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Procecution on mahatma gandhi in mahatma gandhi school in sirohi - Sabguru News
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महात्मा गांधी विद्यालय में ‘उस’ पर चला मुकदमा, नैपथ्य में चली गोली

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महात्मा गांधी विद्यालय में ‘उस’ पर चला मुकदमा, नैपथ्य में चली गोली
सिरोही के महात्मा गान्धी विध्यालय में एक आकार की हत्या नाटक का मंचन करते कलाकार।
सिरोही के महात्मा गान्धी विध्यालय में एक आकार की हत्या नाटक का मंचन करते कलाकार।

    सिरोही के महात्मा गान्धी विध्यालय में एक आकार की हत्या नाटक का मंचन करते कलाकार।

परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। महात्मा गान्धी विशेष विध्यालय में ‘उस’ (महात्मा गान्धी) पर मुकदमा चला, ‘उस’ के पक्ष और विपक्ष में दलीलें रखी। लेकिन, उसकी हत्या पर आमादा तीनों ने चौथे की दलील को अस्वीकार करके ‘उस’ की हत्या की ठान कर निकल पड़े। नैपथ्य से जब ‘उसे’ मारने की तीन गोलियों की आवाजें आई तो चौथा बोल उठा, ‘तुमने सिर्फ एक आकार को मारा है, मूर्ख….’।

अज़ीम प्रेमजी फाऊंडेशन की विध्यालय और समुदाय शाखा की रंगमंच शृंखला के तहत बुधवार को ललित सहगल द्वारा लिखित ‘हत्या एक आकर की’ का मंचन किया गया। इस नाटक के माध्यम से ‘उस’ (महात्मा गान्धी) के पक्ष में हर उस आरोप की दलील दी गई जिनके आधार पर उनकी हत्या को यथोचित ठहराने का प्रायस किया जाता है।
मंचन शुरु होता है एक गुप्त स्थान से। ‘उस’ की हत्या करने के निकलने वाले चारों युवा पूरी तरह तैयार हैं। इनमे से एक गहन चिन्तन में व्यस्त है। जैसे ही चारों ‘उस’की हत्या के लिये निकलते हैं चिन्तन में डूबा चौथा उन्हे रोकते हुए कहता है कि क्या हम सही कर रहे हैं।

शेष तीन दलील देते हैं कि हां, उस ने क्रांतिकरियो का विरोध किया है। वो देश में हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करता है। उसने विभाजन में धर्म के आधार बने दूसरे मुल्क को 55 करोड़ रुपए देने की बात पैरवी की। इस पर भी चौथा इस हत्या के लिये पूरी तरह से तैयार नहीं होता। तमाम चर्चाओं के बीच एक ये दलील देता है कि क्यों ना एक मूट कोर्ट लगाकर उस पर मुकदमा चलाया जाये जो भी निर्णय आयेगा उसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जायेगी।

इसके बाद शुरु होती है ‘उस’ पर मुकदमे की तैयारी। चारों में से एक सरकारी वकील बनता है, दूसरा न्यायाधीश और तीसरा इतिहासकार। चौथा साथी जो ‘उस’ की हत्या करने की जरुरत पर प्रश्नचिन्ह लगाता है वो ‘उस’ (महत्मा गान्धी) का बचाव करने वाले वकील की भूमिका में आता है।
अदालत की कार्रवाई शुरु होती है। सरकारी वकील उस प्र आरोप तय करने के लिये गवाह के रूप में इतिहासकार को बुलाता है। इतिहासकार इतिहास के आईने में ‘उस’ (महात्मा गान्धी) पर हर वो आरोप लगाता है जो ‘उस’ की हत्या को युक्ति संगत ठहरा सके। बचाव पक्ष का वकील ‘उस’ पर लगे हर आरोप का जवाब देता है। धीरे धीरे मुकदमे की सुनवाई में शामिल सभी लोग भी ‘उस’ उसके तर्कों से सहमत होने लगते हैं तो शेष तीनों में बेचैनी बढ़ जाती है।

दक्षिण अफ्रीका से लेकर खिलाफत आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, इरविन समझौता, हरिजन आन्दोलन, केबिनेट मिशन, डायरेक्ट एक्शन, नोआखाली कल्कत्ता दंगा और 55 करोड़ रुपए देने तक के हर आरोप पर बचाव पक्ष इस तरह से ‘उस’ की पैरवी करता है कि शेष तीनों के आरोप और ‘उस’ की हत्या के लिये दी जाने वाली हर दलील दम तोडने लगती है।

फिर तीनों फैंसला लेते हैं कि बचाव पक्ष की दलीलों को दरकिनार का फैसला सुनाया जाये। फैसला होता है, कि ‘उस’ की हत्या की जाये। तीनों चौथे को छोडकर निकल जाते हैं। नैपथ्य से तीन बार गोली चलने की आवाज आती है और चौथा बोलता है,  ‘उसने तो 1919 में ही कह दिया था कि उसके लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी से कोई बात हो नहीं सकती कि उसके प्राण हिन्दू-मुसलिम एकता की राह पर जाएँ। वह तो नाच रहा होगा खुशी से। उसकी नहीं, तुमने केवल एक आकार की हत्या की है…मूर्ख…’।

नाटक के संवाद इतने सशक्त हैं कि हर शब्द सोच को झकझोरते हैं। एक संवाद तो आज भी सटीक बैठता है। इसमे उसका अधिवकता कहता है कि  ‘नेता ना लड़े तो जनसाधारण भी नहिं लड़ना चाहते।’

-गांधी पर लगे आरोप जितने बेबाक उतनी न्यायपूर्ण उनके पीछे की  गांधी की नीयत
नाटक में गाँधीजी पर इतिहासकार द्वारा लगाए जाने वाले आरोप बेबाक हैं, घटनाओं के उल्लेख के साथ हैं, और गाँधीजी और उनके बचाव पक्ष के वकील के उत्तर भी उतने ही स्पष्ट और दो-टूक हैं। समुदाय, राष्ट्र और सारी मानवता के परस्पर संबंध, राजनीति में हिंसा की जगह, सत्य और अहिंसा के मूल्यों का महत्व— इन बातों पर नाटक बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है।

ये नाटक ललित सहगल ने 1969 में गान्धी की जन्म शताब्दी पर लिखा था, लेकिन 150 जयन्ती समारोह के दौरान आज व्हाट्स एप और फेसबुक की अदालत में ‘उस’ पर लगाए जा रही आरोपों की झड़ियां तर्कपूर्ण जवाबों के सामने बेदम होती लगती हैं। अनुरंजन ने गांधी और उसके बचाव पक्ष के वकील की भूमिका जितनी सशक्त निभाई उतनी सशक्तता से सरकारी वकील की भूमिका में सोमेश, इतिहासकार की भूमिका में कमलेश और जज की भूमिका में योगेश भी कम प्रभाव नहीं छोड़ते।

अज़ीम प्रेमजी फाऊंडेशन की विध्यालय और समुदाय शाखा के अभिषेक गोस्वमी ने बताया कि इस नाटक को तैयार करने में 2 महीने का समय लगा। फाऊंडेशन द्वारा शिक्षा में नाटक की भूमिका का महत्व बताया। नाटक में राजेश, निखिल, पूजा, निशान्त, विजय, स्वपनिल समेत अज़ीम प्रेम्जी फोइन्देशन थिएटर टीम के 11 जने शामिल थे।
-कल फिर आकार लेगा शरीर
इसी नाटक का मंचन शुक्रवार को फिर होगा। यही टीम सरूपगंज के राजकीय विध्यालय में शाम 5 .30 बजे फिर इस नाटक का मंचन करेगी। ये आकार फिर वहां खड़ा होगा फिर अपनी दलील देगा और फिर फना भी होगा। लेकिन आकार के इस जन्म मरण के हर मंचन में वो आत्मा जिसका नाम महात्मा गांधी है कई सोच में अमरत्व को पायेगी।