जयपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के चलन एवं उपयोग में आ रही कमी तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों के अधिक इस्तेमाल को गंभीर चुनौती बताते हुए कहा है कि शासकीय एवं न्यायिक कार्यो में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
संघ के प्रांत संघ चालक डा़ रमेश चन्द्र अग्रवाल ने नागपुर में हाल में हुए प्रतिनिधि सभा में लिए गये निर्णयों की जानकारी देते हुए यहां पत्रकारों को बताया कि भारतीय भाषाओं के शब्दों के विलोपन तथा विदेशी भाषाओं के शब्दों के अधिक प्रचलन पर चिंता व्यक्त की गई।
उन्होंने बताया कि प्रतिनिधि सभा का मानना है कि देश की विविध भाषाओं तथा बोलियों के संरक्षण एवं संवर्द्वन के लिए सरकारों एवं स्वैच्छिक संगठनों को प्रयास करना चाहिए। प्रतिनिधि सभा का यह भी मानना है कि देश में प्राथमिक शिक्षण मातृभाषा या अन्य किसी भारतीय भाषा में ही होना चाहिए।
अभिभावक अपना मानस बनाएं तथा सरकारें इस दिशा में उचित नीतियों का निर्माण कर आवश्यक प्रावधान करें। तकनीकी और आयुर्विज्ञान सहित उच्च शिक्षा के स्तर पर सभी संकायों में शिक्षण, पाठ्य सामग्री तथा परीक्षा का विकल्प भारतीय भाषाओं में भी सुलभ कराया जाना आवश्यक है।
राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (नीट) एवं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में भी लेनी प्रारंभ की गई है। यह पहल स्वागत योग्य है। इसके साथ ही अन्य प्रवेश एवं प्रतियोगी परीक्षाएं जो अभी भारतीय भाषाओं में आयोजित नहीं की जा रही है उन्हें भी यह विकल्प सुलभ कराया जाना चाहिए।
सभी शासकीय तथा न्यायिक कार्यो में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके साथ ही शासकीय एवं निजी क्षेत्रों में नियुक्तियां, पदोन्नतियां एवं सभी प्रकार के कामकाज में अंग्रेजी भाषा की प्राथमिकता न रखते हुए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।