जयपुर। राजस्थान विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार से एक साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी पार्टी के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई।
विधानसभा चुनाव परिणाम के मुताबिक भाजपा कम से कम छह जिलों में खाता भी नहीं खाेल पाई तथा कई सीटों पर मत प्रतिशत भी कम हुआ हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने सभी पच्चीस सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन एक वर्ष बाद भाजपा शायद ही यह प्रदर्शन दोहरा पाए।
भाजपा के दौसा से सांसद हरीश मीणा ने पाला बदल लिया तथा बाड़मेर सांसद कर्नल सोनाराम विधानसभा चुनाव में बाड़मेर से हार बैठे। लोकसभा की दोनों सीटों पर भाजपा को नए उम्मीदवार तलाशने होंगे। इसके अलावा उन क्षेत्रों में भी उम्मीदवार बदलने पड़ सकते हैं जहां विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा।
विधानसभा चुनाव को भी भाजपा के साथ कांग्रेस ने भी सेमीफाइनल मानते हुए केन्द्र सरकार के मुद्दों को उछाला था तथा विधानसभा चुनाव नतीजों को भी इसके मद्देनजर आंका जा रहा हैं। कांग्रेस में मानना है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे सिर्फ मुख्यमंत्री वसुंधरा के प्रति नाराजगी ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ भी संकेत देते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार को मोदी पर केन्द्रित रखा तथा प्रदेश के नेताओं ने भी उसका पीछा किया। हिन्दुत्व के मुद्दे पर भी भाजपा को घेरने का प्रयास किया तथा आगामी लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे के प्रति भाजपा के रवैये पर सवाल खड़ा कर दिया।
कांग्रेस ने भाजपा की हिन्दुवादी नीति की परवाह नहीं करते हुए चौदह मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे तथा सात को सफलता मिली। पश्चिम राजस्थान में भाजपा का हिन्दुवादी चेहरा बुरी तरह पिटा तथा पोकरण में कांग्रेस के शाले मोहम्मद को जीत मिली।
रफाल खरीद में घोटाले के कांग्रेस के आरोप भले ही खास असर नहीं दिखा पाए लेकिन यह मुद्दा अगले लोकसभा चुनाव में भी रहने की संभावना हैं।
कांग्रेस को प्रदेश में सरकार बनाने पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा तथा उसमें खास सफलता नहीं मिली तो लोकसभा चुनाव में यह भी एक मुद्दा बन सकता हैं। सबसे बड़ा मुद्दा किसानों के कर्ज को सरकार बनने के दस दिन में माफ करने के वादे का हैं। इसी तरह रोजगार और अर्थव्यवस्था के मुद्दे भी कांग्रेस से रुबरु होंगे।