अजमेर। राजस्थान कांग्रेस समिति के अध्यक्ष सचिन पायलट ने भले ही अजमेर जिले को अलविदा कह दिया है लेकिन जिले के आठ विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में सिर्फ उनकी ही चली है। सभी आठ विधानसभा सीटों पर वह अपने चहेतों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं।
अजमेर जिले की किशनगढ सीट पर दो बार विधायक रहे नाथूराम सिनौदिया और राजू गुप्ता प्रबल दावेदार थे। सिनौदिया पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी थे जबकि राजू गुप्ता को पायलट टिकट दिलाने की कोशिश में लगे थे।
सूत्रों की मानें तो किशनगढ़ सीट पर गहलोत और पायलट के बीच जबरदस्त खींचतान के कारण आखिर वक्त तक गतिरोध बना रहा। पार्टी आलाकमान ने अंत में बीच का रास्ता निकालते हुए दोनों में से किसी को भी टिकट नहीं देने का फैसला किया और नंदलाल धाकन को टिकट दे दिया। इस प्रकार दो बड़े नेताओं की लड़ाई में एक नौजवान को टिकट मिल गया। धाकन हालांकि पुष्कर से टिकट मांग रहे थे।
टिकट ना मिलने से नाराज सिनौदिया ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया है। सिनौदिया के साथ-साथ धाकन भी जाट नेता हैं लेकिन सिनौदिया की लोकप्रियता के कारण बड़ी संख्या में जाट उनके साथ जा सकते हैं जिससे धाकन की राह मुश्किल हो सकती है।
भाजपा ने भी यहां युवा एवं नए चेहरे विकास चौधरी को टिकट देकर नई चाल चली है। हालांकि चौधरी का वर्तमान विधायक भागीरथ चौधरी समर्थकों द्वारा भारी विरोध किया गया लेकिन नामांकन के समय विरोधी भी एक साथ खड़े नजर आए।
मसूदा सीट पर कांग्रेस के दो पूर्व विधायकों ब्रह्मदेव कुमावत तथा हाजी कय्यूम खान ने टिकट की दावेदारी की थी लेकिन कांग्रेस ने मसूदा सीट पर प्रदेश सेवादल के मुख्य संरक्षक राकेश पारीख को मैदान में उतारा है। मसूदा की सीट हालांकि कुमावत और मुस्लिम बहुल है। इसके बावजूद एक ब्राह्मण नेता के रूप में पारीख को टिकट दिया गया है। पारीख भी पायलट के करीबी है। दोनों पूर्व विधायक गहलोत के करीबी हैं।
मसूदा से टिकट नहीं मिलने के कारण दोनों पूर्व विधायकों ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में नामांकन पत्र दाखिल किया है लेकिन ब्रह्मदेव कुमावत ने नामांकन वापस ले लिया जबकि कैय्यूम खान मैदान में डटे हुए हैं। हालांकि पारीख जिले की केकड़ी विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले है और यहीं से उनकी टिकट की दावेदारी थी। पारीख को टिकट दिए जाने से कार्यकर्ताओं में भारी रोष है। यहां से भाजपा ने सुशील कंवर पालडा को टिकट दिया है।
पुष्कर विधानसभा सीट से नंदलाल धाकड़ और श्रवण सिंह रावत ने टिकट की दावेदारी की थी लेकिन यहां भी पायलट अपने करीबी नसीम अख्तर को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। हालांकि यह रावत बहुल क्षेत्र है। यहां से भाजपा ने सुरेश सिंह रावत को टिकट दिया है।
अजमेर जिले में एक विधानसभा व्यावर है जहां का शहरी क्षेत्र बनिया बहुल है और ग्रामीण क्षेत्र रावत बहुल है। कांग्रेस ने पारस जैन को यहां से टिकट दिया है। भाजपा ने वर्तमान विधायक शंकर सिंह रावत पर ही भरोसा जताया है। व्यावर रावत बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद कांग्रेस में यहां अन्य सभी जातियों के वोट खींचने की मंशा दिखाई दी है।
केकड़ी विधानसभा से रघु शर्मा को टिकट दिया गया है। रघु शर्मा ने पिछले साल फरवरी में अजमेर लोकसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की थी और केकड़ी विधानसभा से 35 हजार मतों से विजयी हुए थे।
नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र गुर्जर बाहुल्य है। यहाँ भाजपा के रामस्वरूप लांबा के खिलाफ एक बार फिर वर्तमान विधायक रामनारायण गुर्जर को मैदान में उतारा गया है। रामनारायण भी पायलट गुट के माने जाते हैं। भाजपा ने रामस्वरुप लाम्बा को टिकट दिया है।
अजमेर दक्षिण से कांग्रेस ने भाजपा की अनिता भदेल के सामने उनसे ही पिछले चुनाव में हारे सचिन पायलट के पसंदीदा हेमंत भाटी को मैदान में उतारा है। भाटी युवा है लेकिन उन्हें घर में ही मात मिलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके बड़े भाई ललित भाटी भी मैदान में है।
अजमेर उत्तर विधानसभा सिंधी बाहुल्य क्षेत्र में भाजपा के वासुदेव देवनानी के खिलाफ कांग्रेस ने गैर सिंधी के रूप में प्रदेश कांग्रेस के सचिव महेंद्र सिंह रलावता को उतारकर गैर सिंधियों के वोटों पर पकड़ बनाने की कोशिश की है लेकिन रलावता को टिकट मिलने से यहां भी कांग्रेसी कार्यकर्ता नाराज हैं। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य दीपक हासानी की दावेदारी बहुत पहले से सामने थी।
इससे यह बात साफ हो गई कि पायलट भले ही विधानसभा चुनाव टोंक से लड़ रहे हों लेकिन अजमेर जिले पर अभी भी अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। लेकिन यह अनुमान भी गलत न होगा कि टिकट पाने से महरूम रहे गहलोत समर्थक नेताओं के बिना कांग्रेस की जीत आसान नहीं होगी।