देहरादून। निष्पक्ष और बेवाक पत्रकारों से भेदभाव कर पत्रकारिता का स्तर गिराने की शिकायत पर भारतीय प्रेस परिषद (प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया) ने उत्तराखंड के सूचना एवं जन संपर्क विभाग के महानिदेशक को परिषद की जांच कमेटी के समक्ष अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने के लिए समन जारी किए है।
काउंसिल के अंडर सेक्रेटरी(ड) द्वारा 23 दिसंबर को जारी समन में कहा गया है कि वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत की शिकायत पर गठित काउंसिल की जांच कमेटी की नौ दिसंबर 2020 दिल्ली में संपन्न सुनवाई बैठक में महानिदेशक सूचना एवं लोक संपर्क विभाग के बदले प्रभारी सूचना अधिकारी दिल्ली ऑफिस हाजिर हुई जो कि जो सही जवाब नहीं दे पाई।
न्यायमूर्ति सी के प्रसाद की अध्यक्षता में संपन्न उक्त बैठक में सूचना विभाग की कार्य प्रणाली पर भी तीखी टिप्पणियां की गईं। बैठक में महानिदेशक सूचना को स्वयं अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से हाजिर हो कर पत्रकार जयसिंह रावत की शिकायत का जवाब देने का आदेश पारित हुआ। परिषद को सिविल कोर्ट की तरह न्यायिक अधिकार प्राप्त हैं। जिसमे वारंट तक जारी करने का अधिकार शामिल है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के वरिष्ठतम श्रमजीवी पत्रकार ने प्रेस काउंसिल से शिकायत की थी कि उनकी निष्पक्ष और बेवाक पत्रकारिता से नाराज सूचना विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उनके साथ पक्षपात और भेदभाव कर रहे हैं।
रावत का आरोप था कि उनके द्वारा वायोबृद्ध श्रम जीवी पत्रकार पेंशन योजना की सभी शर्तें पूरी करने पर भी उन्हें इस लाभ से वंचित करने के लिए दो साल तक बैठक नहीं बुलाई गई और जब बैठक हुई भी तो उसमें पेंशन प्रकरण निरस्त कर दिए गए जबकि 2017 में हुई बैठक में उनका मामला सशर्त स्वीकार हो चुका था और उन्हें केवल आय तथा स्थाई निवास प्रमाणपत्र जमा कराने को कहा गया था।
रावत का आरोप था कि वह प्रदेश के वरिष्ठतम श्रमजीवी पत्रकार हैं और संवाददाता से लेकर संपादक तक के रूप में पत्रकारिता को अपनी पूर्णकालिक सेवाएं दे चुके हैं। वैसे भी यह पेंशन श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 के दायरे में आने वाले पत्रकारों के लिए शुरू हुई थी।
रावत का आरोप है कि सूचना विभाग ने उनके साथ भेदभाव कर संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का हनन किया है। विभाग द्वारा अब तक सात वयोवृद्ध पत्रकार को पेंशन स्वीकृत की गई है।
उल्लेखनीय है कि राज्य के पत्रकार कल्याण कोष, जिसके तहत यह पेंशन दी जाती है की बैठक दो साल तक न होने पर भी अध्यक्ष और सदस्यों ने बैठक में हैरानी प्रकट की थी। इस पर न्यायमूर्ति प्रसाद ने सूचना विभाग की प्रतिनिधि से पूछा था कि उत्तराखंड में सरकार नाम की कोई चीज है या नहीं।