सबगुरु न्यूज। दीपों के पर्व दीपावली के अवसर पर गणेश-लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ घरौंदा और रंगोली बनाकर उनका स्वागत करने की परंपरा रही है।
कहा जाता है कि दीपावली के दिन रावण का वध करने के बाद जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने उनका पूरे हर्षोल्लास से स्वागत किया था।
लोगों ने अपने घरों की साफ-सफाई करके उन्हें स्वच्छ बनाकर रंगों तथा फूलों की मदद से रंगोली बनाई थी और घर को दीपक से सजाया था इसलिए तब से ही दीपावली पर रंगोली और दीए जलाने का नियम बन गया है।
दीपावली के अवसर पर घर में रंगोली बनाए जाने की परंपरा है। इस दिन घर की साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया जाता है और रंगोली घर को चार चांद लगा देती है। घर चाहे कितना भी अधिक सुंदर हो यदि रंगोली घर के मुख्य द्वार पर नहीं सजाई गई तो घर की सुंदरता अधूरी सी लगती है।
सामान्य के तौर पर रंगोली का निर्माण चावल, गेंहू, मैदा, पेंट और अबीर से बनाया जाता है लेकिन सर्वश्रेष्ठ रंगोली फूलों से बनाई जाती है। इसके लिए गेंदा और गुलाब के साथ हरसिंगार के पूलों का इस्तेमाल किया जाता है जो देखने में सुंदर तो लगता ही है साथ ही सात्विकता को भी उजागर करता है।
दीपावली के अवसर पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लोग मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर की साफ-सफाई कर सजाते हैं और रंग-बिरंगी रंगोली बनाते हैं। रोशनी के साथ-साथ यदि घर में रंगोली बन जाए तो घर की सजावट पर चार चांद लग जाते हैं।
रंगोली के तरह तरह के रंग और उसके भाव मन में आनंद और उत्साह का संचार करते हैं। मां लक्ष्मी के साथ रंगोली दीवाली पर घर में आने वाले मेहमानों के स्वागत के लिए भी बनाई जाती है।
छोटी दीपावली के दिन घर के नरक यानी गंदगी को साफ किया जाता है। जहां सुंदर और स्वच्छ प्रवास होता है, वहां लक्ष्मी जी अपने कुल के साथ आगमन करती हैं। नरक चतुर्दशी को लोग यमराज की पूजा कर अपने परिवार वालों के लिए नरक निवारण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही गलतियों से बचने के लिए उनसे माफी मांगी जाती है।
नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व भी कहा जाता है। इस दिन लंबी आयु के लिए घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परंपरा है। आज की रात जब घर के सभी सदस्य आ जाते हैं तो गृहस्वामी यम के नाम का दीपक जलाते हैं।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जलाकर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीये को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिककृष्ण चतुर्दशी तिथि को नरकासुर नाम के असुर का वध किया। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना रखा था।
नरकासुर का वध करके श्री कृष्ण ने कन्याओं को बंधन मुक्त करवाया। नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। इस दिन दीयों की बारात भी सजाई जाती है।