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सनातन धर्म ही समूचे विश्व का नेतृत्व करेगा : अनादि सरस्वती - Sabguru News
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सनातन धर्म ही समूचे विश्व का नेतृत्व करेगा : अनादि सरस्वती

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सनातन धर्म ही समूचे विश्व का नेतृत्व करेगा : अनादि सरस्वती
साध्वी अनादि सरस्वती श्रीराम परिक्रमा महोत्सव में प्रवचन करते हुए।
साध्वी अनादि सरस्वती श्रीराम परिक्रमा महोत्सव में प्रवचन करते हुए।

अजमेर। दुनिया के बाकी देशों में महापुरुष पैदा होते हैं और भारत धरा पर साक्षात भगवान जन्म लेते हैं। हमारे पुत्र जन्मे तो बोलते हैं कान्हा आया है, बच्ची जन्मे तो कहते हैं दुर्गा आई है, लक्ष्मी आई है। भारत भूमि धन्य है, इसीलिए भगवान के सभी अवतार यहीं पैदा होते हैं। सनातन धर्म ही समूचे विश्व का सदैव नेतृत्व करेगा। यह बात चित्ति जागरण संस्थान की साध्वी अनादि सरस्वती ने श्रीराम नाम परिक्रमा महोत्सव में प्रवचन के दौरान कही।

उन्होंने कहा कि इस देश में तो जीव जन्तुओं में भी ईश्वर का अंश माना जाता है। मछली को आटे की गोली डाली जाती है, पक्षियों को दाना डाला जाता है, बंदरों को केले खिलाए जाते हैं, इतना ही नहीं बल्कि सांप को भी दूध पिलाने की संस्कृति है। यही सनातन धर्म है।

उन्होंने प्रभु नाम की महिमा का बखान करते हुए कहा कि राम दो शब्द रा और म से मिलकर बना है, इसमें अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा तत्व समाहित होते हैं। इसमें बहुत उर्जा होती है। राम जप से तीनों तत्व एक साथ जाग्रत हो जाते हैं। शक्ति का संचार होता है। शरीर, मन और देह तो भगवान की सेवा के लिए है। यही सनातन धर्म है।

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रामचरितमानस का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि उसमें पुत्र, पति, और मित्र धर्म निभाने के साक्षत उदाहरण के रूप में राम के मर्यादापूर्ण जीवन के अनुकरणीय पक्ष का साक्षात्कार होता है। भगवान राम धैर्य की प्रतिमूर्ति हैं।

उन्होंने कहा कि कालचक्र के साथ पाश्चात्य संस्कृति के कुछ दुष्प्रभाव हमारे यहां भी आ गए हैं। माता पिता को वृद्धाश्रम में छोडा जाने लगा है। सोचिए बुजुर्ग ही घर पर नहीं होंगे तो पोते पोती को संस्कार कौन देगा। भौतिकता की दौड में भाई भाई का दुश्मन बन रहा है। छोटी सी बात पर परिवार टूट जाते हैं। रामचरितमानस में जीवन जीने की कला छिपी है। यह सिर्फ किसी कवि की कल्पना नहीं है। कुटुम्ब कैसे व्यवस्थति तरीके से चलते हैं यह हमें रामायण से सीखने को मिलता है।

ईश्वर के प्रति विश्वास कैसा हो इसकी व्याख्या करते हुए साध्वी ने कहा कि वानर सेना के एक छोटे से सिपाही अंगद ने लंका जाकर रावण की सभा के बीच अपने पैर जमा दिए, कोई उनका पैर नहीं डिगा सका। जब वे लौटे तो बाकी वानरों ने उनसे पूछा कि यह सब कैसे कर पाए तो वे बोले रामजी को याद किया और पैर खुद ही ताकत आ गई।

भगवान को पाने का सबसे निर्मल और सरल व सहज तरीका उनकी भक्ति करना है। भक्ति का रूप कैसा भी हो भगवान स्वीकार लेते हैं। भगवान बडे दयालू हैं वे संकट पडने पर अपने भक्तों की रक्षा करने को आतुर रहते हैं। प्रभु की कृपा हो जाए तो असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।