कोलकाता। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी पर आरोप लगाया कि फ्रांस के साथ हुए राफेल लडाकू विमान सौदे में उन्हाेंने देश को अंधेरे में रखा है आैर कांग्रेस के कार्यकाल में 12 दिसंबर 2012 को हुए पहले समझौते के बाद सौदे में तीन गुना बढ़ोतरी पर उन्हें स्पष्टीकरण देना चाहिए।
चिदंबरम ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में इस सौदे से जुड़े दस्तावेजों का जिक्र करते हुए कहा कि मौजूदा केन्द्र सरकार ने रक्षा सौदों से संबंद्ध सभी प्रकियाओं की उपेक्षा की है और इस सौदे के बारे में सभी सक्षम समितियों को भी अंधेरे में रखा है।
उन्होंने कहा कि मैं जो बात अब कह रहा हूं वही बात रिकार्डों और दस्तावेजों के आधार पर काफी लंबे समय से कांग्रेस कहती रही है अौर अब तक किसी ने भी हमारे बयान में किसी त्रुटि का जिक्र नहीं किया है।
उन्होंने इस सौदे से जुड़े सभी ब्योरे भी पेश करते हुए मौजूदा सरकार से पूछा है कि आखिर केन्द्र सरकार ने रक्षा खरीद प्रकिया की उपेक्षा क्यों की और क्यों निविदा मंत्रणा समिति तथा कीमत मंत्रणा समिति को अंधेरे में रखा गया। चिदंबरम ने यह आरोप भी लगाया कि रक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को भी भरोसे में नहीं लिया गया।
चिदंबरम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार के बाद भाजपा नीत राजग सरकार वर्ष 2014 में सत्ता में आई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अप्रेल 2015 में फ्रांस की आधिकारिक यात्रा के बाद घोषणा की थी कि 36 राफेल लडाकू विमानों के सौदे को मंजूरी दे दी गई है लेकिन उस समय कीमतों का जिक्र नहीं किया गया था।
मगर इसके बाद दासाल्ट विमानन कंपनी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यह सौदा 7.5 अरब यूरो का है जो भारतीय मुद्रा में 60,145 करोड़ रुपए बैठता है जबकि संप्रग सरकार ने 36 विमानों के सौदे को मात्र 18,940 करोड़ रुपए में मंजूरी दी थी। इसका आशय यह है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में इस सौदे की कीमत बढकर तीन गुना हो गई है।
चिदंबरम ने दावा किया कि इस सौदे के बारे मेें हर मंत्रालय, हर विभाग को अंधेरे में रखा गया और मोदी ने लडाकू विमानों की खरीद को सबको दरकिनार कर मंजूरी दे दी। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यकाल में राफेल विमान का जो सौदा हुआ था उसके हिसाब से प्रत्येक राफेल विमान 526 करोड़ रुपए का था लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में इस विमान की लागत बढ़कर 1670 करोड़ रुपए हो गई है। इसके अलावा माैजूदा सरकार के इस सौदे में कहीं भी तकनीकी हस्तांतरण का कोई जिक्र नहीं है।