Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
प्रथम दृष्टया ‘तलाक-ए-हसन’ अनुचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट - Sabguru News
होम Delhi प्रथम दृष्टया ‘तलाक-ए-हसन’ अनुचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

प्रथम दृष्टया ‘तलाक-ए-हसन’ अनुचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

0
प्रथम दृष्टया ‘तलाक-ए-हसन’ अनुचित नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मुसलमानों में तलाक के लिए ‘तलाक-ए-हसन’ का रिवाज प्रथम दृष्टया अनुचित नहीं लगता।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ इस प्रथा की वैधता को चुनौती देने वाली बेनज़ीर हीना की याचिका कर मौखिक रूप से कहा कि प्रथम दृष्टया यह (तलाक-ए-हसन) इतना अनुचित नहीं है। महिलाओं के पास भी एक ‘खुला’ का विकल्प मौजूद है।

इस्लाम धर्म में ‘तलाक-ए-हसन’ में पत्नी से तलाक के लिए तीन महीने की अवधि में एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा महीने में एक बार ‘तलाक’ का उच्चारण किया जाता है। यदि इस अवधि के दौरान शारीरिक संबंध फिर से शुरू नहीं किया जाता है तो तीसरे महीने में तीसरे उच्चारण के बाद तलाक को औपचारिक रूप दिया जाता है।

यदि तलाक के पहले या दूसरे उच्चारण के बाद शारीरिक संबंध फिर से शुरू हो जाता है तो माना जाता है कि संबंधित पक्षों के बीच सुलह हो गई है। पहले और दूसरे ‘तलाक’ कहने को अमान्य माना जाता है।

इसी प्रकार ‘खुला’ एक ऐसी प्रथा है जो एक मुस्लिम महिला को दहेज (महर) या कुछ अन्य, जो उसने अपने पति से प्राप्त किया था या पति-पत्नी के समझौते के अनुसार कुछ भी लौटाए बिना पति को तलाक देने की अनुमति देती है।

गाजियाबाद निवासी हीना ने ‘तलाक-ए-हसन’ का शिकार होने का दावा करते हुए इसकी वैधता को चुनौती दी है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता से सहमत नहीं है। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि प्रथम दृष्टया, मैं याचिकाकर्ताओं से सहमत नहीं हूं। मैं नहीं चाहता कि यह किसी अन्य कारण से एजेंडा बने।

शीर्ष अदालत ने ‘तलाक-ए-हसन’ के मुद्दे पर फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील के अनुरोध पर इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए 29 अगस्त की तारीख मुकर्रर कर दी। हीना ने अपनी याचिका में दावा किया है कि यह प्रथा कई महिलाओं और उनके बच्चों, विशेषकर समाज के कमजोर आर्थिक वर्गों से संबंधित लोगों तबाह करने वाली है।