नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस एवं पं. जवाहरलाल नेहरू पर हमला तेज करते हुए आज कहा कि 1951 में पंडित नेहरू ने डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को अखंड भारत की पैरोकारी से रोकने के लिए संविधान में संशोधन किया था और यह कांग्रेस के लोकतंत्र विरोधी रवैये को ही उजागर करता है।
मोदी ने अपने वरिष्ठ मंत्रिमंडलीय सहयोगी अरुण जेटली के जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती के मौके पर कांग्रेस और पं. नेहरू को कठघरे में खड़ा करने वाले लेख को रिट्वीट किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अरुण जेटली जी ने बहुत अच्छा लेख लिखा है जिसमें डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की सशक्त एवं अखंड भारत के प्रति वचनबद्धता के साथ-साथ कांग्रेस के लोकतंत्र विरोधी चरित्र को रेखांकित किया गया है।
जेटली ने अपने फेसबुक पोस्ट में संविधान में 1951 में किए गए प्रथम संशोधन और 1963 में किए गए 16वें संशोधन के बारे में लिखा है जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर शर्तें लगाई गईं थीं।
जेटली ने लिखा कि प्रथम संशोधन में राज्य को अभिव्यक्ति की उस स्वतंत्रता को सीमित करने की शक्ति दी गई जिससे विदेशों के साथ भारत के मैत्री संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में राज्य किसी की अभिव्यक्ति को दंडनीय अपराध बना सकता है।
उन्होंने कहा कि गत 70 वर्षों में देश में उस स्थिति में बदलाव आया है जिसमें पं नेहरू ने संविधान को इसलिए बदल दिया था कि अखंड भारत की मांग से युद्ध भड़क सकता है और इसलिए इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए। इसके विपरीत हम सबको बताया गया कि हम बिना हिंसा भड़काए देश तोड़ने की बात कहें तो यह वैधानिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है।
इस संदर्भ में जेटली ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के 2016 के आंदोलन में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के नारे का उल्लेख किया।
उन्होंने लिखा कि अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) की व्याख्या की है कि सिर्फ ऐसी कोई बात बोलना ही दंडनीय अपराध है जिससे हिंसा भड़कती हो अथवा अराजकता फैलती हो या हिंसा भड़कने के कारण जन व्यवस्था में बाधा आती हो। किसी भाषण में देश के विभाजन के पक्ष में बात कहना देशद्रोह तब तक नहीं हो सकता जब तक कि उसमें हिंसा का तत्व ना हो।
जेटली ने पं. नेहरू और डॉ. मुखर्जी के बीच राजनीतिक-संवैधानिक टकराव का जिक्र करते हुए लेख में कहा कि प्रथम मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री रहे डॉ. मुखर्जी ने नेहरू-लियाकत अली समझौते के विरुद्ध कठोर रुख अपनाया था और अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था।
पं. नेहरू ने डॉ. मुखर्जी की आलोचना पर जरूरत से अधिक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी और कहा था कि अखंड भारत का विचार टकराव का आमंत्रण है क्योंकि किसी देश का खुद में विलय करना युद्ध के बिना संभव नहीं है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म छह जुलाई 1901 को और उनका निधन 23 जून 1953 को हुआ था।