सबगुरु न्यूज-सिरोही। कवरेज के दौरान कुछ गिने चुने कार्यक्रम होते हैं, जिनमे चाह कर भी नकारात्मकता ढूंढने के मन नहीं करता। इसका मतलब ये नहीं कि आयोजन ने पूर्णता प्राप्त कर ली हो। लेकिन, उन कमियों को सामने लाकर आयोजन में और सुधार करने का काम सम्पूर्ण कार्यक्रम निपटने के बाद हो सकता है। ऐसा ही कार्यक्रम रहा जिला प्रशासन के तत्वावधान में आयोजित सिरोही स्थापना दिवस महोत्सव।
इस स्थापना दिवस को सिर्फ दो शब्दों में समेटा जा सकता है। और वो है, ‘ना भूतो’। यानि ‘पहले कभी नहीं’ । ये दो शब्द कहने पर इसलिए मजबूर होना पड़ा कि खुद यहां पर अपना जीवन निकाल चुके लोगों ने शनिवार की दीपमाला कार्यक्रम और रविवार सुबह की शोभायात्रा के दौरान ये कहा। ‘ना भविष्यति’, यानी ‘आगे भी कभी नहीं’, इसलिए नहीं कहेंगे क्योंकि इस कर्यक्रम ने खुद आने समय में लोगों के लिए ऐसी लंबी रेखा खींच दी है कि इससे कम तो कुछ भी सहनीय नहीं होगा।
अब कुछ क्रिटिक्स ये भी कह सकते हैं कि सिरोही कई धार्मिक आयोजनों का गवाह रहा है। कई सामाजिक आयोजनों में झूमा है। उनमें तो ऐसा देखने को मिला ही होगा। ऐसा हो सकता है। लेकिन, उन कार्यक्रमो में लोग धार्मिक या सामाजिक बंधनो और शर्तों में बंधकर हिस्सेदारी करते हैं। लेकिन, धर्म और जातियों की वर्जनाओं को तोड़कर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सम्मान के लिए इस तरह का जमावड़ा सिर्फ 30 हजार की आबादी वाले शहर की स्थापना के आयोजन में सिरोही ने कभी नहीं देखा।
यदि आप इन पलों के गवाह नहीं बने तो समझिए कि इंस्टा, फेसबुक और व्हाट्सएप स्टेट्स का बहुत बड़ा पल आपने खो दिया। 18 घण्टे में हुए कार्यक्रमो ने है दिखा दिया कि इस महोत्सव की फ्रेमिंग उसी खूबसूरती से की गई है जिस तरह से आप-हम अपने सोशल मीडिया अकाउंट की डीपी (डिस्प्ले फ़ोटो) के लिए फोटो खींचने से पहले लैंडस्केपिंग देखते हैं। अपने वैचारिक शिशु (सिरोही स्थापना दिवस महोत्सव) की सफलता देखने की मुख्यमंत्री के सलाहकार संयम लोढ़ा और इस शिशु के पोषण की जिम्मेदारी सम्भाले जिला कलेक्टर डॉ भंवरलाल पूरे कार्यक्रमों में मौजूद रहे।
-संस्कृति का गुलाल और सौहार्द के फूल बिखेरती शोभायात्रा
सिरोही स्थापना दिवस के कर्यक्रम की फ्रेमिंग को देखकर कहीं से ये नहीं कहा जा सकता है कि इसे इतनी खूबसूरती से बांधने का काम एक अनुभवी टीम और नया करने की इच्छुक टीम के बिना सम्भव था। सुबह अहिंसा सर्किल पर अद्भुत नजारा था। जो ड्रेस कोड आजकल शादी समारोह में इवेंट मैनेजमेंट टीमें एक परिवार के लोगों पर आसानी से लागू कर देती हैं। उस ड्रेस कोड में सिरोही स्थापना दिवस में सिरोही के सैंकड़ों परिवार एकाकार हो गए।
महिलाएं लाल रंग की चुंदड़ी की साड़ियों में सिर और कलश लिए हुए थी, तो पुरुष सफेद पायजामा कुर्ता और साफे में नजर आए। बैंड, ऊंट, सिरोही की आदिवासी संस्कृति में की छटा बिखेरते गरासिया समुदाय, पारंपरिक वेशभूषा में सिरोही के गौरव का प्रतीक रेबारी समाज के पुरुष, रोजेदार मुस्लिम समाज के लोगों ने इस शोभायात्रा को घरों के मेहमान खाने को सजाने के लिए लगाए जाने वाले बुके (फूलों के गुलदस्ते) में तब्दील कर दिया था जो सिरोही कि सड़कों को गौरवांवित कर रही थी। जब इतना खूबसूरत दृश्य था तो इस पर फूलों की खुशबू और गुलाल की छिटकार क्यों न हो? तो उसके लिए ड्रोन से फूलों की वर्षा की गई तो आतिशबाजी के रंग बिखेरे।
-पैवेलियन में सेंड आर्ट ने तो मोह लिया
समय कम था, लेकिन इतने कम समय में अरविंद पैवेलियन में पुष्कर के सेंड आर्टिस्ट अजय ने देवड़ाओं की राजधानी सिरोही का जो रेप्लिका (प्रतिकृति) अरविंद पैवेलियन में बनाया उसे जीवंत रूप में सिरोही में देखना सिरोहीवासियों के लिए फिर ‘ना भूतो’ अनुभव था।
मिट्टी से बनाई सिरोही का अंतरराष्ट्रीय हस्ताक्षर सिरणवा की पहाड़ियां, इसकी तलहटी पर आजादी के संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गोकुल भाई भट्ट और सिरोही के गौरवपूर्ण को इतिहास लिखित दस्तावेज के रूप में सूचिबद्ध करने वाले गौरीशंकर ओझा की एम्बोयस (उकरी हुई) मृद्चित्र। सिरोही के लैंडमार्क सिरोही के महल और यहाँ की तलवार के चित्रों को जिस खूबसूरती से उकेरा था वो अद्भुत था।
सिरोही के लोगों के लिए जो बिल्कुल नया अनुभव था वो था भरूच के सिद्धि गोमा पार्टी के द्वारा प्रस्तुत किया सिद्धि धमाल नृत्य। गुजरात में बस चुके अफ्रीकन मूल के इस दल के सदस्यों ने जो नृत्य प्रस्तुत किया उसने होमोसेपियंस (पूरामानव) के फर्स्ट कोरियोग्राफरों (नृत्य शिक्षक) की जानकारी साझा की। उनके नृत्य बंदर, मोर, भालू, हिरण जैसे जानवरों की भावभंगिमाएँ स्पष्ट दर्शा रही थी कि जंगलों से निकली हंटर गेदरर्स रही मानव सभ्यता के फेवरेट कोरियोग्राफर जंगलों के जानवर थे।
सिरोही के आदिवासी गरासिया समूह से यहां के लोग परिचित हैं। उनके वालर नृत्य से भी वो लोग अनभिज्ञ नहीं, लेकिन जिस तरह युवाओं के मोबाइल इस नृत्य को भी अपनी यादों में संजोने के लिए आतुर थे उससे इनके प्रति भी उत्साह पता चलता है। मटकी दौड़ और रस्साकसी के दौरान अरविंद पैवेलियन में हो रही हूटिंग ने इसके प्रति उत्साह की सहमति देने को काफी थी। बहुरूपिया कलाकारों ने तो बच्चों को डराया भी और उत्साहित भी किया। बंदर, जिनी, राक्षस बने इन कलाकारों के साथ जमकर लोगों ने तस्वीरें खिंचवाई।
सबसे ज्यादा आकर्षण और गुदगुदाने वाला रहा काले मुंह का बंदर, उसकी भावभंगिमा से कहीं ऐसा नहीं लग रहा था कि ये सिरोही में उत्पात मचाने वाले बंदरों से कुछ अलग है। सिरोही महोत्सव की थीम पर आयोजित मेहंदी प्रतियोगिता ने तो कला में सिरोही की बालिकाओं का लोहा मनवा दिया। डिजायन की बारीकी और आकृतियों की क्लिष्टता ने तो लोगों को आंखे फाड़ने पर मजबूर कर दिया।