जयपुर। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरुर ने कहा कि प्रियंका गांधी को गांधी परिवार से सम्बंध रखने के कारण नहीं बल्कि मतदाताओं में उनकी लोकप्रियता के कारण कांग्रेस पार्टी में महासचिव बनाया है।
जी-जयपुर साहित्य महाेत्सव में आयोजित एक परिचर्चा के दौरान थरुर ने कहा कि संसदीय लोकतंत्र में मतदाता की भूमिका महत्वपूर्ण हाेती है और जो व्यक्ति अधिक लोकप्रिय होता वह चुनाव जीतता है। उन्होंने प्रियंका गांधी को कांग्रेस पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिये जाने पर पूछे गए एक सवाल के जवाब मेें कहा कि प्रियंका कांग्रेस कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में खासी लोकप्रिय नेता है और कई दिनों से उन्हें संगठन में जिम्मेदारी का पद दिए जाने की मांग की जा रही थी। उन्होंने इस बात से इन्कार किया कि गांधी परिवार से संबंध रखने के कारण उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है।
कांग्रेस को एक परिवार केन्द्रीत पार्टी होने की बात से इन्कार करते हुए थरुर ने कहा कि कांग्रेस पार्टी और उसका हर कार्यकर्ता गांधी परिवार में निष्ठा और विश्वास रखता है, लिहाजा स्वाभााविक तौर पर इस परिवार के लोगों को महत्वपूर्ण पद मिल जाता है।
केरल में सबरीमाला मंदिर और तमिलनाडु के जल्लीकट्टू आयोजन की चर्चा करते हुए थरुर ने कहा कि हमारा समाज विभिन्न विचारधाराओं और परम्पराओं का समाज है जिसमें परिवर्तन और सुधार समाज के भीतर से होना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर समाज में कट्टरता फैलाने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि संघ ने कभी भी हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से इन्कार नहीं किया है। उन्होंने कह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबका साथ सबका विकास का नारा देते है लेकिन उनकी पार्टी से जुड़े कई संगठन घर वापसी और लव जिहाद जैसे मुद्दाें को उठाते हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल 23 दलों में से मात्र शिवसेना ही हिन्दुत्व के मुद्दें पर उनका समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व का मुद्दा केवल सत्ता हथियाने का साधन मात्र है। यदि वह इस मामले में गंभीर है तो संसद में पूर्ण बहुमत होने के बावजूद इस पर विचार क्यों नहीं करती।
जयपुर साहित्य महोत्सव के बारहवें संस्करण में हिस्सा लेने आए थरुर ने स्वयं को गैर पारम्परिक राजनेता बताते हुए कहा कि वह अब तक कई पुस्तकें लिख चुके हैं और भारत के बारे में अधिक से अधिक लिखना चाहते हैं।
पांच दिवसीय साहित्य के इस कुंभ में भारत सहित 30 देशों के साहित्यकार भाग ले रहे हैं जिनमें 15 भारतीय और 12 अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं के लेखक शामिल है।