नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ पत्रकार रास बिहारी द्वारा बंगाल की राजनीति पर लिखी तीन पुस्तकों की सराहना करते हुए कहा है कि दशकों के सियासी इतिहास को निष्पक्षता और सही तथ्यों के साथ रेखांकित करते हुए प्रस्तुत करना महत्ती श्रम का कार्य है, जिसे रास बिहारी ने बखूबी साकार किया है।
मोदी ने यह बातें नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती पर कोलकाता प्रवास के दौरान विक्टोरिया हॉल में पुस्तकों के लेखक रास बिहारी से मुलाक़ात के दौरान कही थीं। यह जानकारी देते हुए रास बिहारी ने बताया कि इस विशेष मुलाक़ात के दौरान उन्होंने अपनी तीनों पुस्तकें मोदी को भेंट की थीं।
इस दौरान मोदी ने कहा कि उन्हें अपने लेखन कार्य को आगे जारी रखना चाहिए। रास बिहारी ने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा उनके प्रयासों की सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है। पश्चिम बंगाल की राजनीति पर रास बिहारी की अब तक तीन पुस्तकें बाजार में आ चुकी हैं। तीनों पुस्तकों ‘रक्तांचल- बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति’, ‘रक्तरंजित बंगाल- लोकसभा चुनाव 2019’ तथा ‘बंगाल- वोटों का खूनी लूटतंत्र’ को यश पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। वरिष्ठ पत्रकार रासबिहारी लम्बे समय तक दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष और महासचिव रहे। वर्तमान समय में वह नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) के अध्यक्ष हैं।
रक्तांचल- बंगाल की रक्तचरित्र राजनीति
तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा बंद होने की संभावना जताई गई थी। सुश्री ममता बनर्जी के राज में हर चुनाव में विरोधी दलों की राजनीतिक हिंसा की आशंका सच साबित हुईं हैं। पुस्तक में 2014 के लोकसभा और 2016 के विधानसभा चुनाव के साथ उपचुनावों में हिंसा व धांधली की घटनाओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। पुस्तक बताती है कि तृणमूल कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता कटमनी, सिंडीकेट को लेकर संघर्ष, ठेके कब्जाने के लिए खूनखराबा, रंगदारी वसूलने और अवैध धंधों पर कब्जा करने के लिए किस तरह एक-दूसरे को काटते रहे और बमों से उड़ाते रहे।
रक्तरंजित बंगाल- लोकसभा चुनाव 2019
पुस्तक में 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले, मतदान के दौरान और मतदान के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तार से वर्णन किया गया है। 2019 में राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों और घायलों के उदाहरण रक्तरंजित बंगाल के प्रमाण दे रहे हैं। राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में आतंक फैलाने के लिए कैसे जगह-जगह घरों को फूंका गया। राजनीतिक संघर्ष को लेकर हुई बमबाजी और गोलीबारी से शहर और गांवों के लोग कैसे पूरे साल दहलते रहे।
बंगाल- वोटों का खूनी लूटतंत्र
पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद पनपने के बाद पिछले 50 वर्षों की राजनीतिक हिंसा से पूरी तरह परिचित कराती पहली पुस्तक। वर्ष 1967 में किसानों के आंदोलन, उद्योगों में बंद और हड़ताल, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कूलों में बमों के धमाके तथा रिवाल्वरों से निकलती गोलियों के साथ अराजकता भरे आंदोलनों की जानकारी। वर्ष 1972 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दमनचक्र के बाद 1977 में वाम मोर्चे की सरकार के गठन के बाद राजनीतिक हिंसा का विस्तृत विवरण है।