रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्मज्ञानी तथा बहु विद्याओं का जानकार था ।उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल मंत्र सम्मोहन और तरह-तरह के जादु जानता था ।उसके पास एक ऐसा विमान था जो अन्य किसी के पास नहीं था। इस सभी के कारण सभी उससे भयभीत रहते थे ।
जैन शास्त्रों में रावण को प्रति नारायणा माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती की जाती है ।जैन पुराणों के अनुसार महापंडित रावण आगामी चौबीसी में तीर्थंकर सूची में भगवान महावीर की तरह 24 तीर्थंकर के रूप में मान्य होंगे। इसलिए कुछ प्रसिद्ध प्राचीन जैन तीर्थ स्थलों पर उनकी मूर्तियां प्रतिष्ठित है ।
रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार की 9 मणियां होती थी ।उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था ।जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था ।रावण के 10 सिर होने की चर्चा रामचरितमानस में आती है ।वह कृष्ण पक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए निकला था । तथा एक-एक दिन क्रमशः एक एक सिर कटते थे। इस तरह दसवें दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ।इसीलिए दशमी के दिन रावण का दहन किया जाता है ।
रावण ब्राह्मण पिता और राक्षस माता का पुत्र था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था। कुबेर को बेदखल कर रावण के लंका में जम जाने के बाद उसने अपनी बहन शूर्पणखा का विवाह कालका के पुत्र दानव राज विद्युत के साथ कर दिया । उसने स्वयं दिति के पुत्र मय की कन्या मंदोदरी से विवाह किया जो हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी ।
माना जाता है कि रावण शिव का परम भक्त था।यम और सूर्य को अभी अपना प्रताप झेलने के लिए विवश करने तक की शक्ति थी उनमें ।रावण ने आर्यों की भोग विलास वाली यक्ष संस्कृति से अलग सभी की रक्षा के लिए रक्ष संस्कृति की स्थापना की थी ।यही रक्ष समाज के लोग आगे चलकर राक्षस कहलाए।
रावण ने कौशल पर्वत उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा तो भगवान शिव ने अपने अंगूठे से दबाया और वहां गिरा दिया इससे रावन का हाथ दब गया और क्षमा याचन करने लगा और स्तुति भी।यह याचन और स्तुति आगे चल कर शिव तांडव स्तोत्र कहलाया।