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Raja Niranjan Singh Judeo, the King of Thukra Chambal was offered the pension, had shown that Agendenjo was "screwed"-पेंशन की पेशकश ठुकरा चंबल के राजा निरंजन सिंह जूदेव ने दिखाया था अग्रेंजो को ‘ठेंगा’ - Sabguru News
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पेंशन की पेशकश ठुकरा चंबल के राजा निरंजन सिंह जूदेव ने दिखाया था अग्रेंजो को ‘ठेंगा’

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पेंशन की पेशकश ठुकरा चंबल के राजा निरंजन सिंह जूदेव ने दिखाया था अग्रेंजो को ‘ठेंगा’
भरेह राजवंश के राजा निरंजन सिंह
भरेह राजवंश के राजा निरंजन सिंह
भरेह राजवंश के राजा निरंजन सिंह

इटावा । आजादी के आंदोलन के दौरान चंबल इलाके के राजाओं ने भी अपने साहस वीरता का पराक्रम दिखाने में कोई कमी नही रखी थी।

इन्ही में से एक भरेह राजवंश के राजा निरंजन सिंह जूदेव थे। वर्ष 1857 के गदर के दौरान अंग्रजो की ओर से 200 रुपए की प्रतिमाह पेंशन देने की पेशकश की गई लेकिन आज़ादी के मतवाले इस राजा ने अग्रेंजो की इस खैरात को स्वीकारने से इंकार कर दिया। जिसके नतीजे में जंग शुरू हो गयी।

इटावा के के के पीजी कालेज में इतिहास विभाग के हेड डा़ शैलेन्द्र शर्मा के अनुसार साल 1857 से लेकर के 1860 तक राजा निरंजन सिंह जूदेव अंग्रेजों के दांत खट्टे करते रहे। मशक्कत के बाद महायोद्धा को अंग्रेजी हुकूमत में गिरफ्तार कर काला पानी की सजा सुनाई और किले को तोपों से उड़ा दिया।

शर्मा ने बताया कि दुनिया पर हुकूमत करने वाले ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ क्रांति में अग्रणीय भूमिका निभाने वाले चम्बल इलाके की भरेह रियासत के ध्वस्त किले का एक-एक टुकड़ा 1857 के प्रथम स्वत्रंता आंदोलन की दास्तां सुना रहा है।

इटावा के हज़ार साल पुस्तक के हवाले से इतिहासकार ने बताया कि वक्त की मार और सरकारी उपेक्षा के कारण नष्ट हो चुके इस राष्ट्रीय धरोहर ने 1857 की प्रथम स्वत्रंता क्रांति के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। बाद में अंग्रेजो नें तोपों से इस किले को ध्वस्त कर दिया था। इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय धरोहर को आजाद भारत में भी पुरात्तव विभाग ने अपने कब्जे में नहीं लिया है।