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अर्दोआन की सनकी मानसिकताएं बनेंगी दुनिया की मुसीबतें - Sabguru News
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अर्दोआन की सनकी मानसिकताएं बनेंगी दुनिया की मुसीबतें

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अर्दोआन की सनकी मानसिकताएं बनेंगी दुनिया की मुसीबतें

तुर्की के राष्टपति अर्दोआन की सनकी मानसिकताएं दुनिया की चिंताजनक विषय रहीं हैं और दुनिया की शांति-सदभाव को प्रभावित करती रहीं हैं। अर्दोआन कभी उस पाकिस्तान का समर्थन करते हैं जो आतंकवाद का घिनौना चेहरा है और जिसने अपने यहां के आतंकी समूहों को दुनिया के कोने-कोने में आउटसोर्सिंग कर खून-खराबा करवाया और मानवता का खून करवाया।

अर्दोआन कभी उस तालिबान का समर्थन करते हैं जो इस्लाम के नाम पर सिर्फ हिंसा करना और महिलाओं का खून बहाना जानता है, अर्दोआन कभी अपने आप को दुनिया में इस्लाम का रखवाला और इस्लाम का नेता घोषित कर देता है, अर्दोआन कभी इजरायल विध्वंस की कसमें खाता है, अर्दोआन कभी भारत की कश्मीर नीति पर न केवल प्रश्न खड़ा करता है बल्कि कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान की भाषा बोलने लगता है।

अर्दोआन कभी सददी अरब के खिलाफ बदनीयति दिखाने लगते हैं, सउदी अरब के आतंकी समूहों और आतंकी समूहों के समर्थकों के लिए तुर्की को शरणस्थली बना डालते हैं, अर्दोआन कभी अमेरिका और यूरोप को अनावश्यक और डराने वाली धमकियां देने पर भी आमदा हो जाते हैं।

अर्दोआन के इन सभी नकारात्मक पहलुओं के कारण तुर्की में अराजकता बढ़ रही हैं, तुर्की भी एक असफल और हिंसक देश के रूप में तब्दील होने की ओर अग्रसर है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि तुर्की में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और लेबनान जैसी परिस्थितियां तेजी के साथ उत्पन्न हो रही हैं, आतंकी समूहों की हिंसा और अराजकता बढ़ रही है।

मजहबी कट्टरता और मजहबी पाबंदियों के कारण तुर्की की बहुलता की संस्कृति खतरे में हैं और कठमुल्लापन की मानसिकता खतरनाक तौर पर फैल गयी है। इस कारण अब तुर्की यूरोप की उदारतावाद के सहचर होने से वंचित हो गयी है। तुर्की में लोकतंत्र पर भी आतंक का पहरा उपस्थित हो गया है।

अभी-अभी तुर्की को लेकर दो घटनाएं दुनिया की चिंता के विषय बनी हुई हैं। इन दोनों घटनाओं को लेकर दुनिया में काफी बहसें भी हुई हैं और इन दोनों घटनाओं को लेकर तुर्की की छवि भी खराब हुई है तथा तुर्की के भविष्य को अधंकारमय देखा जा रहा है।

अब यहां यह प्रश्न उठता है कि तुर्की से जुड़ी घटनाएं क्या-क्या है। पहली घटना आर्थिक अराजकता को नियंत्रित करने वाले संस्थान द्वारा तुर्की के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की है। फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स ने तुर्की को ब्लैकलिस्टेट कर दिया है।

फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा ब्लैकलिस्टेड किए जाने के बाद तुर्की की कितनी समस्याएं बढेंगी, यह भी स्पष्ट है। अब तुर्की की वैश्विक आर्थिक लेन-देन पर प्रतिबंध लग जायेगा, आर्थिक कर्ज मिलने में कठिनाइयां आएंगी। तुर्की के दोस्त पाकिस्तान भी काफी समय से फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा प्रतिबंधित है।

पाकिस्तान ने फाइनेंसिल एक्शन टास्क फोर्स द्वारा ब्लैकलिस्टेड लिस्ट से बाहर निकलने की काफी कोशिश की थी। अर्दोआन खुद पाकिस्तान को ब्लैकलिस्टेट लिस्ट से बाहर निकालने के लिए वैश्विक तौर पर सक्रिय रहता था। अर्दोआन ने कई बार पाकिस्तान के पक्ष में आवाज उठायी थी और कहा करता था कि पाकिस्तान को फाइनेंसिएल एक्शन टास्क फोर्स के ब्लैकिलिस्टेड लिस्ट से बाहर रखना जरूरी है।

फाइनेसिंएल एक्शन टास्क फोर्स उस देश को ब्लैकलिस्ट में डाल देता है जो देश वैश्विक स्तर पर अराजकता, हिंसा और प्रताड़ना के अभियुक्त होते हैं। पाकिस्तान ने बार-बार नसीहतें देने के बाद भी आतंकी समूहों को आर्थिक सहायता देना बंद नहीं किया था। पाकिस्तान अपने आतंकी समूहों का संरक्षण देता है और आर्थिक सहायता भी करता है।

पाकिस्तान की इस करतूत का शिकार दुनिया के काई देश होते हैं। पाकिस्तान की तरह ही तुर्की भी कई आतंकी समूहों को संरक्षण देती रही है, कई आतंकी समूहों के लिए शरणस्थली बन गयी है। इजरायल के खिलाफ आतंकी समूहों को हिंसा के लिए उकसाते रही है। इजरायल के खिलाफ हमास और हिजबुल्लाह नामक आतंकी समूह किस प्रकार से हिंसक रहते हैं, यह भी स्पष्ट है। इसके अलावा इधर तुर्की का लोकतंत्र भी खतरे में है।

दूसरी घटना अर्दोआन की सनकीपन से जुड़ी हुई है। उसने एक बड़ा ही अलोकप्रिय और वैश्विक स्तर पर अराजकता फैलाने वाला निर्णय लिया और कदम उठाया है। उसने कोई एक नहीं बल्कि अमेरिका और यूरोप कें दस-दस देशों के राजदूतों पर दबाव बनाने और उन पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए हैं। उसने दस देशों के राजदूतों को अस्वीकार्य घोषित कर दिया है। अस्वीकार घोषित करने का अर्थ यह हुआ कि उन्हें अब तुर्की छोड़ने के लिए विवश होना पड़ सकता है। तुर्की बलपूर्वक उन राजदूतों को बाहर कर सकता है।

अर्दोआन ने अपने एक बयान में कहा है कि विदेशी राजदूत उन्हें शिक्षा देने जैसे कार्य नही ंकर सकते हैं, उनके देश के आतंरिक मामलों को प्रभावित नही कर सकते हैं, उनके आतंरिक मामलों पर उंगली नहीं उठा सकते हैं। ऐसा कर विदेशी राजदूतों ने तुर्की के खिलाफ करतूत की है, तुर्की की संप्रभुत्ता पर चोट पहुंचायी है।

विदेशी राजदूतों के खिलाफ अर्दोआन के गुस्से के कारण क्या है? क्या उनका यह गुस्सा सही है? वास्तव में अर्दोआन अपनी सनकी मानसिकता से विदेशियों को डराना धमकाना चाहते हैं। खासकर अमेरिका और यूरोप को आंख दिखाने के लिए ये कदम उठाये है। यूरोप और अमेरिका को यह बताना चाहते हैं कि लोकतंत्र और इस्लामिक हिंसा के खिलाफ चुपचाप रहें नहीं तो फिर उनके राजदूतों को बाहर करने की कार्रवाई होगी।

तुर्की का लोकतंत्र खतरे में है, तुर्की के लोकतंत्र पर हिंसा का बोलबाला है, लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं लगातार हिंसा की शिकार हो रही हैं। लोकतंत्र के लिए सकिय लोगों पर उत्पीड़न और प्रताड़ना की नीतियां हावी हैं। दरअसल ओस्मान कवाला की रिहाई की मांग अमेरिका और यूरोप के राजदूतों ने की थी। ओस्मान कवाला एक लोकतांत्रिक शख्सियत हैं, लोकतंत्र के लिए उनका समर्पण रहा है, लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए उनकी सक्रियता रहती थी। 2013 में तुर्की में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हुए थे।

तुर्की की सिंहासन हिल गया था। विरोध प्रदर्शनों के कारण तुर्की की सरकार वैश्विक स्तर पर काफी अलोकप्रिय हुई थी और तुर्की पर प्रतिबंधों की बात उठने लगी थी। कई देश तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ सी साथ सैनिक प्रतिबंध भी लगाना चाहते थे। उन विरोध प्रदर्शनों को लेकर तुर्की की सरकार ने ओस्मान कवाला को जिम्मेदार ठहराया था।

ओस्मान कवाला आज कई सालों से जेल में बंद है और उस पर कई तरह की उत्पीड़न की नीतियां जारी है। ओस्मान कवाला के साथ ही साथ हजारों लोकतंत्र सेनानी भी जेलों में बंद है। अमरीका और यूरोप के राजदूतों ने ओसमान कवाला सहित सभी लोकतंत्र सेनानियों की रिहाई की बात की थी। इसी कारण अर्दोआन ने ऐसा कदम उठाया है।

अर्दोआन की दोहरी नीति देखिए। उसने अमरीका और यूरोप के राजदूतों की इस हस्तक्षेप को बहुत ही खतरनाक माना और अपने देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना। पर अर्दोआन गैर इस्लामिक देशों के खिलाफ किस प्रकार से हस्तक्षेप करते हैं और मजहबी तथा आंतकी मानसिकताओं को अंजाम देते हैं? यह भी स्पष्ट है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। कश्मीर में पाकिस्तान किस प्रकार से आतंक का सहारा लेकर भारत का विखंडन चाहता है, यह भी स्पष्ट है।

पर अर्दोआन हमेशा कश्मीर को लेकर भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है और कश्मीर के प्रश्न पर पाकिस्तान का साथ देता है। जब भारत ने धारा 370 हटाने का काम किया तब अर्दोआन ने संयुक्त राष्टसंघ में भारत के खिलाफ कई प्रकार की कठिनाइयां खड़ी करने का काम किया, भारत के खिलाफ कई प्रस्तवा लाए थे। हालांकि ये सभी प्रयास बेकार हुए थे।

भारत ने तर्कपूर्ण ढंग से अपना बचाव किया था। इसके अलावा अर्दोआन इजरायल के प्रसंग में भी हस्तक्षेपकारी भूमिका में रहते हैं। अल अक्सा मस्जिद पर अर्दोआन की बोल आतंकी थे। जब अर्दोआन दूसरे देशों के प्रसंगों में हस्तक्षेप कर सकते हैं तब दुनिया के देश तुर्की के आंतरिक प्रसंग में हस्तक्षेप क्यों नही ंकर सकते हैं, अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की सक्रियता पर आधारित अपनी बात क्यों नहीं रख सकते हैं?

अभी अमरीका और यूरोप के देशों ने अर्दोआन की इस करतूत के खिलाफ कोई खास कदम नहीं उठाए हैं और न ही कोई हानिकारक प्रतिक्रियाएं दी हैं। पर इसका अर्थ यह नहीं है कि अमरीका और यूरोप के देश इस प्रसंग पर हस्तक्षेपकारी और सबककारी प्रतिक्रियाएं नहीं देंगे?

अमरीका और यूरोप के देश अभी प्रतीक्षा कर रहे हैं, उन्हें अर्दोआन के अगले कदम की प्रतीक्षा है फिर वे उचित कार्रवाई करेंगे। अगर अमरीका और यूरोप के देशों के राजदूत तुर्की छोड़कर चले गए तो फिर उसका सर्वाधिक नुकसान उन्हें नहीं बल्कि तुर्की का ही होगा। तुर्की यूरोप से पूरी तरह से कट जाएगा। तुर्की नोटों का भी निकटतम पड़ोसी है।

अर्दोआन सीधेतौर पर तुर्की को अराजकता और हिंसा की ओर ले जा रहे हैं। मोहम्मद कमाल पासा की विरासत ढह चुकी है। मोहम्मद कमाल पासा की विरासत ही तुर्की को महान और विकसित देश बना सकती थी। पर दुखद यह है कि अर्दोआन के सिर पर इस्लाम की हिंसक मानसिकताओं का भूत नाच रहा है और तुर्की भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, लेबनान की स्थिति की ओर अग्रसर है।

विष्णुगुप्त
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