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73वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का राष्ट्र के नाम संबोधन - Sabguru News
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73वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का राष्ट्र के नाम संबोधन

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73वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का राष्ट्र के नाम संबोधन

नई दिल्ली। देश के 73वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के राष्ट्र के नाम संबोधन का मूल-पाठ इस प्रकार है:

प्यारे देशवासियो!
नमस्कार

73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, देश और विदेश में रहने वाले आप सभी भारत के लोगों को मेरी हार्दिक बधाई! हम सबको एक सूत्र में बांधने वाली भारतीयता के गौरव का यह उत्सव है। वर्ष 1950 में आज ही के दिन हम सब की इस गौरवशाली पहचान को औपचारिक स्वरूप प्राप्त हुआ था। उस दिन, भारत विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र के रूप में स्थापित हुआ और हम, भारत के लोगों ने एक ऐसा संविधान लागू किया जो हमारी सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है।

हमारे विविधतापूर्ण और सफल लोकतंत्र की सराहना पूरी दुनिया में की जाती है। हर साल गणतंत्र दिवस के दिन हम अपने गतिशील लोकतन्त्र तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का उत्सव मनाते हैं। महामारी के कारण इस वर्ष के उत्सव में धूम-धाम भले ही कुछ कम हो परंतु हमारी भावना हमेशा की तरह सशक्त है।

गणतन्त्र दिवस का यह दिन उन महानायकों को याद करने का अवसर भी है जिन्होंने स्वराज के सपने को साकार करने के लिए अतुलनीय साहस का परिचय दिया तथा उसके लिए देशवासियों में संघर्ष करने का उत्साह जगाया। दो दिन पहले, 23 जनवरी को हम सभी देशवासियों ने ‘जय-हिन्द’ का उद्घोष करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर उनका पुण्य स्मरण किया है। स्वाधीनता के लिए उनकी ललक और भारत को गौरवशाली बनाने की उनकी महत्वाकांक्षा हम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है।

हम अत्यंत सौभाग्यशाली हैं कि हमारे संविधान का निर्माण करने वाली सभा में उस दौर की सर्वश्रेष्ठ विभूतियों का प्रतिनिधित्व था। वे लोग हमारे महान स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख ध्वज-वाहक थे। लंबे अंतराल के बाद, भारत की राष्ट्रीय चेतना का पुनर्जागरण हो रहा था। इस प्रकार, वे असाधारण महिलाएं और पुरुष एक नई जागृति के अग्रदूत की भूमिका निभा रहे थे।

उन्होंने संविधान के प्रारूप के प्रत्येक अनुच्छेद, वाक्य और शब्द पर, सामान्य जन-मानस के हित में, विस्तृत चर्चा की। वह विचार-मंथन लगभग तीन वर्ष तक चला। अंततः, डॉक्टर बाबासाहब आम्बेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष की हैसियत से, संविधान को आधिकारिक स्वरूप प्रदान किया। और वह हमारा आधारभूत ग्रंथ बन गया।

यद्यपि हमारे संविधान का कलेवर विस्तृत है क्योंकि उसमें, राज्य के काम-काज की व्यवस्था का भी विवरण है। लेकिन संविधान की संक्षिप्त प्रस्तावना में लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मार्गदर्शक सिद्धांत, सार-गर्भित रूप से उल्लिखित हैं। इन आदर्शों से उस ठोस आधारशिला का निर्माण हुआ है जिस पर हमारा भव्य गणतंत्र मजबूती से खड़ा है। इन्हीं जीवन-मूल्यों में हमारी सामूहिक विरासत भी परिलक्षित होती है।

इन जीवन-मूल्यों को, मूल अधिकारों तथा नागरिकों के मूल कर्तव्यों के रूप में हमारे संविधान द्वारा बुनियादी महत्व प्रदान किया गया है। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों का नागरिकों द्वारा पालन करने से मूल अधिकारों के लिए समुचित वातावरण बनता है।

आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करने के मूल कर्तव्य को निभाते हुए हमारे करोड़ों देशवासियों ने स्वच्छता अभियान से लेकर कोविड टीकाकरण अभियान को जन-आंदोलन का रूप दिया है। ऐसे अभियानों की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय हमारे कर्तव्य-परायण नागरिकों को जाता है। मुझे विश्वास है कि हमारे देशवासी इसी कर्तव्य-निष्ठा के साथ राष्ट्र हित के अभियानों को अपनी सक्रिय भागीदारी से मजबूत बनाते रहेंगे।

प्यारे देशवासियों,

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया गया। उस दिन को हम संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं। उसके दो महीने बाद 26 जनवरी, 1950 से हमारा संविधान पूर्णतः प्रभावी हुआ। ऐसा सन 1930 के उस दिन को यादगार बनाने के लिए किया गया था जिस दिन भारतवासियों ने पूरी आजादी हासिल करने का संकल्प लिया था।

सन 1930 से 1947 तक, हर साल 26 जनवरी को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ के रूप में मनाया जाता था, अतः यह तय किया गया कि उसी दिन से संविधान को पूर्णत: प्रभावी बनाया जाए। सन 1930 में महात्मा गांधी ने देशवासियों को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ मनाने का तरीका समझाया था।

उन्होंने कहा था कि चूंकि हम अपने ध्येय को अहिंसात्मक और सच्चे उपायों से ही प्राप्त करना चाहते हैं, और यह काम हम केवल आत्म-शुद्धि के द्वारा ही कर सकते हैं, इसलिए हमें चाहिए कि उस दिन हम अपना सारा समय यथाशक्ति कोई रचनात्मक कार्य करने में बिताएं।

यथाशक्ति रचनात्मक कार्य करने का गांधीजी का यह उपदेश सदैव प्रासंगिक रहेगा। उनकी इच्छा के अनुसार गणतंत्र दिवस का उत्सव मनाने के दिन और उसके बाद भी, हम सब की सोच और कार्यों में रचनात्मकता होनी चाहिए। गांधीजी चाहते थे कि हम अपने भीतर झांक कर देखें, आत्म-निरीक्षण करें और बेहतर इंसान बनने का प्रयास करें, और उसके बाद बाहर भी देखें, लोगों के साथ सहयोग करें और एक बेहतर भारत तथा बेहतर विश्व के निर्माण में अपना योगदान करें।

प्यारे देशवासियो,

मानव-समुदाय को एक-दूसरे की सहायता की इतनी जरूरत कभी नहीं पड़ी थी जितनी कि आज है। अब दो साल से भी अधिक समय बीत गया है लेकिन मानवता का कोरोना-वायरस के विरुद्ध संघर्ष अभी भी जारी है। इस महामारी में हजारों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर आघात हुआ है। विश्व समुदाय को अभूतपूर्व विपदा का सामना करना पड़ा है। नित नए रूपों में यह वायरस नए संकट प्रस्तुत करता रहा है। यह स्थिति, मानव जाति के लिए एक असाधारण चुनौती बनी हुई है।

महामारी का सामना करना भारत में अपेक्षाकृत अधिक कठिन होना ही था। हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व बहुत ज्यादा है, और विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते हमारे पास इस अदृश्य शत्रु से लड़ने के लिए उपयुक्त स्तर पर बुनियादी ढांचा तथा आवश्यक संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं थे। लेकिन ऐसे कठिन समय में ही किसी राष्ट्र की संघर्ष करने की क्षमता निखरती है।

मुझे यह कहते हुए गर्व का अनुभव होता है कि हमने कोरोना-वायरस के खिलाफ असाधारण दृढ़-संकल्प और कार्य-क्षमता का प्रदर्शन किया है। पहले वर्ष के दौरान ही, हमने स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को विस्तृत तथा मजबूत बनाया और दूसरे देशों की मदद के लिए भी आगे बढ़े। दूसरे वर्ष तक, हमने स्वदेशी टीके विकसित कर लिए और विश्व इतिहास में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया। यह अभियान तेज गति से आगे बढ़ रहा है। हमने अनेक देशों को वैक्सीन तथा चिकित्सा संबंधी अन्य सुविधाएं प्रदान कराई हैं। भारत के इस योगदान की वैश्विक संगठनों ने सराहना की है।

दुर्भाग्य से, संकट की स्थितियां आती रही हैं, क्योंकि वायरस, अपने बदलते स्वरूपों में वापसी करता रहा है। अनगिनत परिवार, भयानक विपदा के दौर से गुजरे हैं। हमारी सामूहिक पीड़ा को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। लेकिन एकमात्र सांत्वना इस बात की है कि बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकी है। महामारी का प्रभाव अभी भी व्यापक स्तर पर बना हुआ है, अतः हमें सतर्क रहना चाहिए और अपने बचाव में तनिक भी ढील नहीं देनी चाहिए।

हमने अब तक जो सावधानियां बरती हैं, उन्हें जारी रखना है। मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना कोविड-अनुरूप व्यवहार के अनिवार्य अंग रहे हैं। कोविड महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा बताई गई सावधानियों का पालन करना आज हर देशवासी का राष्ट्र-धर्म बन गया है। यह राष्ट्र-धर्म हमें तब तक निभाना ही है, जब तक यह संकट दूर नहीं हो जाता।

संकट की इस घड़ी में हमने यह देखा है कि कैसे हम सभी देशवासी एक परिवार की तरह आपस में जुड़े हुए हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के कठिन दौर में हम सबने एक-दूसरे के साथ निकटता का अनुभव किया है। हमने महसूस किया है कि हम एक-दूसरे पर कितना निर्भर करते हैं। कठिन परिस्थितियों में लंबे समय तक काम करके, यहां तक कि मरीजों की देखभाल के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर भी डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स ने मानवता की सेवा की है।

बहुत से लोगों ने देश में गतिविधियों को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए यह सुनिश्चित किया है कि अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध रहें तथा सप्लाई-चेन में रुकावट न पैदा हो। केंद्र और राज्य स्तर पर जन-सेवकों, नीति-निर्माताओं, प्रशासकों और अन्य लोगों ने समयानुसार कदम उठाए हैं।

इन प्रयासों के बल पर हमारी अर्थ-व्यवस्था ने फिर से गति पकड़ ली है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत की दृढ़ता का यह प्रमाण है कि पिछले साल आर्थिक विकास में आई कमी के बाद इस वित्त वर्ष में अर्थ-व्यवस्था के प्रभावशाली दर से बढ़ने का अनुमान है। यह पिछले वर्ष शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता को भी दर्शाता है।

सभी आर्थिक क्षेत्रों में सुधार लाने और आवश्यकता-अनुसार सहायता प्रदान करने हेतु सरकार निरंतर सक्रिय रही है। इस प्रभावशाली आर्थिक प्रदर्शन के पीछे कृषि और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्रों में हो रहे बदलावों का प्रमुख योगदान है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारे किसान, विशेषकर छोटी जोत वाले युवा किसान प्राकृतिक खेती को उत्साह-पूर्वक अपना रहे हैं।

लोगों को रोजगार देने तथा अर्थ-व्यवस्था को गति प्रदान करने में छोटे और मझोले उद्यमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे इनोवेटिव युवा उद्यमियों ने स्टार्ट-अप ईको-सिस्टम का प्रभावी उपयोग करते हुए सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हमारे देश में विकसित, विशाल और सुरक्षित डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म की सफलता का एक उदाहरण यह है कि हर महीने करोड़ों की संख्या में डिजिटल ट्रांज़ेक्शन किए जा रहे हैं।

जन-संसाधन से लाभ उठाने यानि डेमोग्राफिक डिविडेंड प्राप्त करने के लिए, हमारे पारंपरिक जीवन-मूल्यों एवं आधुनिक कौशल के आदर्श संगम से युक्त राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये सरकार ने समुचित वातावरण उपलब्ध कराया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि विश्व में सबसे ऊपर की 50 ‘इनोवेटिव इकॉनोमीज़’ में भारत अपना स्थान बना चुका है। यह उपलब्धि और भी संतोषजनक है कि हम व्यापक समावेश पर जोर देने के साथ-साथ योग्यता को बढ़ावा देने में सक्षम हैं।

देवियों और सज्जनों,

पिछले वर्ष ओलंपिक खेलों में हमारे खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई थी। उन युवा विजेताओं का आत्मविश्वास आज लाखों देशवासियों को प्रेरित कर रहा है।

हाल के महीनों में, हमारे देशवासियों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिबद्धता और कर्मठता से राष्ट्र और समाज को मजबूती प्रदान करने वाले अनेक उल्लेखनीय उदाहरण मुझे देखने को मिले हैं। उनमें से मैं केवल दो उदाहरणों का उल्लेख करूंगा। भारतीय नौसेना और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड की समर्पित टीमों ने स्वदेशी व अति-आधुनिक विमानवाहक पोत ‘आईएसी-विक्रांत’ का निर्माण किया है जिसे हमारी नौसेना में शामिल किया जाना है। ऐसी आधुनिक सैन्य क्षमताओं के बल पर, अब भारत की गणना विश्व के प्रमुख नौसेना-शक्ति-सम्पन्न देशों में की जाती है। यह रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होने का एक प्रभावशाली उदाहरण है।

इससे हटकर एक विशेष अनुभव मुझे बहुत हृदय-स्पर्शी लगा। हरियाणा के भिवानी जिले के सुई नामक गांव में उस गांव से निकले कुछ प्रबुद्ध नागरिकों ने संवेदनशीलता और कर्मठता का परिचय देते हुए ‘स्व-प्रेरित आदर्श ग्राम योजना’ के तहत अपने गांव का कायाकल्प कर दिया है। अपने गांव यानि अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव और कृतज्ञता का यह एक अनुकरणीय उदाहरण है।

कृतज्ञ लोगों के हृदय में अपनी जन्मभूमि के प्रति आजीवन ममता और श्रद्धा बनी रहती है। ऐसे उदाहरण से मेरा यह विश्वास दृढ़ होता है कि एक नया भारत उभर रहा है – सशक्त भारत और संवेदनशील भारत। मुझे विश्वास है कि इस उदाहरण से प्रेरणा लेकर अन्य सक्षम देशवासी भी अपने-अपने गांव एवं नगर के विकास के लिए योगदान देंगे।

इस संदर्भ में आप सभी देशवासियों के साथ मैं एक निजी अनुभव साझा करना चाहूंगा। मुझे पिछले वर्ष जून के महीने में कानपुर देहात जिले में स्थित अपनी जन्म-भूमि अर्थात अपने गांव परौंख जाने का सौभाग्य मिला था। वहां पहुंचकर, अपने आप ही, मुझमें अपने गांव की माटी को माथे पर लगाने की भावना जाग उठी क्योंकि मेरी मान्यता है कि अपने गांव की धरती के आशीर्वाद के बल पर ही मैं राष्ट्रपति भवन तक पहुंच सका हूं। मैं विश्व में जहां भी जाता हूं, मेरा गांव और मेरा भारत मेरे हृदय में विद्यमान रहते हैं।

भारत के जो लोग अपने परिश्रम और प्रतिभा से जीवन की दौड़ में आगे निकल सके हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि अपनी जड़ों को, अपने गांव-कस्बे-शहर को और अपनी माटी को हमेशा याद रखिए। साथ ही, आप सब अपने जन्म-स्थान और देश की जो भी सेवा कर सकते हैं, अवश्य कीजिए। भारत के सभी सफल व्यक्ति यदि अपने-अपने जन्म-स्थान के विकास के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करें तो स्थानीय-विकास के आधार पर पूरा देश विकसित हो जाएगा।

प्यारे देशवासियो,

आज, हमारे सैनिक और सुरक्षाकर्मी देशाभिमान की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। हिमालय की असहनीय ठंड में और रेगिस्तान की भीषण गर्मी में अपने परिवार से दूर वे मातृभूमि की रक्षा में तत्पर रहते हैं। हमारे सशस्त्र बल तथा पुलिसकर्मी देश की सीमाओं की रक्षा करने तथा आंतरिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए रात-दिन चौकसी रखते हैं ताकि अन्य सभी देशवासी चैन की नींद सो सकें। जब कभी किसी वीर सैनिक का निधन होता है तो सारा देश शोक-संतप्त हो जाता है। पिछले महीने एक दुर्घटना में देश के सबसे बहादुर कमांडरों में से एक – जनरल बिपिन रावत – उनकी धर्मपत्नी तथा अनेक वीर योद्धाओं को हमने खो दिया। इस हादसे से सभी देशवासियों को गहरा दुख पहुंचा।

देवियो और सज्जनो

देशप्रेम की भावना देशवासियों की कर्तव्य-निष्ठा को और मजबूत बनाती है। चाहे आप डॉक्टर हों या वकील, दुकानदार हों या ऑफिस-वर्कर, सफाई कर्मचारी हों या मजदूर, अपने कर्तव्य का निर्वहन निष्ठा व कुशलता से करना देश के लिए आपका प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।

सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर के रूप में, मुझे यह उल्लेख करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि यह वर्ष सशस्त्र बलों में महिला सशक्तीकरण की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण रहा है। हमारी बेटियों ने परंपरागत सीमाओं को पार किया है, और अब नए क्षेत्रों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की सुविधा आरंभ हो गई है। साथ ही, सैनिक स्कूलों तथा सुप्रतिष्ठित नेशनल डिफेंस एकेडमी से महिलाओं के आने का मार्ग प्रशस्त होने से सेनाओं की टैलेंट-पाइपलाइन तो समृद्ध होगी ही, हमारे सशस्त्र बलों को बेहतर जेन्डर बैलेंस का लाभ भी मिलेगा।

मुझे विश्वास है कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत आज बेहतर स्थिति में है। इक्कीसवीं सदी को जलवायु परिवर्तन के युग के रूप में देखा जा रहा है और भारत ने अक्षय ऊर्जा के लिए अपने साहसिक और महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ विश्व-मंच पर नेतृत्व की स्थिति बनाई है। निजी स्तर पर, हम में से प्रत्येक व्यक्ति गांधीजी की सलाह के अनुरूप अपने आसपास के परिवेश को सुधारने में अपना योगदान कर सकता है। भारत ने सदैव समस्त विश्व को एक परिवार ही समझा है। मुझे विश्वास है कि विश्व बंधुत्व की इसी भावना के साथ हमारा देश और समस्त विश्व समुदाय और भी अधिक समरस तथा समृद्ध भविष्य की ओर आगे बढ़ेंगे।

इस वर्ष जब हमारे देश की आजादी के 75 साल पूरे होंगे तब हम अपने राष्ट्रीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करेंगे। इस अवसर को हम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहे हैं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि बड़े पैमाने पर हमारे देशवासी, विशेषकर हमारे युवा, इस ऐतिहासिक आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। यह न केवल अगली पीढ़ी के लिए, बल्कि हम सभी के लिए अपने अतीत के साथ पुनः जुड़ने का एक शानदार अवसर है।

हमारा स्वतंत्रता संग्राम हमारी गौरवशाली ऐतिहासिक यात्रा का एक प्रेरक अध्याय था। स्वाधीनता का यह पचहत्तरवां वर्ष उन जीवन-मूल्यों को पुनः जागृत करने का समय है जिनसे हमारे महान राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरणा मिली थी। हमारी स्वाधीनता के लिए अनेक वीरांगनाओं और सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं। स्वाधीनता दिवस तथा गणतन्त्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व न जाने कितनी कठोर यातनाओं एवं बलिदानों के पश्चात नसीब हुए हैं। आइए! गणतन्त्र दिवस के अवसर पर हम सब श्रद्धापूर्वक उन अमर बलिदानियों का भी स्मरण करें।

प्यारे देशवासियों,

हमारी सभ्यता प्राचीन है परन्तु हमारा यह गणतंत्र नवीन है। राष्ट्र निर्माण हमारे लिए निरंतर चलने वाला एक अभियान है। जैसा एक परिवार में होता है, वैसे ही एक राष्ट्र में भी होता है कि एक पीढ़ी अगली पीढ़ी का बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करती है। जब हमने आज़ादी हासिल की थी, उस समय तक औपनिवेशिक शासन के शोषण ने हमें घोर गरीबी की स्थिति में डाल दिया था। लेकिन उसके बाद के पचहत्तर वर्षों में हमने प्रभावशाली प्रगति की है।

अब युवा पीढ़ी के स्वागत में अवसरों के नए द्वार खुल रहे हैं। हमारे युवाओं ने इन अवसरों का लाभ उठाते हुए सफलता के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। मुझे विश्वास है कि इसी ऊर्जा, आत्म-विश्वास और उद्यमशीलता के साथ हमारा देश प्रगति पथ पर आगे बढ़ता रहेगा तथा अपनी क्षमताओं के अनुरूप, विश्व समुदाय में अपना अग्रणी स्थान अवश्य प्राप्त करेगा। मैं आप सभी को पुनः गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!