रों के अनुसार इसकी देखरेख तत्कालीन जेईएन भीखसिंह राजपुरोहित के हाथ में थी। उस समय अनादरा पीडब्ल्यूडी विभाग में तैनात सेवानिवृत्त भवानी लाल माथुर ने सबगुरु न्यूज को बताया कि इस मार्ग को कच्चा ही बनाया गया था। साइड में पैराफिट वाल बनाई गई थी। अब इस मार्ग का अस्तित्व है या नहीं है ये उनकी जानकारी में नहीं है।
ये मार्ग गुलाबगंज से निकलकर माउंट आबू में मिनी नक्की लेक के पास से ओरिया मार्ग पर खुलता था। उन्होंने बताया कि टेस्टिंग के लिए भीखसिंह राजपुरोहित एक बार कर लेकर भी माउंट आबू तक गए थे।
– अब हो गया बड़ा बदलाव
जब ये मार्ग बना था उस समय तक माउंट आबू का जंगल वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित नहीं हुआ था। 1980 में माउंट आबू राजस्थान गेम सेंचुरी एक्ट के तहत सेंच्युरी में नोटिफाइड हो गया। इसके बाद यहां जानवरों के संरक्षण के लिए इंसानों के मकान और अन्य गतिविधियां तक नियंत्रित कर दी गई हैं। सेंचुरी क्षेत्र में भी कई गतिविधियां बाधित थी।
2008 में सुप्रीम कोर्ट के गोदावरन बनाम गोआ सरकार के निर्णय के बाद 2008 में सेंट्रल वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन एक्ट के तहत इसे वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी में नोटिफाइड कर दिया गया। अब यहाँ पर सारी गतिविधि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तहत आने वाली एनबीडब्ल्यूएल के माध्यम से नियंत्रित होने लगा।
– क्या है हालिया एडवाइजरी?
भारत के सभी नेशनल पार्क और वन्यजीव अभ्यारण्य में विकास गतिविधियां नेशनल बोर्ड फ़ॉर वाइल्डलाइफ के नियंत्रण में आ चुकी हैं। अब यहां पर सार्वजनिक और निजी निर्माण सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और नेशनल बोर्ड फ़ॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) के मार्गदर्शन में नियंत्रित है। 2008 से पहले ये सब राज्य सरकार के माध्यम से जिला प्रशासन के नियंत्रण में था।
एनबीडब्ल्यूएल की ‘दी नेशनल एक्शन वाइल्डलाइफ प्लान 2002-16’ में नेशनल पार्क और अभयारण्यों में सड़कों के निर्माण से वन्यजीवों को होने वाले नुकसान पर ही जोर दिया गया है। 3 सितंबर 2013 को एनबीडब्ल्यूएल की 28 वी बैठक के प्रस्ताव के अनुसार नेशनल पार्क और अभ्यारण्य में नए मार्ग, सड़क के चौड़ा करने, नई रेललाइन आदि के निर्माण को नियंत्रित और डायवर्ट करने का प्रस्ताव लिया गया। राज्य सरकारों से इस पर अपनी राय मांगी गई।
इसके लिए कांजीरंगा, मुदुमलाई, बांदीपुर, नागरहोल संरक्षित क्षेत्रों में सड़कों और संरक्षित जनवरों के हादसे में मरने का हवाला भी दिया गया। 2019 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सभी सड़क निर्माण एजेंसियों को सड़कों को नेशनल पार्क और अभ्यारण्य के बाहर से निकालने के निर्देश जारी किए हैं, भले ही इससे सड़क की लंबाई क्यों न बढ़ जाये।
– क्या है गुलाबगंज-माउंट आबू मार्ग की वर्तमान स्थिति
गुलाबगंज से माउंट आबू तक 1980 तक बन चुके कच्चे मार्ग की वर्तमान स्थिति ये है कि ये अभ्यारण्य के बीचों बीच है। उस समय भी पक्का नहीं बना था और इसकी इकोनॉमिक फिजिबिलिटी नहीं देखी गई थी। माउंट आबू आने के लिए पहले से ही आबूरोड से एक मार्ग है।
माउंट आबू वन्यजीव अभ्यारण्य स्लोथ बेयर का केंद्र है और पुराने माउंट आबू- गुलाबगंज मार्ग पर इनके घने हेबिटेट भी हैं।
ऐसे में एनबीडब्ल्यूएल के 2013 के प्रस्ताव और 2019 में केंद्रीय वन मंत्रालय द्वारा सड़क निर्माण एजेंसियों को नेशनल पार्क और अभयारण्यों के बीच से सड़क निर्माण नहीं करने व बायपास निकालने की एडवाइजरी के बाद गुलाबगंज-माउंट आबू मार्ग का अब अस्तित्व में आ पाना असंभव है।
-पीडब्ल्यूडी ने ये बताया था स्टेटस रिपोर्ट में
2019 में सिरोही पीडब्ल्यूडी ने इस मार्ग की स्टेटस रिपोर्ट जारी की थी। इसके अनुसार गुलाबगंज से माउण्ट आबू जाने वाला मार्ग करीब 23 किलोमीटर लम्बा बताया गया है। वर्तमान में यहां पर 6 किलोमीटर बीटी रोड, दो किलोमीटर टूटी हुई ग्रेवल रोड और शेष 15 किलोमीटर कच्चा मार्ग है। इस स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया कि 1990 से पहले अकाल राहत कार्य में आठ किलोमीटर से 23 किलोमीटर तक के मार्ग के कच्चे मार्ग का निर्माण किया गया था।
लेकिन जीरो प्वाइंट से छह किलोमीटर से 23 किलोमीटर तक का मार्ग माउण्ट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में पडऩे के कारण वन विभाग ने इस सडक़ निर्माण कार्य को रोक दिया। उनकी दलील थी कि केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की क्लीयरेंस लाए तो यह बन पाएगा। स्टेटस रिपोर्ट में लिखा है कि क्लीयरेंस और निर्माण के लिए पत्र वन विभाग को लिखा गया, लेकिन अब तक अनुमति नहीं मिली।
-सांसद के दावे पर भी संकट!
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत एनबीडब्ल्यूएल के मार्गदर्शन में जो नेशनल पार्क और अभयारण्य के संरक्षित क्षेत्र के लिए जो एडवाइजरी दी है उससे गुलाबगंज-माउंट आबू मार्ग से सातः जालोर सांसद देवजी पटेल के भारतमाला प्रोजेक्ट भी खटाई में पड़ेगा। सांसद देवजी पटेल ने 2019 लोकसभा चुनावों से पहले आबूरोड से गुरुशिखर मार्ग को भारतमाला परियोजना के तहत चौड़ा करवाने की बात जोर शोर से फैलाई थी।
एनबीडब्ल्यूएल की एडवाइजरी के बाद इसकी स्वीकृति की भी संभावनाएं क्षीण हैं। आबूरोड से माउंट आबू तक जाने वाला वर्तमान मार्ग भी माउंट आबू सेंचुरी के संरक्षित क्षेत्र का ही हिस्सा है। इसको चौड़ा करने के लिये कई पेड़ कटेंगे और वन विभाग की काफी जमीन अधिग्रहित करनी होगी। इससे इसकी कॉस्टिंग भी बढ़ेगी। इसके लिए एनबीडब्ल्यूएल से भी अनुमति लेनी होगी। जो मिलना लगभग असंभव है।
जानिए अब क्यों नामुमकिन सा मुश्किल है गुलाबगंज-माउण्ट आबू मार्ग