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rajju bhaiya memorial lecture from february 9 by patiya kaan-रज्जू भैया की स्मृति में एक व्याख्यान-माला 9 फरवरी से - Sabguru News
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रज्जू भैया की स्मृति में एक व्याख्यान-माला 9 फरवरी से

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रज्जू भैया की स्मृति में एक व्याख्यान-माला 9 फरवरी से

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के चौथे सरसंघचालक प्रो.राजेन्द्र सिंह जो कि रज्जू भैया के नाम से लोकप्रिय थे, एक परमाणु वैज्ञानिक थे। संघ के प्रचारक बन जाने के बाद भी 1966 तक वे इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में परमाणु भौतिकी पढ़ाते रहे और विभागाध्यक्ष रहे। वर्ष 2003 में 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

पाथेय-कण ने उनकी स्मृति में एक व्याख्यान-माला प्रारम्भ करना तय किया है। हर साल उनके जन्म-दिन के आसपास किसी सामयिक एवं महत्वपूर्ण विषय पर भाषण आयोजित किए जाएंगे। पहला व्याख्यान 9 फरवरी, शनिवार को शाम 4 बजे प्राचीन भारत का विज्ञान विषय पर होने जा रहा है।

इसमें मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व अध्यक्ष एएस किरण कुमार को आमंत्रित किया गया है। मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी के निदेशक उदय कुमार कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। विज्ञान भारती के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी जयंत सहस्रबुद्धे मुख्य वक्ता रहेंगे।

पोस्टर प्रदर्शनी

इस अवसर पर पोस्टर प्रदर्शनी भी रखी गई है। स्कूल तथा कॉलेज के छात्र प्राचीन भारत का विज्ञान विषय पर ही पोस्टर बनाएंगे। इन पोस्टरों की प्रदर्शनी का शुभारम्भ 9 फरवरी को ही दोपहर 12 बजे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र में रहे वैज्ञानिक डा.जगदीश चन्द्र व्यास करने वाले हैं। कनिष्ठ तथा वरिष्ठ वर्गों के तीन-तीन सर्वश्रेष्ठ पोस्टर बनाने वालों को पुरस्कृत भी किया जाएगा।

विज्ञान की दीर्घ परम्परा

प्राचीन काल से भारत विज्ञान में सबसे आगे रहा है। गांधीवादी चिन्तक धर्मपाल ने एक पुस्तक लिखी है साइंस एण्ड टेक्नोलोजी ऑफ एटीन्थ सेन्चुरी इण्डिया। इसमें अंग्रेज अधिकारियों की ही टिप्पणियां है। इस पुस्तक में यह सिद्ध हो गया है कि अठारवीं सदी तक भी भारत विज्ञान में यूरोप से मीलों आगे था। बाद में अंग्रेजों ने सारा विज्ञान नष्ट कर दिया।

महरोली, दिल्ली में कुतुब मीनार के पास एक चौबीस फीट ऊंचा लोहे का स्तम्भ है। यह सत्रह सौ साल पुराना है। आज तक इसमें जंग नहीं लगी है। इतना शुद्ध इस्पात भारत में बनता था। इस स्तम्भ को ढाला कैसे गया होगा, यह भी एक आश्‍चर्य है।

कुछ वर्षों पहले इंग्लैण्ड की रायल सोसायटी ऑफ सर्जन्स ने एक केलेण्डर प्रकाशित किया। इसमें चिकित्सा इतिहास ने श्रेष्ठ सर्जनों के चित्र थे। पहला चित्र आचार्य सुश्रुत का था और उसके नीचे लिखा था- विश्‍व के प्रथम सर्जन।

साल भर पहले मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया) में एक चिकित्सा संस्थान के प्रवेश द्वार पर आचार्य सुश्रुत की मूर्ति स्थापित की गई। इसके नीचे भी विश्‍व के प्रथम सर्जन ही लिखा था।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्नल कोर्नेल कूट तथा डा.थामस क्रूसो ने लिखा है-प्लास्टिक सर्जरी इंग्लैण्ड को भारत ने ही सिखाई क्योंकि भारत के गांव-गांव में प्लास्टिक सर्जरी करने वालेे लोग मौजूद थे। कोर्नेल कूट की हैदर अली से युद्ध में कटी नाक बेलगांव (महाराष्ट्र) के एक नाई ने ही जोड़ी थी।

वृक्ष आयुर्वेद जो महर्षि पाराशर ने महाभारत काल में लिखी थी वनस्पति विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है। यूनेस्को ने इसे प्राचीन धरोहरों में शामिल किया है।

पाइथोगोरस से पांच सौ साल पहले बौद्ध गणितज्ञ बोधायन ने शुल्ब सूत्र पुस्तक में पाइथोगोरस थ्योरम का वर्णन किया था।

ॠषि भारद्वाज की पुस्तक यन्त्र सर्वस्व में अदृश्य होने वाले तथा वायुमण्डल से ही ईंधन लेने वाले विमानों का वर्णन है। फॉक्स हिस्ट्री चैनल पर कुछ दिनों पहले भारत के विमानों पर एक कार्यक्रम भी आया था।

यन्त्र सर्वस्व के ‘वैमानिक प्रकरण’ में विमानों के लिये अत्यंत हल्की तथा बेहद मजबूत धातु तैयार करने का भी वर्णन है।

देवी भागवत सहित अन्य पुराणों में सापेक्षवाद का सिद्धान्त समझाया गया है। स्पष्ट किया गया है कि समय सापेक्ष (रिलेटिव) है तथा चौथा डाइमेन्शन है।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक पीसी राय की पुस्तक हिन्दू रसायन का इतिहास में प्राचीन भारत के रसायन विज्ञान का वर्णन है।

डा. एएन सिंह तथा डा.विभूतिनारायण मिश्र की पुस्तक हिन्दू गणित का इतिहास में भारत की गणित को विस्तार से बताया गया है। इसी प्रकार की पुस्तक डा.बृजेन्द्र शील की हिन्दू भौतिकी का इतिहास भी है।

ॠषि कणाद ने बताया था कि सारे पदार्थ मूल कणों (अणु) से बने हैं। उन्होंने इन्हें मूलकणानाम् नाम दिया। इसी से अंग्रेजी शब्द मोलीक्यूल (ोश्रशर्लीश्रश) बना। कणाद ने परमाणु के गुण, क्रिया आदि का विस्तार से वर्णन किया है।

आचार्य वराहमिहिर ने यूरोप के खगोल-शास्त्रियों से बहुत पहले सभी ग्रहों की गति, भ्रमण का मार्ग आदि की सटीक गणना कर ली थी।

सिन्धु घाटी की खुदाई में एक शिलालेख मिला जिसमें लिखा है कि सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 108 गुणा अधिक है। यह एकदम सही है। सूर्य से पृथ्वी की दूरी तथा सूर्य के व्यास (डायमीटर) का अनुपात भी 108 है। पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी तथा चन्द्रमा के व्यास का अनुपात भी 108 है।