जयपुर। राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के उपनेता राजेन्द्र राठौड़ ने कहा है कि राज्य सरकार पर पुलिस, एसओजी और एसीबी का किस तरह बेजा इस्तेमाल कर रही है इसका पर्दाफाश हाईकोर्ट में राजद्राेह का मुकदमा वापस लेने की अर्जी पर सुनवाई के दौरान हाे गया है।
राठौड़ ने आज यहां जारी बयान में कहा कि यह पहले दिन से ही पता था कि असंतुष्ट विधायकों में गिरफ्तारी का भय पैदा करने और फिर भी नहीं मानने पर येन-केन प्रकारेण उन्हें गिरफ्तार करने के लिए ही एसओजी और एसीबी में झूठे मुदकमे दर्ज कराये गए थे।
इस षड़यंत्र को अंजाम देने में चुनिंदा पुलिस अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालय के इशारे पर कठपुतली की तरह नाच रहे हैं। यह षड़यंत्र रोजाना अनुसन्धान के नाम पर टीम भेजने वाले अधिकारियों के कारनामे न्यायालय के समक्ष उजागर होते ही धराशायी हो गया और पहली ही पेशी में सरकार को धारा 124ए को वापस लेना पड़ा।
राठौड़ ने कहा कि विद्रोही विधायकों के विरूद्ध राष्ट्रद्रोह का मामला मुख्य सचेतक महेश जोशी ने दर्ज करवाया था, लेकिन नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी द्वारा इन सभी मामलों की स्वतंत्र रूप से निष्पक्ष जांच होने पर सरकार की किरकिरी होने के डर से और यह मामला दर्ज कराए जाने के पीछे छुपे राज उजागर होने से बचने के लिए न्यायालय के समक्ष एसओजी ने राष्ट्रद्रोह के आरोप को वापस लेकर थूक कर चाटने जैसा काम किया है।
उन्होंने कहा कि यह अत्यंत खेदजनक है कि राज्य के दुर्दांत अपराधियों को पकड़ने वाली एजेंसी के कर्ताधर्ता मात्र मुख्यमंत्री की निगाहों में नंबर बढ़वाने के लिए फर्जी प्राथमिकी दर्ज करके आत्मसमर्पण कर बैठे और देश के सामने राजस्थान पुलिस की भारी बेइज्जती करवा दी।
पुलिस थाने के कनिष्ठतम अधिकारी को भी यह पता है कि राजद्रोह के अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक एक भी साक्ष्य महेश जोशी की सूचना में नहीं था। उच्चतम न्यायालय ने भी ये व्यवस्था दी है कि उच्च अधिकारियों के गलत आदेश मानने के लिए कनिष्ठ अधिकारी स्वयं उत्तरदायी होंगे।
राठौड़ ने कहा कि विधायकों के विद्रोह से आशंकित मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जैसलमेर में अपने ही विधायकों को होटल के एक कमरे से दूसरे कमरे में अनुमति लेकर जाने एवं जैमर लगाकर आपसी बातचीत तक प्रतिबंधित करके उनके मौलिक अधिकारों का हनन कर दिया है, जो लोकतंत्र में निंदनीय है।