जयपुर। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि विधानसभा सत्र संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल आहूत होना आवश्यक है।
मिश्र ने आज जारी बयान में कहा कि राजस्थान विधानसभा का पांचवां सत्र बुलाने के लिए राज्य सरकार द्वारा उनके परामर्श के अनुसार सुधार करके भेजा गया पत्र 25 जुलाई की रात को प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 31 जुलाई से सत्राहूत करने का प्रस्ताव भेजा है। राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में यह वर्णित किया है कि राज्यपाल महोदय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174 में मंत्रिमण्डल की सलाह मानने को बाध्य हैं एवं राज्यपाल स्वयं के विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं।
उन्होंने कहा कि लेकिन परिस्थितियां विशेष हों, ऐसी स्थिति में राज्यपाल को विधानसभा का सत्र संविधान की भावना के अनुरूप आहूत करने का हक है कि विधानसभा के सभी सदस्यों को उपस्थिति के लिए उचित समय एवं उचित सुरक्षा एवं उनकी मुक्त एवं स्वतन्त्र इच्छा, स्वतन्त्र आवागमन, सदन की कार्यवाही में भाग लेने के लिए प्रक्रिया को अपनाया जाए। उन्होंने बताया कि मीडिया के जरिए राज्य सरकार के बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि राज्य सरकार विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है, परन्तु सत्र बुलाने के प्रस्ताव में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
मिश्र ने कहा कि इस विषय में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ‘नाबाम रबिया एवं बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष, अरूणाचल प्रदेश एक अप्रैल 2016 1⁄2 8 एसीसी एक के पैरा 162 का उल्लेख किया गया है। उन्होंने बताया कि मंत्रिमण्डल के पुनः प्राप्त प्रस्ताव के संबंध में विधिक विशेषज्ञों से राय ली गई। जिसमें नाबाम रबिया एवं बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष, अरूणाचल प्रदेष 1⁄420161⁄2 मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पैरा 150 से 162 का अध्ययन किया गया है।
इसमें यह तथ्य सामने आया कि संविधान के अनुच्छेद 174 1⁄411⁄2 के अन्तर्गत माननीय राज्यपाल साधारण परिस्थिति में मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुरूप ही कार्य करेंगे और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1741⁄411⁄2 की पालना के लिए भी मंत्रिमण्डल की सलाह मान्य है।
मिश्र ने कहा कि यदि राज्य सरकार विश्वास मत हासिल करना चाहती है तो यह अल्प अवधि में सत्र बुलाए जाने का युक्तियुक्त आधार बन सकता है। चूंकि वर्तमान में परिस्थितियां असाधारण है इसलिए राज्य सरकार को तीन बिन्दुओं पर कार्यवाही किए जाने का परामर्श देते हुए पत्रावली पुनः प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
उन्होंने कहा कि पहला विधानसभा का सत्र 21 दिन का स्पष्ट नोटिस देकर बुलाया जाए, जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों की मूल भावना के अन्तर्गत सभी को समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। दूसरा किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्यवाही की जाती है, तब ऐसी परिस्थितियों में जबकि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की है।
तीसरा विश्वास मत प्राप्त करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाए तथा सम्पूर्ण कार्यवाही की वीडियों रिकॉर्डिंग कराई जाए। ऐसा विश्वास मत केवल हां या ना के बटन के माध्यम से ही किया जाए। यह भी सुनिष्चित किया जाए कि ऐसी स्थिति में विश्वास मत का सजीव प्रसारण किया जाए।
मिश्र ने कहा कि यदि विधानसभा का सत्र आहूत किया जाता है तो विधानसभा के सत्र के दौरान सामाजिक दूरी का पालन किस प्रकार किया जाएगा। क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिसमें 200 माननीय विधायकगण और 1000 से अधिक अधिकारी/कर्मचारियों को एकत्रित होने पर उनको संक्रमण का कोई खतरा नहीं हो और यदि उनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो उसे अन्य में फैलने से कैसे रोका जाएगा।
मिश्र ने कहा है कि राजस्थान विधानसभा में 200 विधायकगण और 1000 से अधिक अधिकारी/कर्मचारियों के एक साथ सामाजिक दूरी की पालना करते हुए बैठने की व्यवस्था नहीं है जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आपदा प्रबन्धन अधिनियम एवं भारत सरकार के दिशा निर्देशों की पालना किया जाना आवयक है।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 174 का निरपेक्ष अर्थ मंत्रिमण्डल की आज्ञा में उल्लेखित किया गया है। यह राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में बिना किसी विशेष आकस्मिकता के विधानसभा का सत्र आहूत करके 1200 से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डाला जाए। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 174 के अन्तर्गत उपरोक्त परामर्श देते हुए विधानसभा का सत्र आहूत किए जाने के लिए कार्यवाही किए जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए हैं।