उत्तराखंड। शुक्रवार को उत्तराखंड राज्य सरकार के लिए राहत भरा दिन रहा। पिछले कई महीनों से राज्य में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट का राज्य सरकार को आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बदल दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण के मामले में उत्तराखंड सरकार किसी भी तरह बाध्य नहीं है । वहीं आरक्षण खत्म करने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाने के नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को अवैध ठहरा दिया है।
इस फैसले के बाद पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने का सरकार का आदेश फिर प्रभावी होने का रास्ता साफ हो गया है। अब राज्य सरकार को नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने के फैसले को सही ठहराने के एवज में मात्रात्मक (क्वांटीफायेबल) डाटा नहीं देना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रदेश में पदोन्नति पर लगी रोक भी जल्द हट सकती है।
प्रमोशन में आरक्षण देना राज्य सरकार का अधिकार है
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह भी साफ किया है कि पदोन्नति में आरक्षण देना राज्य सरकार का अधिकार है। राज्य सरकार इस बारे में फैसला लेने को स्वतंत्र है। उसे आदेश नहीं दिया जा सकता। इस संबंध में हाईकोर्ट के एक अप्रैल, 2019 को दिए गए फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया।
यहां हम आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पांच सितंबर, 2012 को राज्य सरकार के पदोन्नति में आरक्षण खत्म करने के आदेश पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सामान्य एवं ओबीसी वर्ग के कार्मिकों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। पदोन्नति में आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के मद्देनजर पदोन्नति पर लगाई गई रोक भी हट सकेगी।
‘प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है
सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य सरकार प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए किसी प्रकार की बाध्य नहीं है, किसी का मौलिक अधिकार नहीं है कि वह प्रमोशन में आरक्षण का दावा करे। कोर्ट इसके लिए निर्देश जारी नहीं कर सकता कि राज्य सरकार आरक्षण दे। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा स्वाने जजमेंट (मंडल जजमेंट) का हवाला देकर कहा कि प्रावधान है कि राज्य सरकार डेटा एकत्र करेगी और पता लगाएगी कि एससी/एसटी कैटिगरी के लोगों का प्रयाप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं ताकि प्रमोशन में आरक्षण दिया जा सके।
लेकिन ये डेटा राज्य सरकार द्वारा दिए गए रिजर्वेशन को जस्टिफाई करने के लिए होता है कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। लेकिन ये तब जरूरी नहीं है जब राज्य सरकार रिजर्वेशन नहीं दे रही है। राज्य सरकार इसके लिए बाध्य नहीं है। और ऐसे में राज्य सरकार इसके लिए बाध्य नहीं है कि वह पता करे कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं। ऐसे में उत्तराखंड हाई कोर्ट का आदेश खारिज किया जाता है और आदेश कानून के खिलाफ है।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को डाटा एकत्र करने के आदेश दिए थे
नैनीताल हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने एवं इस संबंध में आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के संबंध में राज्य सरकार को मात्रात्मक डाटा चार महीने में एकत्र करने के आदेश दिए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में स्पष्ट किया है कि जब राज्य सरकार ने उत्तराखंड में आरक्षण देने की कोई नीति लागू नहीं की गई है तो ऐसे में आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए आंकड़े जुटाने को सरकार को बाध्य करना अविधिक है।
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एक अप्रैल, 2019 और इस संबंध में दायर पुनर्विचार याचिका में 15 नवंबर, 2019 को पारित निर्णय को खारिज कर दिया। गौरतलब है कि हाईकोर्ट के उक्त आदेशों के खिलाफ मुकेश कुमार व अन्य की विशेष अनुज्ञा याचिका के संबद्ध अन्य विशेष याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति जस्टिस एल नागेश्वर राव व न्यायमूर्ति जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने उक्त फैसला सुनाया है।
एक जूनियर अभियंता को प्रमोशन करने का दिया था हाईकोर्ट ने आदेश
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक जूनियर अभियंता को प्रमोशन देने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में हाई कोर्ट को ये नहीं बताया गया कि कमिटी ने क्वॉन्टिटेटिव डेटा एकत्र किया था और राज्य सरकार ने तय किया था कि प्रमोशन में आरक्षण नहीं दिया जाएगा। ऐसे में हाई कोर्ट का आदेश खारिज किया जाता है। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी के जूनियर अभियंता से असिस्टेंट अभियंता के तौर पर प्रमोशन में रिजर्वेशन देने का 15 जुलाई को आदेश पारित किया था। हाई कोर्ट ने इसके लिए राज्य सरकार से कहा था कि वह पब्लिक सर्विस के लिए एससी/एसटी समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए क्वॉन्टिटेटिव डेटा एकत्र करे। सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को राज्य सरकार ने चुनौती दी थी।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार