नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नए संसद भवन की आज आधारशिला रखी तथा कहा कि यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का साक्षी बनेगा और स्वतंत्र भारत में बने इस नए संसद भवन को देखकर आने वाली पीढ़ियां गर्व करेंगी।
मोदी ने संसद भवन परिसर के पार्किंग क्षेत्र में बनने वाले संसद के नए त्रिभुजाकार भवन के निर्माण के लिए भूमिपूजन के बाद समारोह को संबोधित किया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी और शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भूमिपूजन कार्यक्रम में भाग लिया। केन्द्रीय मंत्री, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेतागणए राजनयिक एवं अधिकारीगण भी कार्यक्रम में उपस्थित थे।
अपराह्न करीब एक बजे मोदी के पहुंचने पर दक्षिण भारतीय पुरोहितों ने वैदिक रीति से भूमिपूजन कार्यक्रम संपन्न कराया। नवग्रहोंए क्षेत्रपालए गणपतिए अनंतशेष, भूदेवीए कूर्म एवं वराह रूपी विष्णु का पूजन किया गया। तत्पश्चात मोदी ने नवरत्न, नवधान्य, पंचधातु के कलश, चांदी की ईंट के रूप में आधारशिला रखी। तदुपरांत वहाँ उपस्थित जैनए ईसाई, पारसी, बौद्ध, इस्लामिक आदि विविध पंथों के धर्माचार्यों ने अपने-अपने धर्म के अनुसार प्रार्थनाएं कीं।
प्रधानमंत्री ने नए संसद भवन के शिलान्यास को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर बताते हुए कहा कि पुराने संसद भवन ने स्वतंत्रता के बाद देश को दिशा दी, तो नया भवन आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का गवाह बनेगा। पुराने भवन में देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए काम हुआ, तो नए भवन में 21वीं सदी के भारत की आकांक्षाएं पूरी की जाएंगी।
जैसे आज इंडिया गेट से आगे राष्ट्रीय समर स्मारक ने नई पहचान बनाई है, वैसे ही संसद का नया भवन अपनी पहचान स्थापित करेगा। आने वाली पीढ़ियां नए संसद भवन को देखकर गर्व करेंगी कि यह स्वतंत्र भारत में बना है। आजादी के 75 वर्ष का स्मरण करके इसका निर्माण हुआ है।
उन्होंने कहा कि कोई मंदिर बनता है तो जब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं होए तब तक वह एक भवन या इमारत मात्र ही होती है। उन्होंने कहा कि संसद के नए भवन की लोकतंत्र के नए मंदिर के रूप में प्राण प्रतिष्ठा संसद में चुनकर आने वाले प्रतिनिधि करेंगे जिसकी कोई विधि निश्चित नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत की एकता.अखंडता को लेकर किए गए उनके प्रयासए इस मंदिर की प्राण.प्रतिष्ठा की ऊर्जा बनेंगे। जब एक.एक जनप्रतिनिधि अपना ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, अपना अनुभव पूर्ण रूप से यहां निचोड़ देगा, उसका अभिषेक करेगा, तब इस नये संसद भवन की प्राण.प्रतिष्ठा होगी।
मोदी ने भगवान बसवेश्वर के अनुभव मंडपम्, तमिलनाडु के उत्तरामेरु गांव, वैशाली की लोकतांत्रिक व्यवस्था के उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के लिए लोकतंत्र जीवन मूल्य एवं जीवन पद्धति हैए संस्कार हैं, राष्ट्र जीवन की आत्मा है। भारत का लोकतंत्र, सदियों के अनुभव से विकसित हुई व्यवस्था है। भारत के लिए लोकतंत्र में, जीवन.मंत्र भी है, जीवन.तत्त्व भी है और व्यवस्था का तंत्र भी है।
उन्होंने कहा कि भारत के इस लोकतंत्र के बारे में जब पश्चिमी जगत समझेंगे तब दुनिया कहेगी कि भारत लोकतंत्र का जनक है इंडिया इज़ मदर ऑफ डेमोेक्रेसी। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के समय एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर संदेह जताया गया था।
अशिक्षाए गरीबीए सामाजिक विविधता सहित कई तर्कों के साथ यह भविष्यवाणी कर दी गई थी कि भारत में लोकतंत्र असफल हो जाएगा। हमें गर्व है कि हमारे देश ने उन आशंकाओं को न सिर्फ गलत साबित कियाए बल्कि 21वीं सदी की दुनिया भारत को अहम लोकतांत्रिक ताकत के रूप में आगे बढ़ते देख रही है।
उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र, हमेशा से शासन के साथ.साथ मतभेदों को सुलझाने का माध्यम भी रहा है। मतभेदों के लिए हमेशा जगह हो लेकिन संवादहीनता कभी न होए इसी लक्ष्य को लेकर हमारा लोकतंत्र आगे बढ़ा है। नीतियों में अंतर हो सकता है, भिन्नता हो सकती है, लेकिन हम जनता की सेवा के लिए हैं, इस अंतिम लक्ष्य में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए। वाद-संवाद संसद के भीतर हो या संसद के बाहर, राष्ट्रसेवा का संकल्प, राष्ट्रहित के प्रति समर्पण लगातार झलकना चाहिए।
मोदी ने कहा कि जनप्रतिनिधियों का हर फैसला राष्ट्र प्रथम की भावना से ही होना चाहिये। हमारे हर फैसले में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहना चाहिए। राष्ट्रीय संकल्पों की सिद्धि के लिए हम एक स्वर में खड़े होंए यह बहुत जरूरी है। राष्ट्र के विकास के लिए राज्यों का विकासए राष्ट्र की मजबूती के लिए राज्यों की मजबूती, राष्ट्र के कल्याण के लिए राज्यों का कल्याण . इस मूलभूत सिद्धांत के साथ काम करने का हमें प्रण लेना है।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों का आह्वान किया कि वे नए संसद भवन के शिलान्यास के साथ ही भारत सर्वोपरि का संकल्प लें और उसे 2047 तक अपनी आराधना का हिस्सा बना लें। आजादी की सौवीं वर्षगांठ के मौके पर भारत की सर्वोन्नति की कामना के साथ यह संकल्प लेना है।
उन्होंने कहा कि हमें संकल्प लेना है भारत सर्वोपरि का। हम सिर्फ और सिर्फ भारत की उन्नति, भारत के विकास को ही अपनी आराधना बना लें। हमारा हर फैसला देश की ताकत बढ़ाए। हमारा हर निर्णय, हर फैसला, एक ही तराजू में तौला जाए और वह है. देश का हित सर्वोपरि। हम भारत के लोग यह प्रण करें कि हमारे लिए देश के संविधान की मान.मर्यादा और उसकी अपेक्षाओं की पूर्तिए जीवन का सबसे बड़ा ध्येय होगी।
मोदी ने कहा कि आज का दिन बहुत ही ऐतिहासिक है और भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है। हम भारत के लोग मिलकर अपनी संसद के इस नये भवन को बनाएंगे। और इससे सुंदर क्या होगा, इससे पवित्र क्या होगा कि जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष का पर्व मनाए तो उस पर्व की साक्षात प्रेरणाए हमारी संसद की नई इमारत बने।
उन्होंने कहा कि मैं अपने जीवन में वो क्षण कभी नहीं भूल सकता जब 2014 में पहली बार एक सांसद के तौर पर मुझे संसद भवन में आने का अवसर मिला था। तब लोकतंत्र के इस मंदिर में कदम रखने से पहले मैंने सिर झुकाकर, माथा टेककर, लोकतंत्र के इस मंदिर को नमन किया था।
उन्होंने कहा कि वर्तमान संसद भवन ने आजादी के आंदोलन और फिर स्वतंत्र भारत को गढ़ने में अपनी अहम भूमिका निभाई है। आजाद भारत की पहली सरकार का गठन भी यहीं हुआ और पहली संसद भी यहीं बैठी।
मोदी ने कहा कि संसद के शक्तिशाली इतिहास के साथ ही यथार्थ को स्वीकारना उतना ही आवश्यक है। यह इमारत अब करीब 100 साल की हो रही है। बीते वर्षों में इसे जरूरत के हिसाब से अपग्रेड किया गया। कई नए सुधारों के बाद संसद का यह भवन अब विश्राम मांग रहा है। उन्होंने कहा कि वर्षों से नए संसद भवन की जरूरत महसूस की गई है। ऐसे में हम सभी का दायित्व है कि 21वीं सदी के भारत को एक नया संसद भवन मिले। इसी कड़ी में ये शुभारंभ हो रहा है।
कार्यक्रम को अंतर संसदीय संघ के सदस्य देशों की संसदों के सभापतियों, विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों एवं विदेशी नेताओं ने भी इंटरनेट के माध्यम से देखा।