इटावा। समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन कर लोकसभा चुनाव मे किस्मत आजमा चुके शिवपाल सिंह यादव का दावा है कि वह तो देश भर के सभी समाजवादियो को एक करके नेताजी (मुलायम सिंह यादव) अथवा अखिलेश यादव को नरेंद्र मोदी का विकल्प बनाना चाहते थे।
यादव ने रविवार को इटावा में चैगुर्जी स्थित आवास पर मीडिया से बातचीत में कहा कि अगर देश भर के सभी समाजवादी एक साथ हो जाते तो आज कम से कम तीन सूबों में समाजवादियों की मजबूत सरकार हो सकती थी लेकिन अड़चन डालने वाले कुछ लोग थे जो आज भी उसी रास्ते पर हैं।
उन्होंने कहा कि अब तो हमने अपनी पार्टी बना ली है और संघर्ष के रास्ते पर निकल चुके हैं। सारे प्रदेश में हमारा संगठन मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। प्रसपा अध्यक्ष ने कहा कि राजनीति में नेता हो या फिर कार्यकर्ता उसकी जुबान की अहमियत होती है हालांकि कुछ लोग परिवार एक न हो, इसके लिए ही बयान देते हैं।
यादव कहा कि हमने अपनी पार्टी बना ली है और प्रदेश के विभिन्न इलाकों के दौरे पर निकले हुये हैं। अब हमें यह चिंता नहीं कि कौन क्या कह रहा है लेकिन एक बात तो तय है कि अब किसी भी पार्टी में प्रसपा का विलय नहीं होगा बशर्ते गठबंधन हो सकता है।
उन्होंने कहा कि साल 2014 मे देश में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के फौरन बाद सपा के रजत जयंती समारोह के दौरान देश भर के समाजवादियों को एकमंच पर लाने का जो प्रयास किया था उसे पलीता लगाने वाले कौन लोग थे। क्या आप नहीं जानते हैं। क्या मैं यह सब अपने लिए कर रहा था। मैने तो तभी अखिलेश यादव को अपना नेता स्वीकार कर लिया था और जो कुछ करना चाहता था, वह नेताजी और उनके लिए ही था लेकिन उस मंच पर जो कुछ हुआ और उसके बाद आज तक परिवार को एक होने से कौन रोक रहा है यह अब किसी से छिपा नहीं है।
यादव ने कहा कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद समाजवादी पार्टी ने सिर्फ पांच सीटें जीती थी देश में बिखरे हुए समाजवादी परिवार को एक करने के लिए सबसे पहले मैने ही पहल की थी और तब नीतीश कुमार, एचडी दैवगौडा, शरद यादव, ओमप्रकाश चौटाला का पूरा परिवार, लालू यादव, कमल मोरारका, अजीत सिंह, अंसारी बंधु तक समाजवादी पार्टी में विलय के लिए तैयार हो गए थे। इन सबने मुलायम सिंह यादव को अपना नेता मान लिया था। अगर यह सब हो जाता तो नेताजी देश के सामने भाजपा का विकल्प बन सकते थे लेकिन इसे तुड़वाने का सूत्रधार कौन था। यह सभी जानते हैं।
उन्होंने माना कि आज सूबे में जनता भी मजबूत विकल्प की तलाश में है, तभी भाजपा को सत्ता से हटाया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि हम लगातार प्रयास कर रहे हैं और अब हमारा छोटे दलों को एक साथ लाने का प्रयास है।
पंचायत चुनाव में प्रसपा की भूमिका का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जहां तक पंचायत चुनावों का सवाल है तो पार्टी ने गांव पंचायतों के चुनावों में किसी तरह की दिलचस्पी नहीं लेने का निर्णय लिया है लेकिन जिला पंचायतों के चुनाव में प्रदेश की सभी जिला इकाइयों पर छोड़ दिया है कि वे क्या चुनाव लडाना चाहती हैं।
अगर वे राय मांगेगी तो हम विचार करके जरूर तय करेंगे कि कहां पर हमारी पार्टी के जिला पंचायत अध्यक्ष बन सकते हैं उसे जरूर देखा जाएगा। इसका सीधा संकेत माना जा रहा है कि करीब डेढ़ दशक से इटावा की जिला पंचायत पर समाजवादी पार्टी के एकाधिकार को चुनौती मिलनी तय है।