अजमेर। हिन्दू धर्म में अनेकानेक पंथ और संप्रदाय है, सबकी अपनी विचारधारा और अराध्य हैं, लेकिन राम नाम सबके मिलन बिन्दु हैं। राम नाम परिक्रमा स्थल पर सबका आगमन हुआ। राम सबको जोडने वाले हैं। ये बात उदयपुर के पुष्करदास महाराज ने 54 अरब हस्तलिखित श्रीराम नाम महामंत्र परिक्रमा महोत्सव के 15वें दिन रविवार को अयोध्या नगरी में कही।
उन्होंने कहा कि अयोध्या नगरी में विराजित 54 अरब हस्तलिखित राम नाम महामंत्रों का यह संग्रह अलौकिक है, जो भक्त राम नाम लेखन कर रहे हैं निश्चित रूप से उन पर राम की कृपा हुई है, क्योंकि प्रभु भक्ति उनकी कृपा हुए बिना नहीं मिलती। राम नाम लिखने वाले बच्चे, बडे और बुजुर्ग तथा इस कार्य में सहयोग करने वाले बडभागी हैं। जिन भक्तों ने 84 लाख बार राम नाम का लिखित जप पूर्ण किया है वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा बने हैं।
उन्होंने कहा कि प्रभु का नाम का जप समस्त दुखों के निकाकरण का उपाय है। प्रभु नाम का जो स्मरण करता है वह समस्त दुखों को भूल जाता है। हम जितना राम के करीब होते जाएंगे दुख उतने ही दूर होते जाएंगे।
पूर्व जन्म के प्रताप से ही मानव योनी में भजन और सत्संग का अवसर मिलता है। परमसुख दाता राम की कृपा बिना उनकी निकटता नहीं पाई जा सकती न ही कोई भजन कर पाता है। जो परमात्मा का सुमिरन करता है वह तो भक्ति रूपी धन से मालामाल हो जाता है।
संसार में खाने, पीने, आराम, सुखमय चीजों से भले ही सुख मिलता है लेकिन परमसुख तो परमात्मा में ध्यान लगाने पर मिलता है। हरि सुमिरन से दुख दूर हो जाते हैं। परमात्मा और संतों, गुरुजनों के चरणों में झुकने वाले के दिन बहुर जाते हैं।
मीराबाई के भजन पायो जी मैने राम रतन धन पायो…के जरिए रामभक्तों को भक्ति के वास्तविक रूप के दर्शन कराए। उन्होंने कहा कि राम नाम रूपी धन ऐसा है जो न चोरी होता है न ही कोई बंटवारे में मांग सकता है। हरिनाम की चाबी नहीं है तो बाकी सब तिजोरी बेकार हैं। हम जिसको समृद्धी कहते हैं वह असल संपत्ति नहीं है। प्रभु का स्मरण जिसने किया वही सबसे धनवान है, जो प्रभु भजन नहीं करता वह कंगाल है।
उन्होंने राम नाम रस मीठा रे कोई गा के देख ले, आ जाते हैं राम कोई बुलाके देख ले…और राम से बडा राम का नाम… भजन से माहौल को राममय कर दिया। उन्होंने कहा कि राम नाम जपने पर न कोई बंधन है न को सीमा। इसे जपे और इसके अनुरूप जीवन में कर्म करें।
महाराज ने एक प्रसंग के जरिए राम नाम की महिमा बताते हुए कहा कि लंका पर चढाई के लिए सेतुबंध बांधा जा रहा था, वानर सेना पत्थरों पर राम नाम लिखकर उन्हें समुद्र में डाले रही थी।
राम लिखे पत्थर डूबने की बजाय तैर रहे थे और पुल बनता जा रहा था। यह सब प्रभु राम भी देख रहे थे। राम ने सोचा मेरे नाम से पत्थर तैर रहे हैं तो क्यों न मैं भी एक पत्थर डालूं। उन्होंने एक पत्थर समुद्र में फेंका तो वह डूब गया। राम अचरज में पड गए। हनुमान इस नजारे को देख रहे थे। राम ने भक्त हनुमान से कहा कि मैने जो पत्थर फेंका वह डूब क्यों गया। हनुमान ने प्रभु को उनके नाम की महीमा बताते हुए कहा कि आपके नाम से सब कुछ तैर जाता है लेकिन जिसे आप ने ही फेंक दिया वह तो डूबेगा ही।
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कभी राम बन के कभी श्याम बनके…