जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के साथ बागियों तथा छोटे मोटे दलों के उम्मीदवारों ने चुनावी संघर्ष को त्रिकोणात्मक तथा चतुष्कोणीय बना दिया है।
कांग्रेस 200 में से 195 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि भाजपा सभी 200 सीटों पर चुनाव मैदान में है। इनमें 128 सीटों पर कांग्रेस -भाजपा में मुकाबला होगा लेकिन बागियों एवं छोटे मोटे दलाें के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों ने 60 सीटों पर त्रिकोणात्मक तथा 12 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला बना दिया है।
टिकिट नहीं मिलने से नाराज हुए मंत्री विधायकों में ज्ञानदेव आहूजा तथा अलका गुर्जर ही नाम वापस लेने के लिए तैयार हुई जबकि पांच मंत्री और इतने ही विधायक अब भी अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव मैदान में है।
पार्टी में बगावत करने वाले मंत्री सुरेन्द्र गोयल, हेमसिंह भडाना, राजकुमार रिणवा एवं धनसिंह रावत, विधायक किसनाराम नाई, अनिता कटारा, पूर्व विधायक लक्ष्मीनारायण दवे, राधेश्याम गंगानगर तथा रामेश्वर भाटी को पार्टी से निष्कसित कर दिया है। इन सभी उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों को परेशानी में डाल दिया है।
कांग्रेस में बागियों को निकालने की कार्रवाई नहीं हुई है तथा अधिकृत प्रत्याशी के सामने चुनाव लड़ रहे बागियों को मनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। कांग्रेस के नाथूराम सिनोदिया किशनगढ, महादेव सिंह खंडेला खंडेला से, संयम लोढा सिरोही से, बाबूलाल नानगर दूदू से, सीएस वैद तारानगर से, कयूम खान मसूदा से, रमेश खंडेलवाल नीमकाथाना से, आलोक बेनीवाल शाहपुरा से, पार्टी के सामने चुनाव लड़कर अधिकृत प्रत्याशियों के सामने मुश्किल खडी कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सामने भाजपा से कांग्रेस में आए पूर्व केन्द्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेन्द्र सिंह को झालरापाटन से चुनाव मैदान में उतारा गया है। राजे के मुकाबले सिंह की उम्मीदवारी ज्यादा मजबूत नहीं लगती लेकिन सियासत की लड़ाई को व्यक्तिगत लड़ाई बनाकर अलग तरह का संदेश दिया जा रहा है।
कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ़ बीडी कल्ला, गिरिजा व्यास, करणसिंह यादव, रामनारायण गुर्जर को भी उम्रदराज होने के बावजूद चुनाव मैदान में उतारकर पार्टी को मजबूती दी है। भाजपा ने कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारने की कोई रणनीति नहीं अपनाई लेकिन अंतिम दौर में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के खिलाफ परिवहन मंत्री यूनुस खान को उतार कर कांग्रेस को बेचैन करने का प्रयास जरूर किया।
दोनों ही पार्टियों ने निष्ठा और प्रतिष्ठा का ध्यान दिए बिना जिताऊ समझकर चुनाव मैदान में उम्मीदवार उतारे हैं। यही कारण है कि भाजपा छोड़ने वाले हबीबुर्रहमान को नागौर से, मनीष यादव को शाहपुरा से, हरीश मीणा को देवली से, मानवेन्द्र सिंह को झालरापाटन से तथा सुरेश चौधरी को भादरा से कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बना दिया।
इसी तरह भाजपा ने पूर्व राजपरिवार के कांग्रेस के पूर्व सांसद इज्यराज की पत्नी कल्पना को लाडपुरा से, बूंदी से कांग्रेस की नेता ममता शर्मा को पीपलदा से चुनाव मैदान से उतार दिया। भाजपा कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ने भी चुनाव त्रिकोणात्मक बना दिया है।
जयपुर के सांगानेर में घनश्याम तिवाड़ी, बीकानरे में गोपाल गहलोत, आमेर में नवीन पिलानिया, खींवसर से हनुमान बेनीवाल, श्रीडूंगरगढ से किशनाराम नाई, लाडनूं से जगन्नाथ बुरडक, बिलाड़ा से विजेन्द्र झाला, सादुलपुर से मनोज न्यागली, श्रीगंगानगर से कामिनी जिंदाल, नवलगढ से प्रतिभासिंह, अनूपगढ से पवन दुग्गल, धोद से पेमाराम चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने वालों में प्रमुख हैं।
मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने वालों में थानाागाजी से हेमसिंह तथा कांति, हिण्डोन से शशीदत्ता और कमल कोली, किशनगढ से नाथूराम तथा सुरेश, मारवाड़ जंक्शन लक्ष्मीनारायण दवे तथा खुशवीर सिंह, लूणी से पप्पूलाल व भंवरसिंह, तिजारा से फजल तथा संदीप, जैतारण से सुरेन्द्र गोयल तथा राजेश प्रमुख हैं।