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नायडू ने विधि विशेषज्ञों से मशविरे के बाद निरस्त किया महाभियोग प्रस्ताव नोटिस
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नायडू ने विधि विशेषज्ञों से मशविरे के बाद निरस्त किया महाभियोग प्रस्ताव नोटिस

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नायडू ने विधि विशेषज्ञों से मशविरे के बाद निरस्त किया महाभियोग प्रस्ताव नोटिस
rajya sabha chairman venkaiah Naidu rejects opposition notice for removal CJI
rajya sabha chairman venkaiah Naidu rejects opposition notice for removal CJI

नई दिल्ली। राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ सात विपक्षी दलों के महाभियोग प्रस्ताव नोटिस को निरस्त करते हुए सोमवार को कहा कि देश के शीर्ष विधि विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करने और प्रस्ताव में लगाए गए पांच आरोपों तथा उनसे जुड़े दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि न्यायाधीश मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का कोई मामला नहीं बनता है।

नायडू ने रविवार को आंध्र प्रदेश की अपनी चार-दिवसीय यात्रा बीच में ही समाप्त करके राजधानी पहुँचने के बाद अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल समेत अन्य विधि विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करने के बाद संवाददाताओं के सामने घोषणा की कि न्यायाधीश मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नोटिस को खारिज किया जाता है। उन्होंने इस संबंध में 10 पन्नों में अपना विस्तृत आदेश भी जारी किया।

इस आदेश में नायडू ने सात विपक्षी दलों के राज्यसभा के 64 सदस्यों द्वारा 20 अप्रेल को हस्ताक्षरित नोटिस में न्यायाधीश मिश्रा के खिलाफ लगाए गए पांचों आरोपों का बिंदुवार जिक्र किया है और कहा है कि इन सदस्यों द्वारा लगाए गए आरोपों के समर्थन में पेश किए गए दस्तावेजों से कोई पर्याप्त साक्ष्य सामने नहीं आता है और संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश मिश्रा को महाभियोग के तहत हटाने का कोई मामला नहीं बनता है।

गौरतलब है कि इन 64 राज्यसभा सदस्यों ने अपने नोटिस में आरोप लगाया था कि न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ जो तथ्य और परिस्थितियां सामने आई हैं, उनसे सरसरी तौर पर यह प्रमाणित होता है कि वह अवैध तुष्टीकरण के मामले में लिप्त हैं, इसलिए इस मामले में गहरी छानबीन की जरूरत है।

राजनीतिक दलों का यह भी आरोप है कि इसके अलावा प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में उन्होंने लगभग सभी पीठों की अध्यक्षता की थी और उनके खिलाफ एक रिट याचिका भी दायर की गई थी जिसमें ट्रस्ट मामले की जांच कराने की मांग की गई थी, क्योंकि जांच के दायरे में उनका भी नाम आने की संभावना थी। नोटिस में कहा गया था कि इस तरह न्यायाधीश मिश्रा ने न्यायाधीशों की आचार संहिता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया था।

उपराष्ट्रपति ने नोटिस मंजूर करने या न करने के संबंध में निर्णय के अपने अधिकार के समर्थन में न्यायाधीश जांच अधिनियम 1968 की धारा 3(एक)(बी) का हवाला दिया है। उन्होंने लिखा है कि इस धारा में जहां महाभियोग नोटिस के लिए कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है, वहीं नोटिस को मंजूर करने या न करने को लेकर भी इसमें जिक्र किया गया है।

उन्होंने स्पष्ट किया है कि इस धारा के प्रावधान के तहत सभापति नोटिस मंजूर या नामंजूर करने के लिए अपनी मर्जी के लोगों से राय-मशविरा कर सकते हैं। नायडू ने लिखा है कि नोटिस पर 64 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं इसलिए उक्त धारा में वर्णित कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर वाली शर्त पर यह नोटिस फिट बैठता है, लेकिन इसे मंजूर या नामंजूर करने के सवाल पर मैंने गम्भीरता से विचार किया है।

उपराष्ट्रपति ने लिखा है कि मैंने महाभियोग मामले में एम कृष्णास्वामी बनाम भारत सरकार से संबंधित उच्चतम न्यायालय की उन टिप्पणियों पर भी विचार किया, जिसमें कहा गया है कि नोटिस को स्वीकार करने से पहले सभापति से अपेक्षा की जाती है कि वह न्यायपालिका के प्रमुख उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी एटर्नी जनरल से विमर्श करें।

नायडू ने लिखा है कि इस मामले में महाभियोग प्रस्ताव नोटिस सीजेआई के खिलाफ ही है, इसलिए उनसे सलाह लेना उचित नहीं है। नायडू ने कहा कि ऐसी स्थिति में मैंने इस मामले में विधिवेत्ताओं, संविधान विशेषज्ञों और संसद के दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों, पूर्व विधि अधिकारियों, विधि आयोग के सदस्यों एवं जाने-माने न्यायविदों से राय-मशविरा करना उचित समझा।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने पूर्व एटर्नी जनरल, संविधान विशेषज्ञों और प्रमुख समाचार पत्रों के सम्पादकों की टिप्पणियों का भी अध्ययन किया है, जो करीब-करीब इस बात को लेकर सहमत हैं कि मौजूदा नोटिस न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का उचित कारण नहीं बनता।

राज्यसभा के सभापति ने कहा कि उन्होंने नोटिस के परिप्रेक्ष्य में सभी पहलुओं की जांच की है तथा सभी आरोपों पर न्यायिक आदेशों के नजरिये से भी व्यक्तिगत तौर पर और सामूहिक तौर पर विचार-विमर्श किया है। सभी पहलुओं पर चर्चा के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह नोटिस स्वीकार करने योग्य नहीं है।

उपराष्ट्रपति ने नोटिस में उल्लेखित प्रसाद एजूकेशन ट्रस्ट घोटाला मामले से जुड़े कारण का हवाला देते हुए कहा कि नोटिस में इस्तेमाल किए गए शब्दों से यह प्रतीत होता है कि नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसद के पास आरोप का कोई पुख्ता आधार नहीं है, बल्कि वे कोरी कल्पना पर आधारित हैं।

अंत में उन्होंने लिखा है कि नोटिस में उल्लेखित बिंदुओं पर विचार करने और विधि विशेषज्ञों तथा संविधान विशेषज्ञों की ओर से दी गई सलाहों के आधार पर मेरा यह मानना है कि महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस मंजूर करने लायक नहीं है।